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जीवन का आधार, कुंडलिनी के सात चक्र

- नाड़ियां शरीर में किसी न किसी स्थान पर जरूर मिलती हैं, जिसे नाड़ियों का संगम स्थान कहा जाता है। इस संगम स्थान को ही ‘चक्र’ कहते हैं। इन चक्रों का अपना खास महत्त्व होता है।

Deepesh Tiwari

Sep 30, 2023

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भारतीय सनातन धर्म परंपरा में मानव जीवन के श्रेष्ठतम आयामों को अंगों और संबंधित उपागम से जोड़ा गया है। इंसान जीवन में स्वयं को खुश रख सकता है। यदि यह सोच व्यावहारिक जीवन में सफलता के लिए है, तो उसको भौतिक दृष्टिकोण से सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए। यह सोच आध्यात्मिक है, तो उसे वैज्ञानिक ढंग से अनुभव करने की आवश्यकता है। मानव जीवन में शरीर की कुंडलियों का एक अलग विज्ञान है। सात चक्र सात विशेष प्रकार के तत्त्वों का उल्लेख करते हैं। हालांकि कुंडलियों की हम बात करेंगे तो इसकी एक विशेष योग मुद्रा भी है, जो शरीर के अलग-अलग अंगों को एक नियत अवस्था में सुकेंद्रित करके सुप्त अवस्था से जागृत अवस्था की ओर ले जाती है या यह कहा जा सकता है कि अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाने की यह विशिष्ट यात्रा है। कुंडली के सात चक्र जो जीवन को ज्ञान तथा विज्ञान की तार्किक संचेतनाओं से जोड़कर अनुभूतियों के समुद्र को स्पर्श करते हैं। इन सात चक्र के बिना जीवन संभव नहीं है। मानव शरीर के सात चक्र का उल्लेख अलग-अलग प्रकार की ऊर्जा से संलिप्त हैं।

मूलाधार चक्र
कुंडलिनी चक्र का प्रथम चक्र मूलाधार चक्र है। इसे कुलकुंडलिनी का मुख्य स्थान कहा जाता है। मूलाधार चक्र अनुत्रिक के आधार में स्थित है। आध्यात्मिक रूप से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का नियंत्रण करता है। यहां से साधक तप या योग के माध्यम मूल लक्ष्य की ओर बढ़ सकता है। वैज्ञानिक गणना से देखें तो अपने तार्किक ज्ञान को आगे बढ़ाने में यह पहला पड़ाव है।

स्वाधिष्ठान चक्र
दूसरे स्थान पर स्वाधिष्ठान चक्र है। सिंदूरी षट् दलीय कमल की आकृति लिए हुए यह स्थान मूलाधार चक्र से कुछ स्थान ऊपर अपनी ऊर्जा को स्थिर करके आगे बढ़ने का कार्य करता है। यहां तक आने में एकाग्रता के साथ समर्पण का भाव जागृत करना पड़ता है। यह चक्र संतुलित होने पर व्यक्ति का ध्यान भौतिक सुखों पर नहीं जाता। यह चक्र जागृत होता है, तो विचार नियंत्रित होते हैं।

मणिपुर चक्र
योग शास्त्र में नाभि चक्र को मणिपुर चक्र कहते हैं। तीसरा चक्र मणिपुर नाभि क्षेत्र के ठीक ऊपर पेट पर स्थित होता है। 10 दलवाला यह कमल का चित्र अनुभूत करते हुए इंद्रियों को एकाग्रचित करने में परम सहायक है। मणिपुर चक्रआते-आते साधक खुद को एकाग्रचित्त करते हुए अपने मूल लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। यह ईर्ष्या, विषाद, तृष्णा, घृणा और भय आदि को नियंत्रित करता है।

अनाहत चक्र
अनाहत चौथा चक्र हृदय के समीप सीने के मध्य भाग में स्थित है। यह साधक को अपनी पूर्ण यात्रा का लक्ष्य तय करने की प्रेरणा देता है। इच्छा की पूर्ति करनी हो, तो अपने हृदय में इसे एकाग्रचित्त करें। अनाहत चक्र जितना अधिक शुद्ध होगा, उतना शीघ्रता से इच्छा पूरी होगी।

विशुद्धि चक्र
पांचवें स्थान पर आने वाला विशुद्धि चक्र ऊर्जा, विशिष्ट सोच को देने वाला है। यह नकारात्मकता को दूर कर साधक को विज्ञान और अध्यात्म का उत्तर देने का आत्म-अनुभव कराता है। यह गले के कंठ के पास होता है। इस चक्र को शुद्धि केंद्र के रूप में जाना जाता है।

आज्ञा चक्र
छठे स्थान पर आने वाला आज्ञा चक्र साधक का बड़ा ही कोमल स्थान है। आज्ञाचक्र भौंहों के बीच माथे के केंद्र में स्थित होता है। आज्ञा चक्र को जागृत करने वाला निरोगी और त्रिकालदर्शी बन जाता है। इस चक्र को योग साधनाओं से जागृत किया जा सकता है।

सहस्रार चक्र
सातवें चक्र को परम बिंदु की संज्ञा दी गई है। इसे शुद्ध चेतना का चक्र माना जाता है। यह मस्तक के ठीक बीच में ऊपर की ओर स्थित होता है। यह साधक को परिणाम की प्राप्ति का दर्शन तो कराएगा, साथ ही बेहतर क्या हो सकता है, उसका अनुभव भी इसके जरिए होगा।