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उगते सूर्य को अर्घ्य, पूर्वाचंलवासियों में उत्साह

- छठ पर्व: व्रती महिलाओं ने अपने 36 घंटे के कठिन व्रत को पूर्ण किया

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श्रीगंगानगर. इलाके में पिछले चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व छठ मंगलवार को संपन्न हो गया। व्रतियों ने उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया और छठी मैया को नमन किया। वहीं घरों में छठ मइया के गुणगान किए गए। व्रतियों ने सुबह उगते हुए सूरज को अर्घ्य देकर अपना 36 घंटों से चले आ रहे निर्जला व्रत को खत्म किया। सुहाग की लंबी उम्र, संतान प्राप्ति और संतान की उन्नति के लिए रखा जाने वाला पर्व संपन्न हुआ। जिला मुख्यालय पर तीन पुली पर जैड माइनर किनारे, नेहरानगर के पास और करणपुर रोड चुंगी से सटे मिर्जेवाला फाटक के पास अस्थायी घाट पर पूर्वाचंलवासियों के परिवार पहुंचे और सूर्य भगवान को धोक लगाई। वहीं व्रती महिलाओं ने दूध और पानी से सूर्य भगवान को अर्घ्य देकर खुशहाली की कामना की। इस दौरान अन्य समाज की महिलाओं ने भी वहां पहुंचकर सूर्य भगवान का पूजन किया। युवक युवतियों ने आतिशबाजी कर खुशी का इजहार किया।

आतिशबाजी से दीपावली जैसा जश्न
इस पर्व पर दीपावली जैसा जश्न देखने केा मिला। कई युवाओं ने वहां आतिशबाजी कर छठ मैया के जयकारे लगाए। महिलाओं ने मोबाइल फोटो के माध्यम से सेल्फी लेने की होड़ लग गई। इधर, नेहरानगर के पास और करणपुर रोड पर चुंगी के पास भी छठ पर्व का आयोजन किया गया। वहां भी अस्थायी घाट पर पूजा अर्चना का तांता लगा रहा।
महिलाओं और युवतियों में रहा ज्यादा क्रेज
तीन पुली किनारे अस्थायी घाट पर छठ मैया का पूजन किया गया। वहां पूर्वांचलवासियों के लिए आस्था का केन्द्र बने इन घाट पर महिलाओं और युवतियों ने पूजन की सामग्री को लेकर नहर के अंदर खड़े होकर छठ मैया के मंगल गीत गाए। इन परिवारों ने दीपक और अगरबत्ती से सूर्य देव की पूजा की प्रक्रिया शुरू हुई। फल और विशेष पकवान से छठ मैया को भोग लगाया। इत्र, अगरबत्ती, धूप से तीन पुली क्षेत्र महक उठा। ज्यादातर महिलाओं ने छठ मैया की धोक लगाते हुए अपने परिवार के बच्चों को निरोगी, सरकारी नौकरी, अपना घर बनाने की कामना की। शहर से बाहर रहने वाले परिजनों को मोबाइल से वीडियो कॉलिंग कर उत्सव स्थल के दर्शन करवाए। इससे पहले महिलाओं ने अपनी परंपरागत रंग-बिरंगी साड़ियों और युवतियां लुभावने सूट और लंहगे की ड्रेस में सज धजकर आई।
याद आई अपने गांव की मिट्टी
अपने परिवार के साथ आए बुजुर्ग शंभूनाथ का कहना था कि छठ पर्व पर गांव की मिट़टी याद आने लगती है। परिवार को पालना भी जरूरी है, इसलिए अपने परिवारिक सदस्यों के साथ यहां आ गया। बिहारी मूल की शोभा का मानना था कि बिहार से भले ही दूर हो लेकिन लोक संस्कृति के त्यौहार मनाने का नियम कायम है। युवती मंजू का कहना था कि लंबे समय से अपने परिवार के संग यहां रहती है तो छठ पर्व भी यहां मनाने का चलन हो गया है, बिहार जाने का कभी कभार मौका मिलता है।