
मशहूर शायर, गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख़्तर। (फोटो:IANS.)
Javed Akhtar Controversy: इंटरनेशनल सेलिब्रिटी शायर व गीतकार जावेद अख़्तर के एक वीडियो में किए गए कमेंट (Javed Akhtar Controversy) से बंगाल की सियासत में उबाल आ गया है। इस विषय पर सोशल मीडिया पर तो बहुत बवाल मचा हुआ है। धर्म, समाज, भाषा, राजनीति, पुलिस, प्रशासन और सरकार सभी तनाव में हैं। मामला यह है कि जावेद अख़्तर पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी (West Bengal Urdu Academy ) की ओर से 1 सितंबर को आयोज्य अखिल भारतीय मुशायरे की सदारत करेंगे। इस कार्यक्रम में जावेद अख़्तर (Javed Akhtar) को सरकारी मेहमान के तौर पर बुलाया गया है। इन दिनों मामला यह गर्माया हुआ है कि कुछ लोग जावेद अख़्तर के एक विवादित बयान के कारण उन्हें कार्यक्रम अध्यक्ष बनाने का न केवल विरोध प्रदर्शन कर आपत्ति जता रहे हैं, बल्कि यह फैसला करने पर ममता बनर्जी (Mamta Benergi) सरकार को कठघरे में खड़ा भी कर रहे हैं। जमीअत उलेमा-ए-हिंद (jamiat ulema-e-hind )कोलकाता इकाई के महासचिव िज़ल्लुर रहमान आरिफ़ ने अकादमी उपाघ्यक्ष नदीमुल हक़ (Nadimul Haq) को पत्र लिखा है। ध्यान रहे कि जावेद अख़्तर कम्युनिस्ट विचारक हैं हैं। उनका एक वीडियो के कारण विरोध किया जा रहा है। जावेद अख़्तर ने इस वीडियो में अल्लाह पर कमेंट किया है। कोलकाता में अकादमी ने इस ईवेंट के जगह-जगह बड़े होर्डिंग और पोस्टर लगाए हैं, गुस्साए लोग जावेद अख़्तर के ये पोस्टर जावेद फाड़ रहे हैं
अकादमी का कला मंदिर में आयेाज्य यह तीन दिवसीय कार्यक्रम है, जिसमें पहले दिन एक सितंबर को मुशायरा, 2 और 3 सितंबर को सेमिनार होगा। इसमें शाम 4 बजे एक सितंबर को जावेद अख़्तर से गुफ़्तगू, 2 सितंबर को उमराव जान फेम मशहूर निर्माता निर्देशक पर आधारित एक मुलाकात मुज़फ़्फ़र अली के साथ और 3 सितंबर को हिंदी फ़िल्मों में उर्दू के धनक रंग विषय पर कामना प्रसाद की खास गुफ़्तगू होगी। मुशायरा एक सितंबर को शाम 7 बजे आयोजित किया जाएगा।
अकादमी के मुशायरे का विरोध करने वाले मुसलमानों का कहना है कि वे जावेद अख़्तर को इस कार्यक्रम में बुलाने पर सरकार की निंदा करते हैं। उन्होंने इस संबंध में अकादमी को एक पत्र भी लिखा है और वे कोलकाता में एक रैली भी निकाल चुके हैं। ताजा विवाद यह है कि अब इस प्रकरण में मुसलमानों के धर्म गुरुओं की सबसे बड़ी संस्था जमीअत उलेमा-ए-हिंद भी शमिल हो चुकी है। एक ओर जहां मुसलमानों का एक तबका और उलेमा जावेद अख़्तर का विरोध कर रहे हैं, दूसरी ओर सरकार और अकादमी ने साफ कहा है कि अगर कोई कार्यक्रम में बाधा डालेगा या सरकारी मेहमान को परेशान करेगा तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि इस कार्यक्रम का कार्ड हासिल करने के लिए लोगों में गजब का पेशन है।
जमाअत की कोलकाता इकाई ने एक पत्र में लिखा है कि अख़्तर सिर्फ धर्म से दूर नहीं हैं, बल्कि कई बार धार्मिक संप्रदायों और ईश्वर का मजाक भी उड़ा चुके हैं। जमीअत का कहना है कि ऐसे इंसान को मंच देना हमारे लिए बहुत दुखद है।
इस विवाद पर शायर मोहम्मद खुर्शीद अकरम सोज़ कहते हैं: “होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे…।” सचमुच, दिन-रात अजीब तमाशे हमारी आँखों के सामने होते रहते हैं। ताज़ा तमाशा कोलकाता से है, जहाँ 1 सितंबर को पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी की ओर से एक शानदार मुशायरे का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता के लिए दुनिया भर में मशहूर शायर, गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख़्तर को आमंत्रित किया गया है। लेकिन गर्व महसूस करने की जगह कुछ तथाकथित “उर्दू के ठेकेदारों” ने हो-हल्ला मचाना शुरू कर दिया। उनका तर्क है ; जावेद अख़्तर नास्तिक हैं, इसलिए उन्हें इस मुशायरे का अध्यक्ष नहीं बनाना चाहिए।
वे कहते हैं, यह शोर-शराबा केवल बौद्धिक दिवालियापन ही नहीं, बल्कि घोर पाखण्ड भी है। उर्दू कभी भी सिर्फ़ मुसलमानों की धार्मिक भाषा नहीं रही। यह तो भारत की "गंगा-जमुनी तहज़ीब" की जीती-जागती निशानी है। उर्दू की तरक्क़ी में मुसलमानों के साथ-साथ हिन्दू, सिख, ईसाई और नास्तिक साहित्यकारों का योगदान भी उतना ही बड़ा है। इस सच्चाई से इनकार करना, इतिहास से इनकार करना है।
उनका कहना है, क्या यह आलोचक नहीं जानते कि उर्दू शायरी के बुनियादी स्तम्भ "मीर तक़ी मीर" ने खुद स्वीकार किया था कि उन्होंने इस्लाम तर्क किया ? उनका मशहूर शेर आज भी गूंजता है :
“मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो
क़श्क़ा खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम किया”
सोज़ कहते हैं,अगर "मीर" जैसे शायर की नास्तिकता ने उनकी शायरी की महानता को कम नहीं किया, तो आज जावेद अख़्तर से उर्दू की अध्यक्षता क्यों छीनी जा रही है? क्या अब उर्दू का दरवाज़ा भी धार्मिक दरबानों की चौकीदारी में बंद होगा ?
वे कहते हैं, इस पूरे विवाद में सबसे शर्मनाक भूमिका "जमीअत उलेमा-ए-हिंद, कोलकाता" की रही, जिनके महासचिव ने बाक़ायदा उर्दू अकादमी के उपाध्यक्ष को पत्र लिख कर जावेद अख़्तर की भागीदारी का विरोध किया है। यह धर्म की रक्षा नहीं, बल्कि उर्दू की बहुलतावादी आत्मा की हत्या है।
उनका कहना है कि सच्चाई यही है कि ऐसे विरोधी उर्दू के रक्षक नहीं, उसके ग़द्दार हैं। उर्दू को किसी संकीर्ण धार्मिक पहचान से बाँध देना उसकी आत्मा का गला घोंटना है।
सोज़ कहते हैं, उर्दू सबकी है ; आस्तिकों की भी, नास्तिकों की भी। उर्दू को सांप्रदायिकता का बंधक बनाना सिर्फ़ जावेद अख़्तर के साथ नाइंसाफ़ी नहीं, बल्कि मीर, ग़ालिब, फ़िराक़, प्रेमचंद, कृष्ण चंदर और राजेन्द्रसिंह बेदी और उन तमाम हस्तियों के साथ अन्याय है, जिन्होंने उर्दू को मज़हब की दीवारों से ऊपर उठा कर जिंदा रखा। वे कहते हैं, सवाल साफ़ है : क्या उर्दू खुली सोच और साझा विरासत की भाषा बनी रहेगी, या पाखण्ड के बोझ तले ज़िंदा-जागती दफ़न कर दी जाएगी ?
इस सबंध में संपर्क करने पर उर्दू अकादमी के सदस्य दबीर अहमद ने कहा कि वे अभी एक मीटिंग में बिजी हैं और अभी बात नहीं कर सकते। उर्दू पत्रकार और अकादमी सदस्य सरदार बच्चनसिंह सरल ने कहा कि मुझे विवाद का पता नहीं है। मैं मालूम करवाता हूं।
अकादमी बहुत अच्छा काम कर रही है। अल्लाह रसूल के खिलाफ ऐसे कमेंट नहीं होना चाहिए। जमीयत उलेमा ए हिंद बड़ा मंच है। उसकी बात नजरअंदाज नहीं कर सकते। मुश्किल यह है कि अकादमी किसी की बात नहीं सुन रही है। अकादमी को दूसरे पक्ष की बात सुनना चाहिए। समाज भी खामोशी से विरोध करे, आक्रोश या हिंसा न हो।
-निसार अहमद, पूर्व पुलिस कमिश्नर कोलकाता ने पत्रिका को बताया।
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Updated on:
29 Aug 2025 07:14 pm
Published on:
29 Aug 2025 07:03 pm
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