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पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – भारतीय चुनो

हमारे अधिकारियों की समझ के तो हम सदा ही कायल रहे हैं। अभियान चलाकर पेड़ लगवाएंगे, सड़कें बनवाकर पेड़ कटवाएंगे। नए तो कोई लगाता ही नहीं।

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Gulab-Kothari

पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी (फोटो: पत्रिका)

हमारे अधिकारियों की समझ के तो हम सदा ही कायल रहे हैं। अभियान चलाकर पेड़ लगवाएंगे, सड़कें बनवाकर पेड़ कटवाएंगे। नए तो कोई लगाता ही नहीं। स्कूल, कॉलेज, अस्पताल की स्वीकृति देंगे, भले ही अध्यापक, डॉक्टर, अन्य सुविधाएं हो, न हो। हाल ही में रामगढ़ बांध पर ड्रोन से वर्षा की नौटंकी देखी? शहर में सब मानते थे कि यह ‘फेक’ न्यूज है। भर्तियों के समान, नई नौकरियों के आश्वासन सभी कुछ जनहित से खिलवाड़ के साधन बन गए। उच्च न्यायालय के आदेशों की धज्जियां उड़ाना और सरकारी जमीनों से अतिक्रमण हटाने के स्थान पर अतिक्रमण करवाना अफसरशाही की ‘संस्कृति’ बन गई है। पुलिस की जनविरोधी छवि छवि, सड़क-बिजली-अस्पताल-परिवहन जैसे बुनियादी अधिकारों से सोचा-समझा खिलवाड़ तो अब आम बात हो गई। भ्रष्ट अधिकारियों को बचाना एक नया कार्यक्रम चल पड़ा। शहर में जगह-जगह बहुमंजिला भवन अवैध रूप से खड़े हैं। मुख्यमंत्री और शहर के मेयर में क्या अन्तर रह गया? ईश्वर ने इतना बड़ा अवसर दिया, किसके काम आ रहा है। कम से कम जनता का अहित तो रोक सकते हैं।

राजस्थान में सरकारी कर्मचारियों व पेंशनरों के लिए संचालित स्वास्थ्य योजना आरजीएचएस इस बात का प्रमाण है कि सरकार न तो देश की संस्कृति-परम्परा-नीतियों की परवाह करती है, न ही केन्द्र की मूल अवधारणाओं की। देश के आम आदमी के हितों की भी परवाह नहीं है। उसे अपने अंग्रेजीदां चहेतों का हित साधना है। आश्चर्य की बात है कि अधिकारी फिर भी स्वयं को ‘भारतीय’ मान रहे हैं। इन्हें देश के प्रति अहसान-फरामोश कहना चाहिए।

मुद्दा है- एलोपैथी बनाम आयुर्वेद। सरकार आयुर्वेद को कमजोर करके केवल एलोपैथी को प्रश्रय देना चाहती है। इससे जुड़े कुछ बिन्दुओं पर गौर करना होगा। आरजीएचएस में कई वर्षों से नए निजी आयुर्वेदिक अस्पतालों को पैनल में नहीं जोड़ा गया। आयुर्वेद एवं पंचकर्म जैसी भारत की प्राचीन एवं प्रभावी चिकित्सा प्रणाली को आरजीएचएस में महत्व नहीं दिया जा रहा है, जबकि निजी एलोपैथिक अस्पतालों को व्यापक रूप से सम्मिलित किया गया है। आयुर्वेद की अधिकांश प्रक्रियाएं (अभ्यंग स्वेदन, उद्वर्तन,स्थानिक भस्ती, धारा, रक्तमोक्षण, अग्निकर्म इत्यादि) डे-केयर रूप में भी संभव हैं। लेकिन आरजीएचएस में केवल इनडोर भर्ती के रूप में उपचार करने की बाध्यता लगाई जा रही है। यह कर्मचारियों के स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, विशेषकर जब आयुर्वेदिक पंचकर्म उपचार रोग के अनुसार लंबी अवधि की मांग करते हैं।

मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य योजना (मां) में जहां 80 राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालयों को शामिल किया गया है, वहां निजी आयुर्वेदिक अस्पतालों को बाहर रखा गया है।

जब निजी एलोपैथिक अस्पताल योजना का हिस्सा हो सकते हैं, तो निजी आयुर्वेदिक अस्पतालों के साथ यह भेदभाव क्यों किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य बीमा योजना में आयुष क्षेत्र की विशेष कवरेज नहीं हो पाई। वहीं अब इस योजना में ही राज्य कर्मचारियों और पेंशनर्स के लिए संचालित आरजीएचएस के शामिल होने की चर्चा ने निजी आयुष सेक्टर को और चिंतित कर दिया है। आरजीएचएस का विलय आयुष्मान भारत में हुआ तो आयुष पद्धतियां बीमा योजनाओं से करीब करीब-करीब बाहर हो जाएंगी। हाल ही में आरजीएचएस में कई तरह के घोटाले सामने आने के बाद प्रशासन ने आयुर्वेद का पोर्टल और डे-केयर इलाज बंद कर दिया। कई बीमारियों में मरीज लम्बे समय तक आयुष उपचार कराना पसंद करते हैं। बीमा कवरेज नहीं हो तो उन्हें इलाज का पूरा खर्च खुद उठाना पड़ता है।

आयुष के पूरे प्रदेश में करीब 40 से 50 विशेषज्ञ सेवाओं वाले अस्पताल हैं। बीमा के अभाव में मरीजों को पूरी राशि स्वयं वहन करनी पड़ती है। आयुर्वेद भारत की प्राचीन धरोहर है। केंद्र से लेकर राज्य सरकारें तक लगातार आयुष को बढ़ावा देने की बात करती रहीं है। लेकिन निजी क्षेत्र में आयुर्वेद की सुविधाएं रोकना, पोर्टल को बंद कर देना समझ से परे है। हजारों आयुर्वेद चिकित्सालय और चिकित्सकों का अस्तित्व संकट में आ गया है।

रोजगार और सेवाएं दोनों पर सीधा असर पड़ा है। सरकार को तुरंत इस पर स्पष्ट गाइडलाइन जारी कर आरजीएचएस पोर्टल को पुन: शुरू करना चाहिए। होना तो यह चाहिए कि आयुर्वेद को देश के गौरव के रूप में आगे लाया जाए। सरकार की यह भेदपूर्ण नीति भ्रष्टाचार का धुंआ फैला रही है। क्या कोई अधिकारी एक गरीब नागरिक को भरोसा दिला सकता है कि ‘यदि वह एक साल में भी दवा लेकर रोग मुक्त नहीं हुआ तो उसका खर्चा, टेस्ट सहित, सरकार लौटाएगी?’ सरकार की ऐसी नीतियां देखकर अधिकारियों के ज्ञान और भारतीयता पर तरस आता है। सरकार को चाहिए कि भारतीय संस्कृति से जुड़ी व्यवस्था के निर्णय पूरी जांच एवं स्वीकृति के बाद ही जारी करे। हमारे प्रधानमंत्री का नारा याद रखें-‘भारतीय चुनो’-मेक इन इण्डिया-चुनो!