
राजस्थान विधानसभा (फाइल फोटो पत्रिका)
विधानसभा में प्रश्नकाल की व्यवस्था कोई आज की नहीं है। प्रश्नकाल सही मायने में जनता का मंच है, जिसमें जनता की आवाज जनप्रतिनिधियों के माध्यम से प्रदेश की इस सबसे बड़ी पंचायत में उठाई जाती है। यह लोकतंत्र की ताकत ही है जिसमें सदन में पूछे गए सवालों का सत्ता पक्ष को जवाब देना होता है।
लोकतंत्र की इस ताकत की कमजोरी का यह चिंताजनक उदाहरण ही कहा जाएगा, जिसमें विधानसभा में पूछे गए माननीयों के सवालों के जवाब अभी तक अनुत्तरित हैं। आंकड़े बताते हैं कि राजस्थान में सोलहवीं विधानसभा के तीन सत्रों में 19,744 प्रश्न लगे, जिनमें 1,844 प्रश्नों के जवाब का अभी तक इंतजार है। एक तरह से हर दस में से एक सवाल का जवाब नहीं मिल सका है। सीधे तौर पर यह जनप्रतिनिधियों और जनता दोनों की ही अनदेखी समझी जानी चाहिए।
जनप्रतिनिधियों को ही सवालों का जवाब नहीं मिल पाए तो फिर जनता का भरोसा टूटता ही है। इन सवालों का मुख्य मकसद यही होता है कि जनसमस्याओं की तरफ सरकार का ध्यान जाए और उनके समाधान की दिशा में काम हो। विधानसभा में मांगी गई हर जानकारी को प्राथमिकता से पूरी कराना सिस्टम की जिम्मेदारी है। गांवों में क्षतिग्रस्त सड़कों का मामला हो या फिर अस्पताल में डॉक्टरों की कमी, किसानों की खाद-बीज की समस्या हो या फिर रोजगार का संकट।
ये जनता से जुड़े सीधे मुद्दे हैं, जिनकी अनदेखी तो होनी ही नहीं चाहिए। विधानसभा का चौथा सत्र शुरू हो चुका है और 2,735 नए सवाल पहले ही लग चुके हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि पिछली बार के अधूरे सवालों का क्या होगा? अगर पुराने सवालों के जवाब ही न मिले तो नए सवाल तो संख्या बढ़ाने वाले ही होंगे। सरकार को चाहिए कि प्रश्नों के उत्तर देने के लिए विभागों पर सत समय-सीमा तय करे। जवाब लंबित रहने पर जिमेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय होनी चाहिए। विधानसभा को भी जिम्मेदारों के टालमटोल वाले इस पर कठोर रुख अपनाना चाहिए।
- आशीष जोशी : ashish.joshi@in.patrika.com
Published on:
03 Sept 2025 11:18 am
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