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अंतत: अपने मूल स्वरूप में आया धवारी तालाब, अगोर-चरनोई म.प्र. शासन दर्ज

तालाब की जमीने खुर्द-बुर्द कर निजी स्वामित्व में कर ली गई थी, अब वापस शासकीय हुईं

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dhawari talab

सतना। धवारी के ऐतिहासिक तालाब की सभी जमीनें अब अपने मूल स्वरूप में दर्ज करते हुए मध्यप्रदेश शासन के स्वामित्व में कर दी गईं है। यह बहुचर्चित और बहुप्रतीक्षित फैसला एसडीएम रघुराजनगर सिटी राहुल सिलाडिया ने किया है। इसके साथ ही तालाब की बेशकीमती लोक महत्व की आराजियां जो जमीन कारोबारियों द्वारा खुर्द-बुर्द की जा चुकीं थी, वे सभी राजस्व रिकार्डों में शासकीय दर्ज करने तहसीलदार रघुराजनगर को आदेशित किया गया है। उल्लेखनीय है इस मामले को पत्रिका ने प्रमुखता से उठाया था। जिसे संज्ञान में लेते हुए कलेक्टर डॉ सतीश कुमार एस ने इस मामले की विस्तृत जांच के निर्देश दिए थे। इस आदेश के बाद अब 65 भू-स्वामियों की जमीनें म.प्र. शासन की हो जाएंगी।

राजशाही जमाने से था क्षेत्र का प्रमुख तालाब

धवारी स्थित तालाब राजशाही जमाने से क्षेत्र का प्रमुख तालाब था। तत्समय में जलभराव क्षेत्र के अलावा इसकी आराजी नंबर 503 और 504 धवारी तालाब का अगोर ( जिस हिस्से से कैचमेंट एरिया का पानी तालाब में आता है) और चरनोई दर्ज था। इसी के साथ लगी आराजी नंबर 514 और 515 गटोर और भीटा मरघट दर्ज रही जो तत्समय लोगों द्वारा श्मशान के रूप में उपयोग की जा रही थी। कालान्तर में इन आराजियों को नियम विपरीत जाकर निजी स्वत्व में अंतरित करते हुए भूमि के स्वरूप को परिवर्तित कर दिया गया। जबकि तालाब या जल संरचना के किसी भी हिस्से के स्वरूप को परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। लिहाजा इस मामले में मिली शिकायत को संज्ञान में लेते हुए एसडीएम रघुराजनगर सिटी ने तहसीलदार रघुराजनगर सौरभ मिश्रा से प्रतिवेदन तलब किया। तहसीलदार ने इन आराजियों की जांच संवत 1983 (वर्ष 1926) के रिकार्डों से सिलसिलेवार करते हुए वस्तुस्थिति का जांच प्रतिवेदन एसडीएम को प्रस्तुत किया। जिसमें उन्होंने बताया कि आराजी क्रमांक 503/1/2, 503/2/5, 503/1/1/1/1/3, 503/1/1/1/6, 503/1/7/2, 504/2/2, 505, 516, 518 सभी बटांकों सहित पूर्व में तालाब एवं तालाब की मेड़ दर्ज रही। तहसीलदार ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि विन्ध्य प्रदेश मालगुजारी एवं काश्तकारी अधिनियम 1953 की धारा 149 और रीवा लैण्ड रेवन्यू एण्ड टेनेन्सी कोड 1935 के तहत यह भूमियां निजी स्वत्व की भूमियां नहीं मानी जा सकती हैं। इसके अलावा यह भी बताया कि ये जमीने निजी स्वत्व में बिना सक्षम अधिकारी के आदेश के बदली गई हैं। जितने भी निजी स्वत्वधारी भूमि स्वामी इसमें रहे कोई भी न तो इन जमीनों के पट्टेदार थे न ही काश्तकार थे। सामान्य भाषा में इसे समझे तो राजस्व अमले और अधिकारियों की मिलीभगत से इनके नाम राजस्व अभिलेखों में सीधे इंट्री कर दिए गए। लेकिन इस संबंध में किसी सक्षम अधिकारी ने कोई विधिक आदेश कभी नहीं किए।

पक्षकार नहीं दे सके जवाब

तहसीलदार की रिपोर्ट के बाद एसडीएम ने तालाब की वादग्रस्त भूमियों के मौजूदा 65 भूमि स्वामियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया। जिनमें भूमि स्वामियों ने 99 वर्ष पूर्व से भूमि स्वामी स्वत्व बताया और कहा कि यह जमीन कभी शासन की आराजी नहीं रही।सभी विक्रय और नामांतरण को वैध बताते हुए तहसीलदार के प्रतिवेदन को अपास्त करने निवेदन किया।

तालाब की महत्ता बताने धर्मग्रंथों के उद्धरण भी फैसले में दिए गए

सभी पक्षों को सुनने के बाद एसडीएम ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया कि तालाबों एवं सार्वजनिक स्थलों पर अतिक्रमण हटाकर उन्हें उनके मूल स्वरूप में पुनर्स्थापित किए जाने के निर्देश हैं। इसके साथ ही भारतीय धर्मशास्त्रीय परंपरा में जल के महत्व को सर्वोच्च बताने वाले ऋगवेद, अथर्व वेद, श्रीमद भागवतगीता, भागवत पुराण, स्मृति ग्रंथों, मनुस्मृति का उद्धरण देते हुए तालाब की महत्ता प्रतिपादित की। कहा, जल ही सृष्टि का मूल आधार है। लिहाजा धवारी तालाब को मूल स्थिति में लाना आवश्यक है।

प्रारंभिक अभिलेखों में नहीं था व्यक्ति विशेष का स्वामित्व

एसडीएम ने अपने फैसले में बताया है कि आराजी क्रमांक 503 व 504 राजस्व अभिलेखों के अनुसार मूल रूप से तालाब, अगोर, चरनोई, पानी मद में दर्ज रहा है और प्रारंभिक अभिलेखों में किसी व्यक्ति विशेष का स्वामित्व दर्ज नहीं था। तथ्यों के आधार पर यह भी स्पष्ट कर दिया कि इनका बटांक विभाजन विधि अनुरूप नहीं था और वर्तमान राजस्व अभिलेखों में दर्ज भूमि स्वामी, राजस्व रिकार्ड में नाम दर्ज होने के वास्तविक अधिकारी नहीं है। अंत में एसडीएम सिलाडिया ने अपने आदेश में कहा है कि धवारी की आराजी नंबर 503 एवं 504 के सभी बटांकों के कालम नंबर 3 में म.प्र. शासन और कॉलम नंबर 12 में धवारी तालाब - अहस्तांतरणीय सार्वजनिक निस्तार उल्लेखित किया जाए। यह प्रकरण रामनरेश पाण्डेय की ओर से अधिवक्ता कमलरंजन त्रिपाठी ने प्रस्तुत किया था।

स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का रास्ता साफ

इस आदेश के बाद अब धवारी तालाब सौंदर्यीकरण के रुके काम का भी रास्ता साफ होता नजर आ रहा है। इस फैसले से स्मार्ट सिटी प्रबंधन उत्साहित है और उनका कहना है कि अब जल्द ही तालाब सौंदर्यीकरण के रुके काम की प्रक्रिया प्रारंभ करेंगे।