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UP Politics: रामपुर में सियासी संग्राम! आजम खान के तंज पर भड़के नदवी, तुर्क बिरादरी में बढ़ी बेचैनी

UP Politics: रामपुर की सियासत में आजम खान और मौलाना मोहिब्बुल्लाह नदवी आमने-सामने हैं। जेल से रिहाई के बाद आजम के तंज और नदवी के बागी तेवर से सपा में दरार की चर्चा तेज हो गई है। तुर्क बिरादरी की नाराजगी ने आगामी चुनावों की दिशा को लेकर सियासी माहौल गरमा दिया है।

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UP Politics: रामपुर में सियासी संग्राम! Image Source - 'X'

UP Politics News Hindi: सपा के वरिष्ठ नेता और रामपुर की राजनीति के केंद्र माने जाने वाले आजम खान के जेल से रिहा होने के बाद जिले की सियासी फिज़ा एक बार फिर तपने लगी है। वार-पलटवार का दौर तेज है। मौलाना मोहिब्बुल्लाह नदवी, जो लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे हैं, अब खुलकर आजम खान के खिलाफ बोल रहे हैं। आजम के तंज ने नदवी को मुखर बना दिया है और अब वह सीधे सपा की अंदरूनी राजनीति में बिगुल फूंक चुके हैं, जिससे समाजवादी पार्टी के भीतर दो फाड़ की आशंका गहराने लगी है।

तुर्क बिरादरी बनेगी संतुलन की कुंजी

रामपुर की राजनीति में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं और उनमें भी तुर्क बिरादरी की हिस्सेदारी सबसे अधिक मानी जाती है। अब तक इस बिरादरी का झुकाव सपा की ओर रहा है, लेकिन मौजूदा विवाद ने समीकरणों को अस्थिर कर दिया है। संसद में प्रवेश करने वाले पहले तुर्क बिरादरी के प्रतिनिधि मोहिब्बुल्लाह नदवी का विरोध अगर जारी रहता है, तो यह बिरादरी के मतदाताओं को दो हिस्सों में बांट सकता है, जिससे सपा के लिए बड़ा झटका तय है।

अखिलेश संग समीकरण और आजम की चुप्पी

दिलचस्प यह है कि नदवी अपने बयानों में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की तारीफ करते नहीं थकते। वे खुद को संगठन के प्रति वफादार बताने की कोशिश कर रहे हैं। पर दूसरी ओर, आजम खान की चुप्पी सबको हैरान कर रही है। मीडिया के सवालों पर आजम ने साफ कहा कि वह इस मामले पर बोलना नहीं चाहते। सवाल वही है क्या यह चुप्पी तूफान से पहले की शांति है? अगर तुर्क बिरादरी नाराज़ हुई, तो आने वाले चुनावों में इसके गंभीर नतीजे देखने को मिल सकते हैं।

नदवी के टिकट से सुलगा विवाद

रामपुर में सियासी मतभेदों की शुरुआत 2024 लोकसभा चुनाव से हुई, जब आजम खान ने अखिलेश यादव को इस सीट से चुनाव लड़ने का निमंत्रण दिया था। अखिलेश ने इंकार किया तो आजम के करीबी आसिम राजा और अजय सागर ने चुनाव बहिष्कार की बात कही। इस बीच सपा हाईकमान ने संसद की मस्जिद के इमाम मौलाना मोहिब्बुल्लाह नदवी को टिकट देकर मैदान में उतार दिया और वे ऐतिहासिक जीत दर्ज कर संसद पहुंचे। यहीं से आजम खान की नाराजगी की जड़ें मजबूत हो गईं, जो आज बगावत की शक्ल ले रही हैं।

17 लाख वोटरों में सियासी संतुलन की तलाश

रामपुर लोकसभा सीट पर कुल लगभग 17 लाख 25 हजार मतदाता हैं, जिनमें मुस्लिमों की संख्या करीब 9 लाख 22 हजार के आसपास है। इनमें तुर्क बिरादरी के 2 लाख 19 हजार, अंसारी 1 लाख 26 हजार, पठान 1 लाख 25 हजार और अल्वी व शेख मिलकर लाखों वोटों का असर रखते हैं। हिंदू मतदाताओं की संख्या लगभग 7 लाख 94 हजार है। ऐसे में वोटों का यह बारीक गणित बताता है कि सियासी समीकरणों में किसी एक समुदाय की हल्की नाराजगी भी नतीजों को हिला सकती है।

रामपुर की सियासत में अगली चाल किसकी होगी?

फिलहाल जुबानी जंग थमी जरूर है, लेकिन तनाव की परतें गहराई में हैं। आजम की चुप्पी और नदवी के तेवर दोनों सवाल खड़े कर रहे हैं कि आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में सपा का किला संभल पाएगा या नहीं। रामपुर की गलियों में चर्चाएं गर्म हैं कि अगर तुर्क बिरादरी ने नाराजगी दिखाई, तो यह सपा की सबसे बड़ी हार साबित हो सकती है। फ़िलहाल सभी निगाहें इस राजनीतिक पहेली के अगले मोड़ पर टिक गई हैं।


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