Indian Food System
Living Planet Report 2024: भारतीय खान-पान पद्धति (Indian Food System) पृथ्वी और पर्यावरण के लिए दुनिया में सबसे बेहतर है। वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) ने गुुरुवार को जारी लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट-2024 में बताया गया है कि भारतीयों के खानपान की आदतों से ग्रीन हाउस गैस (Green House Gas) का उत्सर्जन कम होता है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि यदि सभी देश भारत कै पैटर्न को अपना लें तो 2050 तक पृथ्वी को होने वाला नुकसान काफी कम हो जाएगा। सर्वोत्तम खाद्य प्रणाली में भारत के बाद इंडोनेशिया, चीन, जापान और सऊदी अरब का स्थान है। जबकि रिपोर्ट में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया और US के खान-पान की शैली को सबसे खराब बताया गया है। रिपोर्ट में भारत के मिलेट मिशन (National Millet Mission) का खास तौर पर जिक्र किया गया है। WWF वन संपदा संरक्षण और पर्यावरण पर मानव प्रभाव को कम करने के लिए काम करती हैै। स्विट्जरलैंड की इस संस्था को 1961 में स्थापित किया गया था।
यदि सभी देश भारत के खान-पान पैटर्न को अपनाते हैं, तो 2050 तक हमारी धरती पर मौजूद 84 फीसदी संसाधन हमारी जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त होंगे। इसका मतलब है कि 16 फीसदी संसाधनों का उपयोग भी नहीं होगा। इससे ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warning) भी कम होगी और पर्यावरण का संतुलन सुधरेगा। हम अपने 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य से काफी कम गर्मी उत्सर्जित करेंगे। इससे वातावरण बेहतर होगा। यदि दुनिया अर्जेंटीना का उपभोग पैटर्न अपनाती है तो उसे सबसे अधिक 7.4 पृथ्वी की जरूरत होगी।
रिपोर्ट में कहा गया है, यदि पूरी दुनिया जी-20 देशों जैसे बड़े देशों के खाद्य पैटर्न को अपना ले तो 2050 तक हमारी जरूरतें पूरी करने के लिए सात पृथ्वी की जरूरत होगी। खाने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का मानक 1.5 डिग्री सेल्सियस है। G-20 देशों का खानपान पैटर्न सभी देशों में अपनाए जाने पर इससे 263 फीसदी ज्यादा ग्लोबल वार्मिंग होगी।
इस रिपोर्ट में जलवायु अनुकूल मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए भारत के प्रयासों की भी सराहना की गई है। मोटा अनाज स्वास्थ्य के लिए अच्छा है और जलवायु परिवर्तन के मामले में अत्यधिक लचीला है। रिपोर्ट में कहा गया है, अधिक टिकाऊ आहार खाने से खाद्य उत्पादन के लिए खेतों की जरूरत कम हो जाएगी। इससे चारागाहों की संख्या और क्षेत्र में इजाफा होगा। यह कार्बन उत्सर्जन से निपटने में मददगार होगा।
LPR 2024 के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में वैश्विक वन्यजीव आबादी में 73% की गिरावट देखी गई। यह गिरावट दो साल पहले 69% थी। इनमें सबसे ज्यादा 85% की गिरावट मीठे पानी के जीवों में हुई है, इसके बाद भूमि पर रहने वाले जीवों में 69% और समुद्री जीवों में 56% की गिरावट देखी गई है। दक्षिण अमरीका, कैरेबियाई द्वीप, अफ्रीका, एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सबसे ज्यादा गिरावट देखी गई है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में औसतन 60% वन्यजीवों की संख्या कम हो गई है।
Published on:
11 Oct 2024 10:14 am
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