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EU की रूस की फ्रीज संपत्तियों पर नजर, यूक्रेन की मदद होने से भारत पर क्या पड़ेगा असर

Russian assets frozen by the EU. (Photo: The Washington Post, Design Patrika.)

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Russian Frozen Assets

रूस की संपत्तियों फ्रीज होने का भारत पर असर। फोटो डिजाइन: पत्रिका

Russian Frozen Assets: यूरोपीय संघ रूस की 300 अरब डॉलर की फ्रीज संपत्तियों (Russian Frozen Assets) का यूक्रेन की युद्ध सहायता के लिए इस्तेमाल करना चाहता है। सन 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के बाद इन संपत्तियों को फ्रीज किया गया था, जिनमें से 200 अरब डॉलर यूरोप में, मुख्य रूप से बेल्जियम के यूरोक्लियर में हैं। ईयू अब इन फंड्स को "क्षतिपूर्ति ऋण" के रूप में यूक्रेन (Russian Frozen Assets) को देने की सोच रहा है, ताकि रूस से युद्ध मुआवजा मिलने पर ही इसे चुकाया जाए। इस कदम से भारत के रूस के साथ रणनीतिक और आर्थिक संबंधों पर असर पड़ सकता है, क्योंकि भारत रूस से तेल और रक्षा उपकरणों का बड़ा खरीदार है। भारत पर इसका भूराजनीतिक (India Geopolitics) और आर्थिक असर भी पड़ सकता है, खासकर रूस के साथ उसके संबंधों के कारण यह असर अहम है।

भारत के लिए भू राजनीतिक और आर्थिक चिंताएं

भारत के लिए यह स्थिति जटिल है। रूस भारत का पुराना सहयोगी रहा है, और दोनों देशों के बीच रक्षा, ऊर्जा और व्यापार में गहरे संबंध हैं। यदि ईयू रूसी संपत्तियों का उपयोग करता है, तो रूस जवाबी कार्रवाई कर सकता है, जैसे कि पश्चिमी देशों की रूस में मौजूद संपत्तियों को जब्त करना। इससे वैश्विक व्यापार और ऊर्जा की कीमतों में उतार-चढ़ाव हो सकता है, जो भारत जैसे आयात-निर्भर देश को प्रभावित करेगा। इसके अलावा, भारत की तटस्थ विदेश नीति, जो रूस और पश्चिमी देशों के बीच संतुलन बनाए रखती है, इस कदम से दबाव में आ सकती है। भारत को अपनी कूटनीति को और सावधानी से संभालना होगा।

सोशल मीडिया और वैश्विक प्रतिक्रियाएं

इस खबर ने सोशल मीडिया, खासकर X पर, तीखी बहस छेड़ दी है। कई यूजर्स का कहना है कि रूसी संपत्तियों का उपयोग एक खतरनाक मिसाल कायम कर सकता है, जिससे अन्य देशों में विदेशी निवेश कम हो सकता है। कुछ भारतीय यूजर्स ने चिंता जताई कि यह भारत-रूस व्यापार को प्रभावित कर सकता है, खासकर सस्ते रूसी तेल की आपूर्ति को। दूसरी ओर, कुछ लोगों ने इसे यूक्रेन की मदद के लिए जरूरी कदम बताया। रूस ने इसे "चोरी" करार देते हुए कड़ी प्रतिक्रिया की धमकी दी है, जिससे वैश्विक तनाव बढ़ सकता है।

भारत की तटस्थता पर सवाल

यह घटना भारत की तटस्थ विदेश नीति को और जटिल बना सकती है। भारत ने यूक्रेन-रूस युद्ध में किसी भी पक्ष को स्पष्ट रूप से समर्थन देने से परहेज किया है। लेकिन अगर रूसी संपत्तियों का उपयोग होता है, तो रूस भारत से अपनी स्थिति स्पष्ट करने की मांग कर सकता है। इसके अलावा, भारत की ऊर्जा सुरक्षा भी दांव पर हो सकती है, क्योंकि रूस भारत को रियायती दरों पर तेल सप्लाई करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को इस स्थिति में अपनी कूटनीति को मजबूत करना होगा ताकि वह रूस और पश्चिमी देशों के बीच संतुलन बनाए रख सके।

इस मामले में अब आगे क्या होगा ?

ईयू की इस योजना को लागू करने के लिए 27 सदस्य देशों की सहमति जरूरी है, जिसमें बेल्जियम और हंगरी जैसे देश बाधा बन सकते हैं। अगर यह योजना दिसंबर 2025 में मंजूर हो जाती है, तो यूक्रेन को अगले साल से धन मिलना शुरू हो सकता है। भारत को इस दौरान रूस के साथ अपने व्यापारिक और रक्षा समझौतों की समीक्षा करनी पड़ सकती है। साथ ही, वैश्विक बाजारों में अस्थिरता से भारत की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है। यह देखना होगा कि भारत इस स्थिति में अपनी रणनीति कैसे बनाता है।

(वॉशिंग्टन पोस्ट का यह आलेख पत्रिका.कॉम पर दोनों समूहों के बीच विशेष अनुबंध के तहत पोस्ट किया गया है।)