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कविता – आजाद होने दो

कविता

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कविता - आजाद होने दो

कविता - आजाद होने दो

मोनिका राज

वो साथ जिसे तड़प है
तुमसे दूर नई दुनिया बसाने की
न थामने की जिद करो आज
उसे बस उन्मुक्त हो जाने दो

वो मोती जिसकी ख्वाहिश है
कहीं और बंध माला बन जाने की
न पिरोने की जिद करो तुम
उसे अब कहीं और बिंध जाने दो

वो जो तुम्हारे प्रेम और स्नेह को
मानता हो बस एक बन्धन
न जकड़ो उसे पाश में तुम
हर मोह से उसे आजाद होने दो

वो जो चमकना चाहता है बनकर
किसी और के आंगन का सितारा
उसे अपना आसमां चुनने दो तुम
तय कर लेने दो उसे खुद की मंजिल

वो जो तुम्हारी परवाह को
समझाता हो बस एक बेड़ी
उसे आज जाने दो तुम
अपना कल उसे लिखने दो।

पढि़ए एक और कविता

स्वच्छ सागर
दीप्ति मिश्रा

खनिज, वनस्पति, जीव जंतु की, अतुल संपदा संचित है।
दुनिया में अथाह सागर हैं लेकिन कितने विचलित हैं।

तेल, धातु, पिंडों के जिनमें हैं विशाल भंडार जहां।
गैस, जलीय जीव जंतु से भरा सिंधु आगार यहां।
जलधि तरंगों से ऊर्जा पाने के प्रयोग अपरिमित हैं।

लाखों लीटर में फैला पेट्रोल बना जहरीला है।
परमाणु तटवर्ती क्षेत्रों के मलबे ने जीवन लीला है।
दुर्घटना से ग्रस्त जहाजों से फैला जो तेल अनियंत्रित है।

सागर-संरक्षण हित सरकार निजी संस्थाएं एक।
प्रयत्नशील वैज्ञानिक सारे उपयोगी शुभ है संकेत।
मंत्रालय पृथ्वी विज्ञान स्वच्छता हेतु समर्पित है।

मुक्त प्रदूषण से सागर हों प्रण भारत ने ठाना है।
जन की चेतना जाग्रत करके, मिल-जुल कदम बढ़ाना है।
रहें प्रदूषणमुक्त सिंधु तभी भावी कल्याण सुनिश्चित है।