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सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल बढ़ाता है अकेलापन

अमरीका में 30 से 70 साल की उम्र के 1500 से ज्यादा लोगों पर किए गए एक अध्ययन में यह सामने आया है कि जो लोग सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताते हैं या दिनभर बार-बार इसे चेक करते हैं, वे ज्यादा अकेलापन महसूस करते हैं।

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जयपुर। सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल लोगों में अकेलेपन की भावना को और गहरा कर सकता है। अमरीका में 30 से 70 साल की उम्र के 1500 से ज्यादा लोगों पर किए गए एक अध्ययन में यह सामने आया है कि जो लोग सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताते हैं या दिनभर बार-बार इसे चेक करते हैं, वे ज्यादा अकेलापन महसूस करते हैं।

यह शोध अमरीका की ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी की डॉ. जेसिका गोर्मन और उनके सहयोगी डॉ. ब्रायन प्रिमैक ने किया। पहले किए गए शोध ज्यादातर युवाओं पर केंद्रित थे, लेकिन इस बार मध्यम आयु और बुजुर्गों पर भी इसका असर देखा गया।

अध्ययन के अनुसार, चाहे कोई व्यक्ति दिन में बार-बार सोशल मीडिया चेक करे या लंबे समय तक स्क्रॉल करता रहे—दोनों ही आदतें अकेलेपन की संभावना को बढ़ाती हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि 60 साल के लोग भी उतनी ही तीव्रता से इस प्रभाव को महसूस करते हैं, जितना 18 साल के युवा।

शोध यह भी बताता है कि अकेलापन केवल एक भावना नहीं है, बल्कि यह दिल की बीमारियों, डिप्रेशन, नशे की लत और घरेलू हिंसा जैसी गंभीर समस्याओं से भी जुड़ा है। अमेरिका के सर्जन जनरल ने इसे दिनभर में 15 सिगरेट पीने जितना हानिकारक बताया है।

कोरोना महामारी से पहले ही अमेरिका में लोग ज्यादा अकेलापन महसूस कर रहे थे, और महामारी ने इस स्थिति को और बिगाड़ दिया। आज वहां आधे से ज्यादा वयस्क अकेलेपन की शिकायत करते हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि बड़ी उम्र के लोग सोशल मीडिया के "डिजिटल नियमों" में उतने सहज नहीं होते, इसलिए उनके लिए वास्तविक रिश्तों की कमी और ज्यादा गहरी हो जाती है।

हालांकि यह अध्ययन कारण और परिणाम की दिशा साफ नहीं करता—यह भी संभव है कि जो लोग पहले से अकेले हैं, वे ज्यादा सोशल मीडिया इस्तेमाल करते हों। लेकिन इतना तय है कि इससे उनका अकेलापन कम नहीं होता।

विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि यदि आप अकेलापन महसूस कर रहे हैं, तो ज्यादा स्क्रॉलिंग इसका समाधान नहीं है। इसके बजाय सोशल मीडिया का इस्तेमाल वास्तविक बातचीत और मुलाकातों की शुरुआत के लिए करें। दिनभर में कुछ समय फोन से दूर रहें और परिवार या दोस्तों के साथ समय बिताएं।

शोधकर्ताओं का मानना है कि डॉक्टरों और संस्थाओं को भी लोगों से उनके अकेलेपन के बारे में पूछना चाहिए और उन्हें असली दुनिया में जुड़ाव के अवसर देने चाहिए।

अध्ययन के नतीजे इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरनमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित किए गए हैं।