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राष्ट्रीय एकता के शिल्पकार: सरदार वल्लभभाई पटेल

प्रो आनंदप्रकाश त्रिपाठी 'रत्नेश' लेखक एवं साहित्यकार, जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं

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भारत के स्वाधीनता संग्राम में अनेक विभूतियां हुई जिन्होंने अपने त्याग, समर्पण और अटूट संकल्प से देश को स्वतंत्रता दिलाने में योगदान दिया। किंतु स्वतंत्र भारत की एकता और अखंडता की जो संरचना आज हमारे सामने है, उसका श्रेय जिस व्यक्ति को सर्वाधिक जाता है, वे हैं सरदार वल्लभभाई पटेल — जिन्हें सारा राष्ट्र “लौह पुरुष” और “राष्ट्रीय एकता के शिल्पकार” के रूप में सम्मानित करता है। उन्होंने जिस कुशलता, विवेक और दृढ़ता से रियासतों के विलय का महान कार्य संपन्न किया, वह भारतीय इतिहास में अप्रतिम और प्रेरणास्पद उदाहरण है। सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नड़ियाद गांव में हुआ था। उनके पिता झवेरभाई कृषक थे और माता लाडबा बेन धार्मिक, कर्मनिष्ठ एवं स्नेहमयी महिला थीं। बचपन से ही वल्लभभाई में आत्मविश्वास, साहस और दृढ़ता के गुण स्पष्ट दिखने लगे थे। ग्रामीण वातावरण में पले-बढ़े इस बालक ने सीमित साधनों में भी शिक्षा के प्रति अदम्य लगन दिखाई। उन्होंने कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड प्रस्थान किया और वहां से बैरिस्टर बनकर लौटे। उनका उद्देश्य केवल व्यक्तिगत सफलता नहीं था, वे जनसेवा के लिए जीवन समर्पित करना चाहते थे। उन्होंने अपनी वकालत से अर्जित संपन्नता का उपयोग जनता की सेवा में किया और शीघ्र ही गुजरात में लोकप्रिय नेता बन गए।

उनका राजनीतिक जीवन गांधीजी के सान्निध्य से आलोकित हुआ। गांधीजी से प्रेरित होकर उन्होंने सत्य, अहिंसा और स्वदेशी के मार्ग को अपनाया। 1918 में खेड़ा जिले में जब किसानों पर कर वसूली का अन्यायपूर्ण भार डाला गया, तब पटेल ने किसानों के साथ मिलकर खेड़ा सत्याग्रह का नेतृत्व किया। उनके नेतृत्व में किसानों ने बिना हिंसा के कर न देने का संकल्प लिया और अंततः सरकार को झुकना पड़ा।इसके बाद बोर्सद आंदोलन और बारडोली सत्याग्रह 1928 में उनके नेतृत्व कौशल का उत्कर्ष हुआ। बारडोली के किसानों ने भूमि-राजस्व बढ़ोतरी के विरोध में शांतिपूर्ण आंदोलन किया, जिसमें पटेल ने अनुशासन, संगठन और दृढ़ता का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया कि ब्रिटिश सरकार को पीछे हटना पड़ा। इसी सफलता के बाद उन्हें “सरदार” की उपाधि मिली, जो उनके नाम का स्थायी अंग बन गई। बारडोली आंदोलन ने उन्हें राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित किया और गांधीजी ने भी उन्हें “भारत का बिस्मार्क” कहा, क्योंकि वे संगठन और निर्णय क्षमता के अद्वितीय प्रतीक बन गए थे।

1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब देश के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती थी – रियासतों का विलय। उस समय भारत में लगभग 562 रियासतें थीं, जिनके शासकों को स्वतंत्रता के बाद यह विकल्प दिया गया था कि वे भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित हों अथवा स्वतंत्र रहें। यह स्थिति भारत की एकता और अखंडता के लिए गंभीर संकट थी।
ऐसे समय में सरदार पटेल ने अपने अद्वितीय राजनीतिक कौशल और दृढ़ इच्छाशक्ति से इस जटिल समस्या का समाधान किया। उन्होंने कहा था, “हमने स्वतंत्रता तो प्राप्त कर ली है, अब हमें इसे एकता के सूत्र में बांधना है।” उन्होंने रियासतों के शासकों को संवाद, समझाइश और दृढ़ नीति के माध्यम से भारत में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित किया। अधिकांश रियासतों ने उनके नेतृत्व में सहजता से भारत में विलय स्वीकार किया। किन्तु हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर जैसी कुछ रियासतों ने असहयोग का मार्ग अपनाया। पटेल ने हैदराबाद के निजाम को स्पष्ट रूप से बताया कि भारत की एकता किसी की सनक पर निर्भर नहीं रह सकती। अंततः “ऑपरेशन पोलो” के माध्यम से हैदराबाद का भारत में विलय हुआ। जूनागढ़ के मामले में उन्होंने जनता की इच्छा को सर्वोपरि मानते हुए जनमत संग्रह करवाया, जिसमें जनता ने भारत में सम्मिलित होने का निर्णय दिया। कश्मीर के विषय में भी उन्होंने दृढ़ता और विवेक से राष्ट्रहित को प्राथमिकता दी। इस प्रकार, सरदार पटेल ने 562 रियासतों को एक सूत्र में पिरोकर “अखंड भारत” की नींव रखी।

सरदार पटेल केवल एक राजनेता ही नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी प्रशासक भी थे। स्वतंत्र भारत की प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में उनका योगदान अमूल्य है। स्वतंत्र भारत को केवल भौगोलिक एकता की नहीं, बल्कि प्रशासनिक एकता की भी आवश्यकता थी। पटेल ने इसे भलीभांति समझा। उन्होंने अंग्रेजों की सिविल सेवा को पुनर्गठित कर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आइपीएस) का स्वरूप दिया। उन्होंने कहा, “इस देश को चलाने के लिए हमें ऐसे अधिकारी चाहिए जो देश के प्रति समर्पित हों, किसी राजनीतिक विचारधारा के नहीं।”
भारतीय सिविल सेवा को नया रूप देते हुए इसे “स्टील फ्रेम ऑफ इंडिया” कहा। उनका विश्वास था कि यदि प्रशासनिक ढांचा मजबूत होगा तो राष्ट्र सुदृढ़ रहेगा। उन्होंने नौकरशाही में अनुशासन, उत्तरदायित्व और राष्ट्रीय भावना का समावेश किया। यही कारण है कि आज भी (आइएएस) को उनके विचारों की नींव पर स्थापित माना जाता है।उनके लिए राष्ट्रीय एकता केवल भौगोलिक सीमाओं का प्रश्न नहीं था, यह मानसिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक एकता का भी प्रतीक था। उनका मानना था कि भारत की शक्ति उसकी विविधता में निहित है। विधता को एकता के सूत्र में बांधना ही सच्चा राष्ट्रधर्म है। उन्होंने कहा था , “हमारा देश अनेकताओं में एकता का प्रतीक है। यदि यह एकता कमजोर हुई, तो हमारी स्वतंत्रता भी खतरे में पड़ जाएगी।” इस विचार में आज के भारत के लिए गहरा संदेश छिपा है। जाति, भाषा, धर्म, प्रांत या क्षेत्रीयता के आधार पर विभाजित मानसिकता राष्ट्र की शक्ति को क्षीण करती है। पटेल ने अपने जीवन से सिखाया कि एकता केवल नारे से नहीं, बल्कि परस्पर विश्वास, सहयोग और कर्तव्य भावना से सुदृढ़ होती है।

उनके व्यक्तित्व में लौह दृढ़ता, निर्णय की स्पष्टता और अनुशासन की भावना का अद्भुत समन्वय था। वे जानते थे कि राष्ट्रीय हित सर्वोपरि है, इसलिए उन्होंने कभी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा या भावनाओं को राष्ट्रहित से ऊपर नहीं रखा। कहा जाता है कि स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पद के लिए वे कांग्रेस के अधिकांश प्रांतीय समितियों की पसंद थे, किंतु उन्होंने गांधीजी के निर्णय का सम्मान करते हुए नेहरूजी का समर्थन किया। यह उनके त्याग और विनम्रता का प्रतीक है। उन्होंने कहा था , “मुझे सत्ता नहीं, सेवा चाहिए।” उनका नेतृत्व व्यवहारिक और नीतिपरक था। वे केवल विचारों के पुरुष नहीं, बल्कि कार्य के पुरुष थे। उनके बारे में जवाहरलाल नेहरू ने कहा था , “अगर सरदार पटेल न होते, तो भारत का नक्शा कुछ और ही होता।”आज जब भारत विभिन्न सामाजिक, धार्मिक, भाषायी और प्रांतीय चुनौतियों से जूझ रहा है, तब सरदार पटेल के विचार और नेतृत्व दृष्टि अत्यंत प्रासंगिक हैं। उन्होंने हमें सिखाया कि राष्ट्र की एकता ही उसकी अस्मिता है। भारत की भौगोलिक अखंडता को उन्होंने सुनिश्चित किया, किंतु आज हमें उनकी विचारधारा से सामाजिक और वैचारिक एकता की प्रेरणा लेनी चाहिए। विभाजनकारी प्रवृत्तियां, संकीर्ण राजनीति और स्वार्थपरक दृष्टिकोण राष्ट्रीय समरसता के लिए घातक हैं।

पटेल का जीवन हमें यह सिखाता है“जब तक राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक अपने कर्तव्य और उत्तरदायित्व को समझकर कार्य नहीं करेगा, तब तक सच्ची स्वतंत्रता अधूरी रहेगी।” सरदार पटेल की स्मृति में 31 अक्टूबर 2018 को गुजरात के केवड़िया में विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” का उद्घाटन हुआ। 182 मीटर ऊंची यह प्रतिमा केवल एक व्यक्ति को समर्पित नहीं, बल्कि भारत की एकता, अखंडता और संकल्प शक्ति का प्रतीक है। यह स्मरण कराती है कि जब एक व्यक्ति राष्ट्र के लिए समर्पित होता है, तो उसका जीवन युगों तक प्रेरणा बन जाता है। उनका जीवन हमें अनेक प्रेरणाएं देता है।

वर्तमान राजनीति में जहां नेतृत्व प्रायः जनलुभावन वादों में उलझ जाता है, वहां पटेल का चरित्र दृढ़ता और निष्पक्षता की मिसाल है। उन्होंने लोकप्रियता के बजाय राष्ट्रहित को प्राथमिकता दी। हैदराबाद के विलय के समय उनका कठोर रुख दर्शाता है कि जब राष्ट्र की सुरक्षा का प्रश्न हो, तो निर्णय में विलंब नहीं होना चाहिए। आज जब प्रशासनिक निर्णयों में राजनीतिक प्रभाव देखा जाता है, पटेल की निर्णायकता एक अनुकरणीय आदर्श है। पटेल स्वयं किसान परिवार से थे और किसानों के सच्चे हितैषी माने जाते थे। उन्होंने खेड़ा सत्याग्रह और बारदोली आंदोलन के माध्यम से किसानों को स्वाभिमान और संगठित शक्ति का पाठ पढ़ाया। आज जब भारत कृषि संकट, किसानों की आत्महत्याओं और ग्रामीण पलायन की समस्याओं से जूझ रहा है, तब पटेल का ग्रामोन्मुख दृष्टिकोण अत्यंत उपयोगी है। उनका विश्वास था कि “भारत की आत्मा उसके गांवों में बसती है।”

आज भ्रष्टाचार, पदलोलुपता और लालफीताशाही ने शासन की आत्मा को प्रभावित किया है। पटेल ने जिस प्रशासन की कल्पना की थी, वह कर्तव्यनिष्ठ, पारदर्शी और जनसेवी था। यदि आज के अधिकारी पटेल की निष्ठा, सरलता और निष्पक्षता को आदर्श बनाएं, तो शासन-प्रणाली जनहितकारी बन सकती है।भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में आज भी चुनौतियां हैं — आतंकवाद, सीमा विवाद और आंतरिक सुरक्षा के प्रश्न। सरदार पटेल ने कहा था , “हमारा राष्ट्र तभी सुरक्षित रहेगा जब उसकी सीमाएं सुदृढ़ हों और नागरिक अनुशासित।”पटेल का व्यक्तित्व केवल राजनीति तक सीमित नहीं था। वे सत्य, ईमानदारी, अनुशासन और त्याग के प्रतीक थे। उन्होंने स्वयं कहा था , “मनुष्य का चरित्र ही उसकी सबसे बड़ी पूंजी है।”

आज के नेताओं के लिए पटेल का जीवन एक दर्पण है। वे न बोलते अधिक थे, न दिखाते, केवल करते थे। उनकी राजनीति में न दिखावा था, न स्वार्थ। उन्होंने कहा था , “राजनीति सेवा का माध्यम है, स्वार्थ का नहीं।”
पटेल भारतीय संस्कृति और परंपराओं के गहरे ज्ञाता थे। वे मानते थे कि भारत की आत्मा उसके धर्म, संस्कृति और इतिहास में बसती है। उन्होंने आधुनिकता को स्वीकार करते हुए भी भारतीयता का परित्याग नहीं किया। यह दृष्टिकोण आज के वैश्वीकरण के युग में अत्यंत उपयोगी है, जब भारतीय युवाओं को आधुनिकता और परंपरा के संतुलन की आवश्यकता है। भारत आज फिर एक निर्णायक मोड़ पर है — आर्थिक सुधार, सामाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण और शिक्षा सुधार जैसे विषयों पर। यदि सरदार पटेल के सिद्धांतों को मार्गदर्शक माना जाए, तो यह कार्य सुगम हो सकता है। उनके विचार हमें बताते हैं कि —राष्ट्रनिर्माण में हर नागरिक की भूमिका है। संगठन, अनुशासन और दृढ़ निश्चय से ही प्रगति संभव है। नेतृत्व का अर्थ दूसरों पर शासन नहीं, बल्कि सेवा करना है।

सरदार वल्लभभाई पटेल केवल इतिहास का एक नाम नहीं, बल्कि भारत की आत्मा के अमिट प्रतीक हैं। उन्होंने जो राष्ट्र का स्वरूप गढ़ा, वही आज हमारी पहचान है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि देशप्रेम केवल शब्द नहीं, कर्म है। एकता केवल नारा नहीं, जिम्मेदारी है और नेतृत्व केवल पद नहीं, आचरण का प्रमाण है। आज जब भारत 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना कर रहा है, तब लौह पुरुष का संदेश पहले से कहीं अधिक गूंजता है , “राष्ट्र की सेवा में मनुष्य को अपने जीवन का प्रत्येक क्षण अर्पित करना चाहिए।” इसलिए, सरदार पटेल की लौ आज भी हमारे भीतर प्रज्ज्वलित है — एक ऐसी लौ जो भारत को दृढ़ता, एकता, निष्ठा और आत्मबल से प्रकाशित करती है। उनका जीवन आज के भारत के लिए एक आह्वान है , “एक भारत, श्रेष्ठ भारत — यही सरदार का स्वप्न था, और यही हमारी साधना होनी चाहिए।” सरदार पटेल भारतीय इतिहास के ऐसे नायक हैं जिनकी कर्मभूमि ने स्वतंत्र भारत की नींव को सुदृढ़ किया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि सच्चा नेतृत्व वही है जो राष्ट्र को बिखराव से बचाकर समरसता की दिशा में अग्रसर करे।आज जब विश्व में विभाजन और संघर्ष के स्वर गूंज रहे हैं, तब सरदार पटेल की विचारधारा हमें यह प्रेरणा देती है कि एकता ही प्रगति का पथ है। उनका जीवन संदेश देता है —“राष्ट्र की एकता से बढ़कर कोई धर्म नहीं, और देश की सेवा से बड़ा कोई कर्म नहीं।” हमारा कर्तव्य है कि हम उनके विचारों को केवल स्मरण न करें, बल्कि अपने जीवन और आचरण में उन्हें उतारें। तभी हम सच्चे अर्थों में उनके सपनों का अखंड, समरस और सशक्त भारत निर्मित कर पाएंगे। “सरदार पटेल का जीवन केवल इतिहास नहीं, वह भारत की आत्मा की आवाज़ है —जो हमें आज भी एकता, निष्ठा और राष्ट्रभक्ति का अमर संदेश देती है।