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Rajasthan: स्पेशल एजुकेशन टीचर भर्ती में कोर्ट से बड़ी राहत, पीजी डिप्लोमा के समान होगा सामान्य बीएड कोर्स

Rajasthan News: राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर बेंच ने विशेष शिक्षा (स्पेशल एजुकेशन) टीचर भर्ती में बड़ी राहत प्रदान की है।

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Rajasthan Highcourt

पत्रिका फाइल फोटो

Rajasthan News: राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर बेंच ने विशेष शिक्षा (स्पेशल एजुकेशन) टीचर भर्ती में बड़ी राहत प्रदान की है। कोर्ट ने सामान्य बीएड डिग्री के साथ विशेष शिक्षा में दो साल का पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा रखने वाले उम्मीदवारों को बीएड स्पेशल एजुकेशन के समकक्ष मानते हुए राज्य सरकार को नियुक्ति प्रक्रिया में विचार करने का निर्देश दिया है।

जस्टिस मुन्नूरी लक्ष्मण की एकलपीठ ने तीन अलग-अलग रिट याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। इन याचिकाओं में 13 जिलों के कुल 41 अभ्यर्थी शामिल थे, जिन्हें पहले अयोग्य घोषित कर दिया गया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं की योग्यता सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व फैसले से भी बेहतर स्थिति में है, क्योंकि उनके पास एक साल के बजाय दो साल का डिप्लोमा है।

भर्ती विज्ञापन और विवाद की जड़

राज्य सरकार ने 16 दिसंबर 2022 को टीचर ग्रेड III लेवल-II (स्पेशल एजुकेशन) के पदों के लिए विज्ञापन जारी किया था। विज्ञापन में निर्धारित योग्यता बीएड स्पेशल एजुकेशन रखी गई थी। याचिकाकर्ताओं के पास सामान्य बीएड डिग्री तो थी, लेकिन विशेष शिक्षा में दो साल का पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा (पीजी डिप्लोमा इन स्पेशल एजुकेशन) था। इसके बावजूद उन्हें भर्ती प्रक्रिया से बाहर कर अयोग्य घोषित कर दिया गया। इससे नाराज अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और राज्य सरकार की इस कार्रवाई को चुनौती दी।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने कोर्ट में मजबूत तर्क दिए। उन्होंने कहा कि सामान्य बीएड और दो साल का पीजी डिप्लोमा इन स्पेशल एजुकेशन को मिलाकर इसे बीएड स्पेशल एजुकेशन के बराबर माना जाना चाहिए। वकील ने सुप्रीम कोर्ट के मनोज कुमार शर्मा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य के ऐतिहासिक फैसले का हवाला दिया।

उस फैसले में स्पष्ट किया गया था कि सामान्य बीएड के साथ एक साल का पोस्ट ग्रेजुएट प्रोफेशनल डिप्लोमा इन स्पेशल एजुकेशन (PG PD-SE) को बीएड स्पेशल एजुकेशन के समकक्ष माना जाएगा। याचिकाकर्ताओं ने जोर देकर कहा कि उनके पास तो दो साल का डिप्लोमा है, जो एक साल के डिप्लोमा से कहीं बेहतर और व्यापक है। इसलिए उनकी योग्यता को अस्वीकार करना गलत है।

राज्य सरकार का पक्ष और कोर्ट की टिप्पणी

राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले में स्थापित कानूनी सिद्धांत पर कोई विवाद नहीं किया। हालांकि, उन्होंने शर्त रखी कि याचिकाकर्ताओं के मामलों पर विचार तभी किया जा सकता है, जब वे मेरिट के सभी मापदंड पूरे करते हों और जिस श्रेणी में उन्होंने आवेदन किया है, उसमें रिक्तियां उपलब्ध हों। कोर्ट ने इस पक्ष को ध्यान में रखते हुए अपना फैसला सुनाया।जस्टिस मुन्नूरी लक्ष्मण ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विस्तार से जिक्र किया और कहा कि याचिकाकर्ताओं का मामला उस संदर्भ केस से कहीं मजबूत है।

सुप्रीम कोर्ट ने एक साल के डिप्लोमा को समकक्ष माना था, जबकि यहां दो साल का डिप्लोमा है, जो उम्मीदवारों को और अधिक योग्य बनाता है। कोर्ट ने राज्य सरकार को सख्त निर्देश दिए कि याचिकाकर्ताओं की योग्यता- सामान्य बीएड प्लस विशेष शिक्षा में दो साल का पीजी डिप्लोमा को बीएड स्पेशल एजुकेशन के बराबर मानते हुए नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल किया जाए। प्रतिवादी अधिकारियों को मेरिट, श्रेणी और उपलब्ध रिक्तियों के आधार पर विचार करना होगा।

कोर्ट ने समयसीमा भी निर्धारित की। पूरे प्रक्रिया को इस आदेश की तिथि से दो महीने के अंदर पूरा करने का निर्देश दिया गया है। इससे अभ्यर्थियों में उम्मीद जगी है कि जल्द ही उन्हें न्याय मिलेगा।

प्रभावित जिलों और अभ्यर्थियों की सूची

ये राहत 13 जिलों के 41 अभ्यर्थियों को मिली है। याचिकाएं जोधपुर, नागौर, भरतपुर, बुंदी, हनुमानगढ़, भीलवाड़ा, टोंक, बीकानेर, चुरू, झुंझुनू, गंगानगर, अलवर और अजमेर जिलों से दायर की गई थीं। प्रमुख याचिकाकर्ताओं में जोधपुर के लोहावट निवासी राजाराम, पोपावास निवासी नीतू चौधरी, भरतपुर के बादली निवासी जगदीश सिंह, बुंदी के उमराज निवासी मीनाकुमारी नागर, चुरू के धंधोल केख निवासी भाटेरी देवी, झुंझुनू के इंडाली निवासी अनीता सिंह और हनुमानगढ़ के चक-22 निवासी शकीला शामिल हैं। इनके अलावा अन्य 34 अभ्यर्थी भी इस फैसले से लाभान्वित होंगे।