
दिल्ली में प्रदूषण का लेवल कम करने के लिए कृत्रिम बारिश में बाधा बना मौसम। (Photo: AI)
Artificial Rain: दिवाली के बाद राजधानी दिल्ली का दम फिर से घुटने लगा है। प्रदूषण का स्तर इस सीजन में अब तक के सबसे खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। हवा में सांस लेना तक मुश्किल हो गया है। फिजा में ठंडक के बजाय अब धुआं और जहर घुला है, जो हर सांस के साथ शरीर के अंदर जा रहा है। सरकार तमाम कोशिशों के बावजूद फिलहाल इस प्रदूषण से राहत नहीं दिला पा रही है। ऐसे में अब सभी की निगाहें कृत्रिम बारिश यानी क्लाउड सीडिंग पर टिक गई हैं, जो दिल्ली की जहरीली हवा को साफ करने का एक बड़ा उपाय मानी जा रही है। लेकिन फिलहाल इस योजना पर मौसम ने ही ब्रेक लगा दिया है।
तकनीकी और प्रशासनिक तैयारियां पूरी होने के बावजूद दिल्ली में क्लाउड सीडिंग की योजना अटक गई है। आसमान में पर्याप्त बादल न होना इसकी मुख्य वजह है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के मुताबिक, फिलहाल ऐसा कोई मौसम नहीं बन रहा, जिसमें इस तकनीक से बारिश कराई जा सके। विभाग ने कहा है कि 25 अक्टूबर से पहले क्लाउड सीडिंग के लिए जरूरी बादलों के बनने की संभावना बेहद कम है। दिवाली के बाद भी दिल्ली का आसमान असामान्य रूप से सूखा बना हुआ है, जिससे योजना को लागू करने की संभावनाएं कमजोर पड़ गई हैं।
क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसके जरिए कृत्रिम रूप से बारिश कराई जाती है। इसका उद्देश्य प्राकृतिक रूप से होने वाली बारिश की मात्रा को बढ़ाना होता है। इस तकनीक में सिल्वर आयोडाइड (Silver Iodide) या नमक के बेहद सूक्ष्म कण बादलों में छोड़े जाते हैं। ये कण पानी की भाप को आकर्षित करते हैं, जिससे बूंदें बड़ी होकर वजनदार बन जाती हैं और बारिश के रूप में जमीन पर गिरती हैं। इसके लिए विमान, रॉकेट या जमीनी जनरेटरों का इस्तेमाल किया जाता है।
क्लाउड सीडिंग मुख्यतः दो प्रकार से कराई जाती है। इसमें पहला हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग है। इस विधि में गर्म बादलों के निचले हिस्से में नमक-आधारित कण जैसे पोटेशियम या सोडियम क्लोराइड छोड़े जाते हैं। ये पानी की बूंदों को आपस में मिलाकर बड़ा बनाते हैं, जिससे वे नीचे गिरकर बारिश का रूप ले लेती हैं। इसके अलावा इसका दूसरा तरीका ग्लेसियोजेनिक क्लाउड सीडिंग है। इस प्रक्रिया में सिल्वर आयोडाइड या सूखी बर्फ (Dry Ice) को उन बादलों में डाला जाता है, जिनका तापमान शून्य से नीचे होता है। ये पदार्थ बर्फ के क्रिस्टल बनने में मदद करते हैं, जो भारी होकर नीचे गिरते हैं और पिघलते हुए बारिश में बदल जाते हैं।
दिल्ली सरकार ने क्लाउड सीडिंग के लिए एक Cessna-206H विमान को तैयार किया है, जो मेरठ में स्टैंडबाय मोड पर रखा गया है। इसके पंखों पर फ्लेयर्स (पटाखों जैसी डिवाइस) लगाए गए हैं, जिनसे सीडिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले पदार्थ बादलों में छोड़े जाते हैं। इस परियोजना में तकनीकी साझेदारी आईआईटी कानपुर की है, जिसने पहले भी महाराष्ट्र और कर्नाटक में ऐसे प्रयोग किए हैं।
आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों के अनुसार, क्लाउड सीडिंग तभी सफल होती है जब लक्षित बादलों में कम से कम 50% नमी हो और वे 500 से 6,000 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद हों। इस समय दिल्ली के आसमान में ऐसे बादल मौजूद नहीं हैं। यहां के वातावरण में प्रदूषण की परत इतनी मोटी है कि नमी के कण बनने में बाधा आ रही है। ऐसे में फिलहाल कृत्रिम बारिश की संभावनाएं भी कम ही नजर आ रही हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि क्लाउड सीडिंग से अस्थायी राहत मिल सकती है, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है। कृत्रिम बारिश हवा में मौजूद धूल और प्रदूषक तत्वों को कुछ समय के लिए नीचे गिरा सकती है, जिससे AQI में सुधार हो सकता है। लेकिन अगर औद्योगिक धुआं, वाहन उत्सर्जन और पराली जलाने पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो यह राहत ज्यादा दिन टिक नहीं पाएगी। फिलहाल दिल्ली के लोग बारिश का इंतजार कर रहे हैं, फिर चाहे ये बारिश प्राकृतिक हो या कृत्रिम, इसका मुख्य उद्देश्य दिवाली के बाद हवा में घुला जहर कम करना है।
Published on:
23 Oct 2025 05:20 pm
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