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कविता-सप्ताह में एक दिन!

कविता

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कविता-सप्ताह में एक दिन!

कविता-सप्ताह में एक दिन!

डॉ. माध्वी बोरसे!

चलो निकालें सप्ताह में एक दिन,
जिसमें खुद का साथ हो,
बस खुद से बात हो,
चाहे दिन या रात हो,
कैसे भी हालात हो!

चलो निकालें सप्ताह में एक दिन,
लफ्जों पर हो कई सवाल,
यह दुनिया है या माया का जाल?
क्या पाया क्या खोया इस साल?
खुद से पूछें खुद का हाल!

चलो निकालें सप्ताह में एक दिन,
पूछें, कितना प्यार खुद से किया?
कितना दर्द गैरों को दिया?
कितना खुलकर है जिया?
कितनों का है हक लिया?

चलो निकालें सप्ताह में एक दिन,
आईने के सामने बैठें एक बार,
थोड़ी देर के लिए छोड़े शृंगार,
जाने कैसे है हमारे आचार विचार?
क्या बाकी है हम में शिष्टाचार?

चलो निकालें सप्ताह में एक दिन,
जानें, खुद को क्या है गम?
किसे ढूंढते हैं हम हरदम?
क्या सही चल रहे हैं हमारे कदम?
कैसा महसूस कर रहे हे हम?

चलो निकालें सप्ताह में एक दिन,पूछें
क्या हमसे यह जमाना है?
जहां हर कोई बेगाना है,
बस धन दौलत ही कमाना है,
और इस दुनिया से एक दिन खाली हाथ जाना है!

चलो निकालें सप्ताह में एक दिन,पूछें
कितनों के हमने घर बसाए?
कितनों के घर हमने जलाए?
इंसान बनके हम इस धरती पे आए,
इंसानियत के नाते, क्या हम कुछ कर पाए?

चलो निकालें सप्ताह में एक दिन,
खुद को थोड़ा नजदीक से जाने,
खुद को सबसे ज्यादा पहचाने,
व्यस्त होने के ना करें बहाने,
खुद से मिले हुए जमाने!

चलो निकालें सप्ताह में एक दिन!
चलो निकालें सप्ताह में बस एक दिन!