भारत में गरीबी के मामले में सुधार दर्ज किया गया है। (Photo:IANS)
Poverty in India: आरबीआई (RBI) के पूर्व गवर्नर सी. रंगराजन की देखरेख में बनी समिति ने 2014 में अपनी रिपोर्ट में यह बताया था कि शहरी इलाकों में 47 रुपये प्रतिदिन और ग्रामीण इलाकों में 32 रुपये प्रतिदिन से ज़्यादा खर्च करने वाला कोई भी व्यक्ति 'गरीब' नहीं है। उस समय इस रिपोर्ट को लेकर काफी हलचल मची थी।
इस रिपोर्ट के आधार पर देश में तब गरीबों की संख्या कुल जनसंख्या का 29.5 प्रतिशत आंकी गई थी। हालांकि रंगराजन समिति की रिपोर्ट के बाद से अबतक कोई गरीबी रेखा नहीं तैयार की गई है।
पिछले हफ़्ते आरबीआई के आर्थिक एवं नीति अनुसंधान विभाग के अर्थशास्त्रियों ने एक शोधपत्र प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने 2022-23 के लिए सरकार के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) का उपयोग करते हुए भारत के 20 प्रमुख राज्यों के लिए रंगराजन रेखा को 'अपडेट' किया। परिणामों से पता चला कि 2011-12 और 2022-23 के बीच ओडिशा और बिहार में गरीबी के स्तर में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई। इन दोनों राज्यों में रंगराजन गरीबी रेखा के अद्यतन संस्करण से नीचे रहने वाली आबादी का अनुपात लगभग 40 प्रतिशत अंक गिर गया।
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार, ओडिशा में ग्रामीण इलाकों में गरीबी 2011-12 के 47.8 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 8.6 प्रतिशत हो गई। यह भारत के किसी भी राज्य में सबसे बड़ी गिरावट है। शहरी क्षेत्र में बिहार में यह गिरावट सबसे ज़्यादा रही। बिहार में 9.1 प्रतिशत आबादी अद्यतन गरीबी रेखा से नीचे है। यह रंगराजन समिति के अनुमान के अनुसार 2011-12 के 50.8 प्रतिशत से कम है।
दूसरी ओर गरीबी रेखा से नीचे की आबादी के प्रतिशत में गिरावट केरल और हिमाचल प्रदेश में सबसे कम रही। हालांकि, दोनों राज्यों में गरीबी का स्तर सबसे कम है। वर्ष 2022-23 में आरबीआई स्टाफ द्वारा अद्यतन गरीबी रेखा से नीचे की ग्रामीण आबादी का प्रतिशत केरल में 1.4 प्रतिशत था, जो 2011-12 के 7.3 प्रतिशत से 590 आधार अंक (बीपीएस) कम है। शहरी क्षेत्रों में हिमाचल प्रदेश में गिरावट सबसे कम रही।
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2022-23 में ग्रामीण गरीबी सबसे कम (0.4 प्रतिशत) और छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक (25.1 प्रतिशत) थी। वहीं शहरी गरीबी तमिलनाडु में सबसे कम (1.9 प्रतिशत) और छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक (13.3 प्रतिशत) थी।
चालू वर्ष के जनवरी महीने में भारतीय स्टेट बैंक रिसर्च ने 2023-24 के एचसीईएस आंकड़ों का उपयोग करते हुए अनुमान लगाया था कि ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी 4.86 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 4.09 प्रतिशत होगी। ये अनुमान मुद्रास्फीति-समायोजित 2023-24 गरीबी रेखा पर आधारित थे, जो ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 1,632 रुपये और शहरी क्षेत्रों के लिए 1,944 रुपये थी।
राज्य | 2022-23 (रु/माह) | 2011-12 (रु/माह) |
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दिल्ली | 2,577 | 1,492 |
हरियाणा | 2,083 | 1,128 |
पंजाब | 2,048 | 1,127 |
राज्य | 2022-23 (रु/माह) | 2011-12 (रु/माह) |
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महाराष्ट्र | 2,791 | 1,560 |
हरियाणा | 2,696 | 1,528 |
गुजरात | 2,664 | 1,507 |
राज्य | 2022-23 (रु/माह) | 2011-12 (रु/माह) |
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झारखंड | 1,621 | 904 |
ओडिशा | 1,608 | 876 |
छत्तीसगढ़ | 1,586 | 912 |
राज्य | 2022-23 (रु/माह) | 2011-12 (रु/माह) |
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बिहार | 2,277 | 1,229 |
ओडिशा | 2,182 | 1,205 |
छत्तीसगढ़ | 2,149 | 1,230 |
वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के आधार पर भारतीय एमपीआई गरीबी को स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के आधार पर देखता है। ये 12 संकेतकों द्वारा दर्शाए जाते हैं- पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृ स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने का ईंधन, स्वच्छता, पेयजल, आवास, बिजली, संपत्ति और बैंक खाता। वैश्विक एमपीआई गरीबी को मापते समय मातृ स्वास्थ्य और बैंक खातों को ध्यान में नहीं रखता है।
जनवरी 2024 में सरकार ने कहा था कि पिछले नौ वर्षों में 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से मुक्त हुए हैं और बहुआयामी गरीबी 2013-14 के 29.17 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 11.28 प्रतिशत हो गई है। विश्व बैंक के अनुसार, निम्न-मध्यम आय वाले देशों के लिए 4.2 डॉलर प्रतिदिन की अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा पर, भारत का गरीबी अनुपात 2022 में 23.9 प्रतिशत होगा।
Published on:
19 Oct 2025 12:03 pm
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