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Chhath Puja Kharna Date 2025: जानिए खरना की तारीख, महत्व और छठ पूजा में इसका खास स्थान

Chhath Puja Kharna Date 2025: छठ पूजा महापर्व चार दिनों तक चलने वाला व्रत और आस्था का उत्सव है, जिसमें प्रत्येक दिन का विशेष महत्व होता है। ऐसे में कुछ लोगों के मन में यह सवाल होता है कि खरना कब होता है।

2 min read

भारत

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MEGHA ROY

Oct 21, 2025

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Importance of Kharna in Chhath Puja|फोटो सोर्स – Freepik

Chhath Puja Kharna Date 2025: छठ पूजा महापर्व है, जो श्रद्धा, आस्था और प्रकृति के प्रति समर्पण का प्रतीक माना जाता है। यह विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के लोगों के बीच बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व चार दिनों तक चलने वाला व्रत और आस्था का उत्सव है, जिसमें प्रत्येक दिन का विशेष महत्व होता है। ऐसे में कुछ लोगों के मन में यह सवाल होता है कि खरना कब होता है, यह शुभ पर्व क्या है और छठ पूजा में इसका क्या महत्व है। यदि आपके मन में भी यही सवाल है, तो आगे इसकी जरूरी जानकारी दी गई है।

Chhath Puja 2025: कब है खरना?


इस साल छठ पूजा की शुरुआत शनिवार, 25 अक्टूबर 2025 को नहाय-खाय के साथ होगी। इसके बाद 26 अक्टूबर (रविवार) को खरना का आयोजन होगा, जो छठ पर्व का दूसरा और अत्यंत महत्वपूर्ण दिन होता है।

क्या होता है खरना?

छठ पूजा के दूसरे दिन को 'खरना' कहा जाता है। इसे लोहंडा भी कहा जाता है। इस दिन व्रती एक दिन के उपवास के बाद शाम को पवित्र भोजन करते हैं, जिसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। इस दिन का व्रत पूरी तरह पवित्रता और नियमों के साथ रखा जाता है, क्योंकि मान्यता है कि इसी दिन छठी मैया का आगमन व्रती के घर होता है।
खरना का मुख्य उद्देश्य है शुद्धता और संयम। इस दिन शरीर और मन की पूर्ण पवित्रता का पालन करते हुए विशेष पकवान बनाए जाते हैं। एक बार खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद अगले 36 घंटे तक व्रती निर्जला उपवास रखते हैं।

छठ पूजा 2025 की तिथियां एक नजर में

  • 25 अक्टूबर (शनिवार) – नहाय-खाय
  • 26 अक्टूबर (रविवार) – लोहंडा और खरना
  • 27 अक्टूबर (सोमवार) – संध्या अर्घ्य (शाम 5:10 से 5:58 बजे तक)
  • 28 अक्टूबर (मंगलवार) – प्रातः अर्घ्य (सुबह 5:33 से 6:30 बजे तक)

खरना की पूजा विधि


खरना की शाम व्रती नए मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर गुड़ और चावल की खीर बनाते हैं। यह खीर पीतल या मिट्टी के बर्तन में बनाई जाती है। इसके साथ ही गेहूं के आटे से बनी पूड़ी या रोटी, और कई जगहों पर ठेकुआ भी तैयार किया जाता है।भोजन पकने के बाद इसे सबसे पहले छठी मैया को भोग लगाया जाता है। फिर व्रती इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं। इसके बाद ही अगला चरण शुरू होता है 36 घंटे का निर्जला उपवास, जिसमें जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं की जाती।