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पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – पर्यटन: देश की आत्मा का सम्प्रेषण

कल के अखबारों में समाचार था कि जैसलमेर के सम क्षेत्र में एक रिसोर्ट में लगभग आधा दर्जन टेंटों में आग लग गई। पर्यटक टेंटों से बाहर होने की वजह से बच गए। कारण बताया है-बिजली का शॉर्ट सर्किट।

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Editor in Chief of Patrika Group Gulab Kothari

पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी

कल के अखबारों में समाचार था कि जैसलमेर के सम क्षेत्र में एक रिसोर्ट में लगभग आधा दर्जन टेंटों में आग लग गई। पर्यटक टेंटों से बाहर होने की वजह से बच गए। कारण बताया है-बिजली का शॉर्ट सर्किट। आज के युग में सम क्षेत्र का कोई दौरा करे तो वहां टेंटों की तो भरमार है, किन्तु व्यवस्थित पर्यटन स्थल नजर नहीं आता। पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान मुझे सम क्षेत्र में जाने का अवसर मिला था। जिस प्रकार की व्यवस्था हम तिलवाड़ा और नागौर पशु मेलों में पर्यटन विभाग की देखते हैं, लगभग वही दशकों पुरानी व्यवस्था यहां पर भी दिखाई देती है। पुष्कर पशु मेला भी सम की तुलना में काफी व्यवस्थित है।

पर्यटन, राजस्थान की धड़कन है। पर्यटन विभाग को भी मैंने वर्षों नजदीक से देखा है। शाही रेल का उदाहरण अकेला काफी है। शराब की चोरी, घाटे के टूरिस्ट बंगले, लोक कलाकारों का दोहन, संस्कृति की विरासत को एकरूपता देना ही पर्यटन विभाग के मुख्य दायित्वों में रह गया है। पुष्कर मेले से लेकर आदिवासी इलाकों तक स्थानीय सांस्कृतिक विरासत का ध्यान रखे बिना एक जैसे विभागीय आयोजन होने लगे हैं। पर्यटकों का सम्मान, सुरक्षा, सुख-सुविधाएं फाइलों में बंद हैं। आमेर में दो तरह की टिकट बुक हो, चाहे बाघों की पोचिंग व अभयारण्यों में अतिक्रमण कार्यपालिका में स्पर्धा का क्षेत्र बन गए हैं।

सम्पूर्ण उत्तर भारत में राजस्थान से अधिक मनोहर स्थल-खानपान-वेशभूषा-इतिहास-भूगोल आदि किसी अन्य प्रदेश में नहीं है। किन्तु यहां पर्यटकों को ग्रामीण जीवन से जोड़ने का, प्राकृतिक जीवन-शैली की जानकारी का अनुभव नहीं कराया जाता। बस, चूने-पत्थर के किले और सफारी, झूठे-सच्चे सांस्कृतिक कार्यक्रमों को पर्यटन का पर्याय बना रखा है। मानव जीवन पर्यटन का हिस्सा ही नहीं है।

इस स्थिति में पर्यटक भी वस्तु बनकर रह गया। तब इनका सम्मान और सुरक्षा चिन्तन का विषय ही नहीं रह जाता। किन्तु इसी के साथ स्थानीय नागरिकों का जीवन भी जुड़ा रहता है, जो विभाग के उत्तरदायित्वों से जुड़ा दिखाई नहीं पड़ता। तब यात्री क्योंकर राजस्थान की ओर मुंह करेंगे? आज जिस प्रकार पर्यटन बढ़ा है, स्थानीय भ्रमण बढ़ा है, युवा पीढ़ी का रुझान बढ़ा है, विभाग उनकी समयोचित अगवानी को तैयार नहीं है। न ही विभाग इतना खर्च करके भी यात्री सुविधा-सुरक्षा क्षेत्र में निवेश करता दिखाई पड़ रहा। विभाग के अधिकारी राज्य की संस्कृति से स्वयं परिचित नहीं होते। बदलते रहते हैं। लक्ष्य भी निर्धारित नहीं होते। बजट, सौन्दर्य वृद्धि और कमीशनखोरी से जुड़ा है, मानवीय सुरक्षा और सम्मान से नहीं। पर्यटन विभाग की लाज किसी ने बचा रखी है, तो ब्याह-शादियों ने।

हम पर्यटन को उद्योग मानते हैं, किन्तु व्यवहार में मानव केन्द्रित नहीं हैं। जबकि प्रत्येक शहर एवं पर्यटक स्थल को स्वतंत्र इकाई के रूप में विकसित किया जा सकता है। इसमें पिछले वर्षों में कोई बड़ा निवेश भी सरकार ने नहीं किया। पर्यटन स्थलों के छोटे-छोटे सर्किट, स्थलों पर निम्न स्तर की सेवाओं पर नियंत्रण, कीमतों और क्वालिटी पर नियंत्रण, स्वास्थ्य सेवाएं सुदृढ़ हों। इसके लिए संकल्पित भी होना पड़ेगा विभाग को। अन्तरराष्ट्रीय स्तर का वातावरण (सुविधापूर्ण) भी कुछ बड़े केन्द्रों पर देना होगा।

राज्य में कृषि-पशुपालन के बाद पर्यटन ही तीसरा बड़ा आय का और राष्ट्र-गौरव के प्रसार का माध्यम बन सकता है। आज हमारे सामने स्वर्णिम अवसर है, मोनोपोली है। इसका समय रहते लाभ उठाना चाहिए। केवल नाच-गाना राजस्थान की संस्कृति नहीं है, विभाग को याद रखना चाहिए। शराब के नशे में पर्यटकों को नचाकर तालियां बजाना बन्द करना पड़ेगा। गंभीर साहित्य, वीडियो फिल्में, संवाद एवं शोधपूर्ण जानकारियों से पर्यटक को जोड़ना है।

युवा पर्यटक समय और धन का मूल्य अलग तरह से आंकते हैं। वे ‘टाइम-पास’ के लिए भ्रमण नहीं करते। वे घर से भी बहुत कुछ अध्ययन करके निकलते हैं। हमारे गाइडों से ज्यादा जानते हैं। हम निश्चिन्त हैं, अपनी दक्षता पर। अपने पुरानेपन पर। ऐसा न हो कि यात्री निराश होकर दूसरी ट्रेन में चढ़ने लग जाए। कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे!

gulabkothari@epatrika.com