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Nigam News: हर माह 17 टन फिटकिरी और बिजली पर सवा 3 करोड़ खर्च कर शहर में जलापूर्ति

। फिल्टर प्लांट के तकनीकी जानकार बताते हैं कि चूंकि बरसात के दिनों में नदी का पानी ज्यादा मटमैला होता है, इसलिए बरसात के चार महीने में सबसे ज्यादा 500 टन फिटकिरी की खपत होने पर पीने लायक पानी तैयार होता है।

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Nigam News: हर माह 17 टन फिटकिरी और बिजली पर सवा 3 करोड़ खर्च कर शहर में जलापूर्ति

Nigam News: हर माह 17 टन फिटकिरी और बिजली पर सवा 3 करोड़ खर्च कर शहर में जलापूर्ति

शहर के लोगों की प्यास बुझाने के लिए रावणभाठा का फिल्टर प्लांट 24 घंटे चलता है, तब जाकर खारुन नदी से आने वाला पानी शुद्ध पेयजल के रूप में तैयार होता है । इस प्रक्रिया में इस समय हर महीने 17 टन फिटकिरी खप रही है। प्लांट के सैम्पवेल टैंक में क्लोरिन के बड़े-बड़े सिलेंडर मशीन के माध्यम से पानी को बैक्टीरिया रहित बनाने का काम किया जाता है। इसके बाद 150 किमी हाई प्रेशर पाइप लाइन से शहर की 47 टंकियां भरती हैं, तभी सुबह-शाम डिस्ट्रीब्यूशन लाइन से लोगों के घरों के नलों में पानी पहुंचता है। इसके बावजूद नलों में गंदा पानी आने की शिकायतों की बड़ी वजह पाइप लाइन और वॉल्व में लीकेज का होना है। यही बड़ी समस्या है।

24 घंटे चालू रहता है फिल्टर प्लांट तब पीने लायक पानी से भरती हैं 47 टंकियां

जैसे-जैसे शहर की बसाहट और आबादी का दायरा बढ़ा है, उस हिसाब से फिल्टर प्लांट का भी विस्तार हुआ। 1950 में पहला प्लांट केवल 13.5 एमएलडी का चालू हुआ, उसी से लोगों को पेयजल की आपूर्ति होती थी। इसके बाद इस प्लांट का विस्तार कर 22.5 एमएलडी क्षमता बढ़ाई गई। इस तरह सबसे पुराना प्लांट 47.5 क्षमता के साथ आज भी चालू है। इसी प्लांट के बाजू में 13.5 एमएलडी क्षमता का दूसरा प्लांट 1981 में चालू हुआ। इन दोनों प्लांटों से ही राज्य बनने के समय तक शहर के लोगों की प्यास बुझती थी, लेकिन अब हर दिन 300 एमएलडी क्षमता के प्लांट से खारुन नदी के पानी को शुद्ध कर शहर में 280 से 290 एमएलडी जलापूर्ति की जा रही है। फिल्टर प्लांट के तकनीकी जानकार बताते हैं कि चूंकि बरसात के दिनों में नदी का पानी ज्यादा मटमैला होता है, इसलिए बरसात के चार महीने में सबसे ज्यादा 500 टन फिटकिरी की खपत होने पर पीने लायक पानी तैयार होता है।

बरसात के पानी में 200 से 300 एनटीयू टर्बिडिटी

जुलाई में बरसात का पानी नदी से सीधे प्लांट में आना शुरू हुआ तब जांच में पानी काफी दूषित था। इसमें टर्बिडिटी की मात्रा 200 से 300 यूनिट निकली, फिर धीरे-धीरे साफ आने पर यह मात्र केवल 50 एनटीयू हो गई। फिल्टर प्लांट की प्रयोगशाला में इसी रॉ वाटर का शुद्धिकरण करके 2 एनटीयू तक करना पड़ता है, जब जाकर खारुन नदी का पानी पीने लायक होता है। फिल्टर प्लांट के इंजीनियर बताते हैं कि नदी का रॉ वाटर कितनी मात्रा में अमलीय और क्षारीय है। इसे मापने के लिए नेफेलोमेट्रिक टर्बिडिटी यूनिट (एनटीयू) का उपयोग करना जरूरी होता है। उसी हिसाब से फिटकिरी की मात्रा तय की जाती है और कीटाणुरहित बनाने के लिए 2 पीपीएम से लेकर 2.5 पीपीएम तक क्लोरिन की मात्रा तय होती है। हर घंटे जांच का मानक तय किया गया है। ऐसी प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद ही पेयजल आपूर्ति की जाती है।

3 से 4 फीट के लेयर में छन कर निकलता है पानी

खारुन नदी से रॉ वाटर सीधे फिल्टर प्लांट की छतों पर कंक्रीट की बनी टंकियों में पहुंचता है। जिसे सीमेंट की नालियों से कनेक्ट किया गया है। जिस जगह पर पानी की धार गिरती है, वहीं पर फिटकिरी डालने का काम होता है, जो घुलते हुए टंकियों में फिर 3 से 4 फीट लेयर से छनकर पानी सैम्पवेल टैंक में पहुंचता है। इंजीनियरों के अनुसार शहर के लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने की प्रक्रिया में हर महीने फिल्टर प्लांट का सवा 3 करोड़ बिजली का बिल आता है। जल शुद्धिकरण के लिए प्लांट 24 घंटे चालू रहता है, तब जाकर सुबह-शाम टंकियों से जलापूर्ति होती है।