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ट्रेड वॉर में नरमी, भारत के लिए सकारात्मक संकेत

राहुल लाल, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार

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अमरीका ने चीन पर लगाए गए टैरिफ में 10 प्रतिशत की कटौती की है, जिससे यह शुल्क 57 प्रतिशत से घटकर 47 प्रतिशत हो गया है। यह कदम दक्षिण कोरिया के बसान में अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच 2019 के बाद पहली बार हुई बैठक के बाद लिया गया। यह बैठक लगभग दो घंटे तक चली और इसके बाद दोनों नेताओं ने व्यापारिक संबंधों में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय लिए। साथ ही, फेंटानिल संबंधी टैरिफ 20 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया गया है। ट्रंप ने बताया कि शी जिनपिंग ने अमरीका भेजे जाने वाले फेंटानिल की शिपमेंट को रोकने के लिए सहयोग करने पर सहमति दी है। ट्रंप के अनुसार, फेंटानिल पर इन कदमों से नशे की तस्करी को रोकने में मदद मिलेगी। बैठक से पहले ट्रंप ने चेतावनी दी थी कि अगर चीन फेंटानिल से जुड़ी तस्करी में कार्रवाई नहीं करेगा, तो अमरीका चीन के खिलाफ टैरिफ को 100 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है। चीन ने भी अमरीका से सोयाबीन की बड़ी मात्रा में खरीदारी शुरू करने पर सहमति जताई है। रेयर अर्थ मेटल्स के संबंध में भी चीन ने निर्यात प्रतिबंधों को टालने की घोषणा की है, जिससे इस क्षेत्र में तनाव कम होने के संकेत मिले हैं।

चीन-अमरीका में ट्रेड वॉर की शुरुआत ट्रंप के पहले कार्यकाल में 2018 में प्रारंभ हो गई थी। ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में व्यापार युद्ध के कारण दोनों देशों ने एक-दूसरे पर भारी टैरिफ लगाए थे, जिससे वैश्विक व्यापार में तनाव और अस्थिरता काफी बढ़ गई। भले ही चीन-अमरीका टैरिफ वार में अमरीका ने अभी केवल 10 प्रतिशत कटौती की घोषणा की है, जो देखने में आंशिक लग रही है, लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए इससे गहन निहितार्थ हैं। चीन-अमरीका ट्रेड वार में टैरिफ कटौती और आपसी व्यापार तनाव में नरमी के बाद भारत-अमरीका ट्रेड डील को लेकर सकारात्मक संकेत जरूर मिल रहे हैं। ट्रंप ने हाल में कहा था कि वे जल्द भारत के साथ ट्रेड डील करेंगे। अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने सार्वजनिक मंचों से इस बात के स्पष्ट संकेत दिए हैं कि भारत-अमरीका ट्रेड डील अंतिम चरण में है। विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारतीय उत्पादों पर अमरीका की ओर से लगने वाला टैरिफ 50 प्रतिशत से घटकर लगभग 15-16 प्रतिशत किया जा सकता है, जिससे भारतीय निर्यात को सीधा लाभ मिलेगा।

टैरिफ वार के दौरान, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान आया था। ऐसे में भारत ने वैश्विक कंपनियों को अपनी आपूर्ति श्रृंखला में शामिल करने का अवसर प्राप्त किया। अमरीका-चीन के बीच टैरिफ में कमी आने से वैश्विक व्यापार की स्थिति सुधर सकती है, लेकिन भारत को भी इस अवसर का लाभ उठाकर अधिक निवेश और विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि करनी होगी, ताकि वह सप्लाई चेन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन सके। चीन द्वारा रेयर अर्थ मेटल्स के निर्यात प्रतिबंध हटाने का अर्थ है कि विश्वभर में इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिक वाहन और रक्षा उद्योगों के लिए आवश्यक ये मेटल्स आसानी से उपलब्ध होंगे। इससे इन उद्योगों की उत्पादन लागत कम होगी और वैश्विक विश्वास में तेजी आएगी। भारत इस क्षेत्र में उत्पादन और निर्यात बढ़ाने की रणनीति भी बना सकता है।

चीन-अमरीका टैरिफ वार के कारण वैश्विक वित्तीय बाजारों में अस्थिरता आई थी, जिससे भारत के शेयर बाजार और निवेश पर असर पड़ा था। कटौती के बाद वैश्विक बाजारों में स्थिरता आएगी, जो भारत के लिए विदेशी निवेश को आकर्षित करेगा। इससे भारत के उद्योगों में पूंजी निवेश बढ़ेगा। ज्ञात हो इस वर्ष अब तक विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने भारी बिकवाली कर भारतीय शेयर बाजार से पूंजी निकाली है, लेकिन अब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का झुकाव भारत की ओर बढ़ सकता है, जिससे पूंजी बाजार सुसंगठित होंगे और आर्थिक विश्वास के लिए संसाधन बढ़ेंगे। अमरीका-चीन व्यापार तनाव में कटौती से भारत को अमरीका बाजार में अपने निर्यात को बढ़ावा देने का अवसर मिलेगा। 2024-25 में भारत ने अमरीका को 86 अरब डॉलर का सामान निर्यात किया है, जो भारत के निर्यात वर्ग के लिए एक बड़ा अवसर है। इसके अलावा, टैरिफ में कमी से भारत के निर्यातों को लागत में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिलेगी और वे अमरीका बाजार में बेहतर पहुंच बना सकेंगे। चीन के साथ व्यापार सहयोग भी बढ़ रहा है। भारत का चीन के बाजार में निर्यात 22 प्रतिशत तक बढ़ा है। चीन भारतीय प्रीमियम उत्पादों का स्वागत कर रहा है, जिससे भारत के लिए एक नई व्यापार संभावना खुली है। इसलिए दोनों महाशक्तियों में टैरिफ वार में कमी, भारत को निर्यात को दोहरा लाभ प्रदान कर सकती है।

टैरिफ में कमी से आयातित वस्तुओं की कीमतों में कमी आएगी, जिससे भारत की मुद्रास्फीति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इससे उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी और घरेलू बाजार में मांग बनी रहेगी। चीन-अमरीका टैरिफ में कमी के कारण भारत-अमरीका के बीच व्यापार वार्ता को बढ़ावा मिलेगा और भारत-अमरीका ट्रेड डील के संपन्न होने की संभावना मजबूत होगी। इससे भारत के लिए अमरीका बाजार में पहुंच आसान होगी और निर्यात में सुधार होगा। हालांकि, चीन की वापसी से प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है और भारत को अपने उद्योगों को सशक्त करना होगा।
भारत के लिए आवश्यक है कि वह अपने घरेलू नीतियों को मजबूत करते हुए वैश्विक व्यापार में अपनी प्राथमिकता बनाए रखे, ताकि आर्थिक अवसरों का अधिकतम लाभ उठा सके। भारत को विदेशी निवेश को आकर्षित करना होगा और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करानी होगी, यह भारतीय उद्योगों को प्रतिस्पर्धा के लिए भी तैयार करेगा।