कांता मीना
जब छुट्टियों में, मां मैं घर आई,
दरवाजे के बाहर तेरी जूतियां ना पाई,
परिंडे से लेकर बाड़े तक,
छत से लेकर चौबारे तक,
तुझे ढूंढ आई पर तू कहीं ना पाई,
मां तू बहुत याद आई,
पैदल चलकर मैं खेतों में आई,
कुंडे के किनारे बनी तेरी झाोपड़ी में से भी
तूने मुझे आवाज ना लगाई
मां तू बहुत याद आई
मेरे अधिकारों के लिए तू सदा खड़ी रही
बिना पढ़े भी तूने मुझे संपूर्ण सृष्टि की
रीति नीति कुछ ही सालों में समझाई।
जब लोगों ने ताने दिए कि सास ने
तुझे सबक नहीं सिखाया,
तो तेरी दी हुई नसीहतें और सलाह ही
मेरे बहुत काम आईं।
मां तू बहुत याद आई।
उच्च शिक्षा के शिखर तक तूने मुझे पहुंचाया
तस्वीर लेते समय बाहर तो मुस्कुराई
अंतर्मन में तू ही मां समाई,
तेरी कोख से पैदा ना हुई
बस इसी की बेचैनी मुझे ताउम्र सताई
मां तू बहुत याद आई।
भगवान मैंने ना देखा पर तेरे संघर्ष के
आगे सदा अपनी आंखें नम ही पाईं।
और क्या लिखती तेरे बारे में मां
अब कलम भी ना चल पाई
मां तू बहुत याद आई।
त्योहारों से पहले सौ बार फोन आ जाया करता था
इस होली पर तेरा फोन ना आया
तेरे जाने के बाद हॉल में तेरी तस्वीर लगाई
मां तू बहुत याद आई।
तेरे आशीर्वाद से ही मैंने अपनी जिंदगी आगे बढ़ाई,
खुशकिस्मत वालों को मिलती है दो मांएं
पीहर से लेकर ससुराल तक
मैंने अपने विचारों में सदा आजादी पाई
मां तू बहुत याद आई
तू कहती थी ना मां आमली के पत्ते पर मौज करो
मैं सदा ही आपके आशीर्वाद से मौज करती आई
मां तू बहुत याद आई।
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