Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

शहरी परिवहन नीति में सुरक्षा और गतिशीलता को प्राथमिकता दी जाए

प्रदीप मेहता, महासचिव, कट्स इंटरनेशनल

4 min read

जयपुर

image

Neeru Yadav

Sep 01, 2025

भारत में सड़क दुर्घटनाओं एवं उनसे होने वाली मृत्यु-दर की वृद्धि एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में सामने आई है। हाल ही सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की ओर से जारी की गई सड़क दुर्घटना रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, जिसमें बताया गया कि भारत में हुई कुल मौतों में से 68 फीसदी मौतें तेज गति(ओवर स्पीडिंग) के कारण हुई। गति का दुर्घटना के परिणाम की गंभीरता पर सीधा और निर्विवाद प्रभाव पड़ता है, क्योंकि मानव शरीर टकराव के दौरान उत्पन्न होने वाले बलों को सीमित स्तर तक ही सहन कर सकता है। वर्तमान में गति सीमा का निर्धारण प्रायः निर्धारित गति सीमा के आधार पर किया जाता है। इसलिए भारतीय संदर्भ में गति सीमा निर्धारण की वर्तमान प्रथाओं की समीक्षा करना आवश्यक है।
परंपरागत रूप से किसी सड़क की गति सीमा (जो सामान्यतः उसकी डिजाइन गति से संबद्ध होती है) सड़क की कार्यात्मक श्रेणी एवं भौगोलिक स्थिति (मैदानी, ढलवां, पर्वतीय अथवा तीव्र ढलान) को ध्यान में रखकर तय की जाती है। भारतीय सड़क कांग्रेस की ओर से विभिन्न प्रकार की शहरी एवं ग्रामीण सड़कों के लिए डिजाइन गति का निर्धारण किया गया है। भारतीय सड़क कांग्रेस ने यह अनुशंसा की है कि जहां सड़क इंजीनियरिंग संबंधी बाधाओं (जैसे दृष्टि दूरी का अभाव, तीव्र मोड़ आदि) के कारण डिजाइन गति पर यातायात संचालन सुरक्षित नहीं हो सकता, वहां गति सीमा को अपेक्षाकृत कम निर्धारित किया जाए। तथापि, केवल सड़क इंजीनियरिंग मानदंडों के आधार पर गति सीमा का निर्धारण पर्याप्त नहीं है, क्योंकि भारतीय सड़कों पर चलने वाले वाहनों की विशेषताएं (आयाम, पावर-टू-वेट अनुपात, त्वरक/मंदन क्षमता आदि) भिन्न-भिन्न हैं। इसी कारण सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की ओर से विभिन्न श्रेणियों के वाहनों के लिए पृथक-पृथक सुरक्षित गति सीमाएं अनुशंसित की गई हैं।
फिर भी, व्यवहार में ये सुरक्षित गति सीमाएं अपेक्षित सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर पाती हैं, क्योंकि वाहन चालक न तो लेन अनुशासन का पालन करते हैं और न ही वाहन श्रेणी के अनुसार लेन का उपयोग करते हैं। नवीनतम प्रौद्योगिकी से युक्त वाहन (विशेषकर कार एवं एसयूवी) तीव्र गति से बढ़कर उच्चतम गति प्राप्त कर लेते हैं। शहरी क्षेत्रों में सुरक्षित गैर-मोटर चालित यातायात (एनएमटी) अवसंरचना के अभाव में मोटर चालित एवं गैर-मोटर चालित यातायात का व्यापक मिश्रण देखने को मिलता है। इसके परिणामस्वरूप शहरी भारत में दुर्घटनाओं एवं मृत्यु-दर में असुरक्षित सड़क उपयोगकर्ताओं का अनुपात अत्यधिक है।
यद्यपि भारतीय सड़क कांग्रेस की ओर से विद्यालय क्षेत्र एवं बाज़ार क्षेत्र जैसे कुछ विशेष भू-उपयोग क्षेत्रों हेतु पृथक गति सीमा का प्रावधान किया गया है, तथापि अभी तक एक समग्र दृष्टिकोण से सड़क इंजीनियरिंग, यातायात इंजीनियरिंग एवं सड़क परिवेश (भूमि उपयोग, सड़क किनारे की गतिविधियां, ऑन-स्ट्रीट पार्किंग, लेन अनुशासन का अभाव, मिश्रित यातायात) को ध्यान में रखकर सुरक्षित गति सीमा का निर्धारण, सड़क मृत्यु-दर में कमी लाने के उद्देश्य से नहीं किया गया है। शहरी भारत में सड़क सुरक्षा की वर्तमान स्थिति की आलोचनात्मक समीक्षा कर सुरक्षित एवं यथार्थवादी गति सीमा का निर्धारण अत्यंत आवश्यक है।
भारत का शहरी सड़क नेटवर्क, कुल सड़क नेटवर्क का केवल 8.5% है, किंतु इसमें सड़क दुर्घटनाओं का 38% एवं मृत्यु-दर का 32% दर्ज होता है। साल 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में कुल 81,144 सड़क दुर्घटनाएँ दर्ज की गईं, जो 2022 की तुलना में 5.7% अधिक हैं और इनका राष्ट्रीय स्तर पर 17% हिस्सा है। इन शहरों में कुल 17,255 मौतें दर्ज हुईं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 1% अधिक हैं और राष्ट्रीय स्तर पर लगभग 10% हिस्सेदारी रखती हैं।
भारतीय सड़क कांग्रेस ने स्पष्ट किया है कि महानगरीय क्षेत्रों में शहरी सड़कों की डिजाइन ऐसी होनी चाहिए कि वाहन की गति 50 किमी/घं. से अधिक न हो। किंतु वर्तमान में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने शहरी क्षेत्रों में अधिकतम अनुमेय गति सीमा 70 किमी/घं. निर्धारित की है। वर्ष 2023 में भारतीय महानगरों में कुल सड़क मृत्यु-दर में असुरक्षित सड़क उपयोगकर्ताओं- पैदल यात्री, साइकिल चालक, दोपहिया चालक का अनुपात 70 % रहा।
कार चालकों एवं यात्रियों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त प्रगति हुई है, किंतु साइकिल चालको, पैदल यात्रियों व दुपहिया वाहन चालकों जैसे असुरक्षित समूहों की आवश्यकताओं की अनदेखी की गई है। भारतीय दोपहिया चालकों में हेलमेट का उपयोग अत्यंत कम है और जहां उपयोग होता भी है, वहां अक्सर हेलमेट निम्न-गुणवत्ता के होते हैं अथवा उचित रूप से बांधे नहीं जाते। फलस्वरूप सिर की चोट से मृत्यु की आशंका अत्यधिक रहती है। सड़क दुर्घटनाओं के कारण राष्ट्र को लगभग 5,96,820 करोड़ रुपए का वार्षिक सामाजिक-आर्थिक नुकसान होता है, जो राष्ट्रीय जीडीपी का 3.14% है। भारत 2020 से 2030 तक सड़क मृत्यु-दर में 50% की कमी लाने के लक्ष्य (एसडीजी टारगेट 3.6) को हासिल करने से अभी बहुत दूर है।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की ओर से जारी सड़क दुर्घटना रिपोर्ट में वर्ष 2023 में कुल 4,80,583 दुर्घटनाएँ दर्ज की गईं, जो वर्ष 2022 की तुलना में 4.18% अधिक हैं। इन दुर्घटनाओं में 1,72,890 मौतें हुईं (2022 की तुलना में 4.39% वृद्धि) और 4,62,825 लोग घायल हुए (2022 की तुलना में 2.16% वृद्धि)। भारत में हुई कुल मौतों में से 68% मौतें तेज़ गति (ओवर स्पीडिंग) के कारण हुईं। ओवर स्पीडिंग से मरने वालों में 66% युवा और 45% दोपहिया वाहन चालक/सवार थे।
इसी प्रकार राजस्थान में वर्ष 2023 में 24,694 दुर्घटनाएं दर्ज हुईं, जो वर्ष 2022 की तुलना में 1,080 अधिक (4.6% वृद्धि) हैं और राष्ट्रीय स्तर पर राजस्थान का स्थान 7वाँ रहा। राज्य में 11,762 मौतें दर्ज हुईं, जो लगभग 6% अधिक हैं और राष्ट्रीय स्तर पर 6वाँ स्थान है। वहीं, 23,041 लोग घायल हुए, जो 3.4% अधिक हैं और राष्ट्रीय स्तर पर 7वाँ स्थान है। राजस्थान में भी अधिकांश मौतें (9,697), चोटें (18,780) और दुर्घटनाएं (20,212) तेज़ गति (ओवर स्पीडिंग) के कारण हुईं।
हाल में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भी गति प्रबंधन को सुदृढ़ करने और तेज गति से वाहन चलाने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने की आवश्यकता पर जोर दिया है। सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों का भी मानना है कि गति प्रबंधन, सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करने का सबसे सस्ता और प्रभावी उपाय है। शहरी परिवहन नीति में केवल मोटर वाहनों की गतिशीलता से हटकर सभी सड़क उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा एवं गतिशीलता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।