प्रियंका सौरभ
चिठ्ठी लाई गांव से, जब राखी उपहार ।
आंसू छलके आंख से, देख बहन का प्यार।।
रक्षा बंधन प्रेम का, हृदय का त्योहार।
इसमें बसती द्रौपदी, है कान्हा का प्यार।।
कहती हमसे राखियां, तुच्छ है सभी स्वार्थ।
बहनों की शुभकामना, तुम्हें करे सिद्धार्थ।।
भाई-बहना नेह के, रिश्तों के आधार।
इस धागे के सामने, सब कुछ है बेकार।।
बहना मूरत प्यार की, मांगे ये वरदान।
भाई को यश-बल मिले, लोग करे गुणगान ।।
सब बहनों पर यदि करें, मन से सच्चा गर्व ।
होता तब ही मानिये, रक्षा बंधन पर्व ।।
पढि़ए राखी पर एक और कविता
मन में प्यार का एक कोना
गोविंद सिंह राव
नहीं चाहिए भैया मुझको,
हिस्सा तेरे आंगन का।
मन में मेरे याद रहे बस,
किस्सा तेरे आंगन का।
आंगन में अठखेली करती,
भाई-बहन की जोड़ी थी।
मां बापू की डांट डपट भी,
लगती हमको थोड़ी थी।
कैसे भूलूंगी मैं भैया,
किस्सा कान मरोड़ी का।
नहीं चाहिए भैया मुझको,
हिस्सा तेरी ड्योढ़ी का।
एक दूजे की झाूठी थाली,
में हम खाना खाते थे।
या फिर एक दूजे की गोदी,
में भूखे सो जाते थे।
नहीं जाता है मन से भैया,
वह सुख भूखा सोने का।
नहीं चाहिए भैया मुझको,
हिस्सा तेरे सोने का।
जब भी कोई कांटा भैया,
पग में तेरे चुभता था।
तब तेरे रोने से भैया ,
मेरा मन भी दुखता था।
कैसे भूलूंगी मैं भैया?
किस्सा तेरी रुलाई का।
नहीं चाहिए भैया मुझको,
हिस्सा खेत बंटाई का।
बांहों के झाूले में तुझको ,
खूब झाुलाया करती थी।
अपने हिस्से का भी भैया,
दूध पिलाया करती थी।
नहीं जाता है मन से भैया
सना दूध से हो मुखड़ा।
नहीं चाहिए भैया मुझको,
खेत का छोटा सा टुकड़ा।
नहीं चाहिए भैया मुझको
मेरे हिस्से का कुछ भी।
नहीं चाहिए सोना चांदी,
नहीं चाहिए भू कुछ भी
भैया मुझको दे देना तुम,
मन में प्यार का एक कोना,
मैं समझाूंगी मुझे मिला है,
पूरी दुनिया का सोना।