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प्रसंगवश: पदोन्नति के पर्व में बच्चों का भविष्य भी हो रोशन

प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था ‘पदोन्नति के जश्न’ में अपने मूल उद्देश्य से भटक रही है। दीपावली से पहले शिक्षा विभाग ने एक ही झटके में 11,838 व्याख्याताओं को उप प्राचार्य बना दिया।

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कोटा

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Ashish Joshi

Oct 08, 2025

Photo: Patrika

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प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था ‘पदोन्नति के जश्न’ में अपने मूल उद्देश्य से भटक रही है। दीपावली से पहले शिक्षा विभाग ने एक ही झटके में 11,838 व्याख्याताओं को उप प्राचार्य बना दिया। सुनने में यह खुशखबरी लगती है, लेकिन इसका परिणाम बच्चों के हित में नजर नहीं आ रहा। कहीं एक ही स्कूल में पांच उप प्राचार्य हो गए, तो कहीं सात। वहीं हजारों विद्यालय ऐसे हैं जहां एक भी विषय व्याख्याता नहीं हैं। विडंबना ही है कि पदोन्नति की इस नीति में शिक्षा का असली उद्देश्य शिक्षण पीछे छूट गया है। बेशक, शिक्षकों की पदोन्नति उनका अधिकार है, पर उसे ‘शिक्षा के अधिकार’ पर हावी नहीं होने देना चाहिए।


हैरानी की बात है कि इसी साल मई में भी 4100 उप प्राचार्य बनाए गए थे, जिनकी काउंसलिंग आज तक पूरी नहीं हुई। अब वही गलती दोहराई गई है। विभाग की इस नीति ने शिक्षण व्यवस्था को पटरी से उतार दिया है। यह विभागीय परिदृश्य बताता है कि प्रशासनिक निर्णय जब जमीन की वास्तविकता को नजरअंदाज कर लिए जाते हैं, तो उनका असर सीधे विद्यार्थियों पर पड़ता है।


राज्य में 45 हजार व्याख्याताओं के पद खाली हैं। यानी इतनी बड़ी शैक्षणिक कमी के बावजूद जो शिक्षक पढ़ा सकते थे, उन्हें भी फाइलों और कागजों में उलझा दिया गया। इस पदोन्नति में न शिक्षण हित देखा गया, ना विद्यार्थियों का भविष्य। एक तरफ सरकार शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के दावे करती है, वहीं दूसरी तरफ वह पढ़ाने वालों को ही पढ़ाई से दूर कर रही है।


असल संकट केवल पदोन्नति की जल्दबाजी नहीं, बल्कि योजना और दूरदर्शिता की कमी है। हर बार विभाग पदोन्नति तो कर देता है, पर काउंसलिंग नहीं कराता। परिणाम, जहां जरूरत नहीं, वहां अधिकारी ठसाठस और जहां आवश्यकता है, वहां खाली कमरे। यह ‘एक कदम आगे, दो कदम पीछे’ वाली नीति शिक्षा व्यवस्था को खोखला कर रही है।


प्रदेश के शिक्षा महकमे की ऐसी स्थिति ‘योजना शून्य’ सोच का परिणाम है। सरकार ने पिछले तीन सालों में छह हजार स्कूलों को क्रमोन्नत तो कर दिया, पर उनके लिए 18 हजार नए पद स्वीकृत नहीं किए। यानी शिक्षा का दायरा बढ़ा, लेकिन शिक्षकों की संख्या घट गई। इस समस्या का समाधान कठिन नहीं है, बस नियत और नजरिया सकारात्मक होना चाहिए।


काउंसलिंग को अनिवार्य व समयबद्ध बनाया जाए। पदोन्नति के साथ ही काउंसलिंग और पदस्थापन की प्रक्रिया पूरी हो, ताकि पदोन्नति ‘शिक्षा सुधार’ का जरिया बने। स्थानांतरण प्रक्रिया भी शुरू हो, ताकि शिक्षकों का वितरण संतुलित रहे। साथ ही, रिक्त पदों पर शीघ्र भर्ती की जाए। पदोन्नति तब सार्थक है जब वह बच्चों के भविष्य को रोशन करे। यही शिक्षा की असली दीपावली होगी।

  • आशीष जोशी: ashish.joshi@in.patrika.com