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पूर्व CM अशोक गहलोत ने बिहार में चलाया ‘जादू’, 24 घंटे में बदल दिया पासा; कैसे बने कांग्रेस के संकटमोचक?

Bihar Assembly Elections 2025: राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वे कांग्रेस के लिए किसी संकटमोचक से कम नहीं हैं।

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Former CM Ashok Gehlot

फोटो- पत्रिका नेटवर्क

Bihar Assembly Elections 2025: राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वे कांग्रेस के लिए किसी संकटमोचक से कम नहीं हैं। बिहार में महागठबंधन की एकता को लेकर उठ रहे सवालों के बीच गहलोत ने अपनी कूटनीतिक चालों से 24 घंटे से भी कम समय में स्थिति को संभाल लिया।

उनकी सादगी और मृदुभाषी स्वभाव के पीछे छिपा है एक गहरा रणनीतिक दिमाग, जो राजनीतिक संकटों को सुलझाने में माहिर है। बिहार में महागठबंधन के नेताओं के बीच तनाव को कम करने और एकजुटता का संदेश देने में गहलोत की भूमिका ने एक बार फिर उनकी राजनीतिक सूझबूझ को दिखाया है।

बिहार में गहलोत का चला जादू

दरअसल, बिहार में महागठबंधन की एकता को लेकर हाल के दिनों में कई तरह की अटकलें चल रही थीं। राजद, कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों के बीच समन्वय की कमी की खबरें सामने आ रही थीं। ऐसे में कांग्रेस आलाकमान ने इस स्थिति को सुलझाने की जिम्मेदारी अशोक गहलोत को सौंपी।

गहलोत ने बिहार पहुंचते ही सभी प्रमुख नेताओं से मुलाकात की और उनकी शंकाओं को दूर किया। उनकी मध्यस्थता का नतीजा यह रहा कि महागठबंधन ने जल्द ही एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की, जिसमें सभी दलों ने एकजुट होकर आगामी चुनाव मजबूती से लड़ने का भरोसा जताया। गहलोत ने नेताओं को एक मंच पर लाने का काम किया, साथ ही मीडिया के सामने भी महागठबंधन की एकता का मजबूत संदेश दिया।

गहलोत की यह उपलब्धि कोई नई बात नहीं है। उनकी सादगी और सहज स्वभाव के पीछे एक ऐसा राजनेता छिपा है, जो संकट के समय में ठंडे दिमाग से रणनीति बनाता है और उसे अमल में लाता है। उनकी यह खासियत उन्हें कांग्रेस के सबसे भरोसेमंद नेताओं में से एक बनाती है।

कूटनीति के पुराने खिलाड़ी

अशोक गहलोत का राजनीतिक करियर पांच दशकों से अधिक का रहा है। इस दौरान उन्होंने कई बार अपनी कूटनीतिक क्षमता का परिचय दिया है। 2017 में गुजरात में अहमद पटेल के राज्यसभा चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग का संकट खड़ा हो गया था। उस समय गहलोत ने देर रात सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला लिया, जिससे स्थिति को नियंत्रित करने में मदद मिली। उनकी यह रणनीति कांग्रेस के लिए निर्णायक साबित हुई थी।

इसी तरह, 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव में गहलोत ने 'सॉफ्ट हिंदुत्व' की रणनीति अपनाई। उन्होंने इस रणनीति के जरिए एक खास वोट बैंक को साधने की कोशिश की। पत्रकारों से बातचीत में वे अक्सर कहते थे कि हम हिंदू नहीं हैं क्या? क्या सिर्फ वे ही हिंदू हैं? उनकी यह रणनीति कांग्रेस को गुजरात में मजबूती देने की कोशिश थी, हालांकि परिणाम अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहे। फिर भी, गहलोत की रणनीति ने एक नई बहस को जन्म दिया।

हरियाणा-महाराष्ट्र में भी दिखाई कूटनीति

2024 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में कुमारी शैलजा और भूपेंद्र हुड्डा के बीच टकराव की स्थिति को देखते हुए गहलोत को चुनाव पर्यवेक्षक बनाया गया। उन्होंने दोनों नेताओं के बीच समन्वय स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। इसी तरह, महाराष्ट्र में भी गहलोत और सचिन पायलट को संयुक्त रूप से पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया था। इन दोनों राज्यों में गहलोत ने अपनी कूटनीतिक क्षमता का परिचय दिया और पार्टी के भीतर एकता बनाए रखने में मदद की।

यहां देखें वीडियो-


पायलट के साथ हुआ था टकराव

गहलोत और सचिन पायलट के बीच राजस्थान में लंबे समय से तनाव की खबरें रही हैं। 2022 में जब कांग्रेस हाईकमान राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन पर विचार कर रहा था, तब गहलोत ने अपनी रणनीति से बाजी पलट दी। उनके समर्थक विधायकों ने सामूहिक इस्तीफे की धमकी दी, जिसके बाद हाईकमान को अपना फैसला टालना पड़ा। यह कदम सोनिया गांधी को पसंद नहीं आया, लेकिन गहलोत की रणनीति ने साबित किया कि वे अपनी कुर्सी और संगठन पर अपनी पकड़ बनाए रखने में माहिर हैं।

भंवरी देवी केस में निर्णायक फैसला

गहलोत के राजनीतिक करियर का एक और महत्वपूर्ण पड़ाव था भंवरी देवी केस। उस समय राजस्थान में जाट समुदाय से मुख्यमंत्री बनाने की मांग जोरों पर थी। महिपाल मदेरणा का नाम सबसे आगे था, लेकिन भंवरी देवी केस ने उनके राजनीतिक करियर को खत्म कर दिया। गहलोत ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का फैसला लिया, जो एक बड़ा फैसला था।

गहलोत को पुराने रिश्तों का लाभ

गहलोत की ताकत उनके पुराने राजनीतिक रिश्तों में भी है। लालू प्रसाद यादव जैसे नेताओं के साथ उनके दशकों पुराने संबंध हैं। उनकी मृदुभाषी शैली और मुस्कराहट उन्हें सहज ही लोगों का भरोसा जीतने में मदद करती है। बिहार में महागठबंधन के संकट को सुलझाने के लिए पार्टी ने इसी भरोसे के साथ उन्हें जिम्मेदारी सौंपी। गहलोत ने इस मौके को बखूबी भुनाया और महागठबंधन को एकजुट करने में कामयाब रहे।

कांग्रेस के लिए संकटमोचक नेता

अशोक गहलोत की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे हर स्थिति में ठंडे दिमाग से काम लेते हैं। राजनीति के इस शतरंज में वे हर चाल सोच-समझकर चलते हैं। चाहे वह राजस्थान में अपनी कुर्सी बचाने की बात हो या बिहार में महागठबंधन को एकजुट करने की, गहलोत हर बार अपनी रणनीति से बाजी मार लेते हैं। बिहार में उनकी हालिया भूमिका ने एक बार फिर साबित किया कि वे पार्टी के लिए एक विश्वसनीय संकटमोचक भी हैं।