श्रीनगर की हज़रतबल दरगाह और मस्जिद। (फोटो: ANI.)
Hazaratbal Dargah History: कश्मीर में बहुत सी खूबसूरत जगहें हैं। श्रीनगर के डल झील के किनारे स्थित हज़रतबल दरगाह (Hazaratbal Dargah) न सिर्फ कश्मीर बल्कि, पूरे भारत के मुसलमानों के लिए एक बहुत पवित्र स्थल मानी जाती है। इस दरगाह की खास बात यह है कि यहां मू-ए-मुकद्दस पैगंबर हज़रत मोहम्मद साहब (Prophet Hazrat Mohammed SAW) की पवित्र दाढ़ी का बाल (Sacred Hair of Prophet Muhammad) संरक्षित रखा गया है। यही वजह है कि यह दरगाह देश भर से आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र (Kashmir Religious Places) है। हज़रतबल दरगाह से ख्वाजा नूर-उद-दीन एशाई के वंशजों का गहरा रिश्ता है। यह परिवार पैगंबर हज़रत मोहम्मद साहब के पवित्र बाल की सुरक्षा और सेवा करता रहा है। ख्वाजा नूर-उद-दीन, कश्मीर के सूफी संतों में प्रमुख माने जाते हैं और उनके सिलसिले को दरगाह से जोड़ा जाता है।
ख्वाजा नूर-उद-दीन एशाई एक प्रसिद्ध सूफी संत थे, जो कादरी सिलसिले से जुड़े हुए माने जाते हैं। कहा जाता है कि उन्होंने पैगंबर के पवित्र बाल की देखभाल और उसके सम्मान में इस जगह को स्थापित किया था। वे एक आध्यात्मिक व्यक्ति थे, जिनका कश्मीर के लोगों में गहरा सम्मान था।
धार्मिक इतिहास के अनुसार पैगंबर मोहम्मद का यह बाल पहले मदीना से भारत के बीजापुर लाया गया। बाद में यह ख्वाजा नूर-उद-दीन एशाई को सौंपा गया, जो इसे कश्मीर ले आए। एक समय इसे औरंगज़ेब ने जब्त कर अजमेर भेज दिया था, लेकिन अंत में यह 1699 के आसपास कश्मीर वापस लाया गया और यहीं इसे हज़रतबल दरगाह में रखा गया।
हज़रतबल दरगाह की शुरुआत एक महल 'इशरत महल' से हुई थी, जिसे 1623 में मुगल शासन के दौरान बनवाया गया। बाद में इसे मस्जिद में बदला गया। आज की सफेद संगमरमर की इमारत 1968 में बनना शुरू हुई और 1979 में पूरी हुई।
हज़रतबल दरगाह का निर्माण मुगल काल में शुरू हुआ और बाद में 1979 में इसका पुनर्निर्माण पूरा किया गया। इसकी वास्तुकला मुगल और कश्मीरी शैली का मिश्रण है। इसमें सुंदर गुंबद, मीनारें और अरबी कला देखने को मिलती है। सफेद संगमरमर की बनी इस दरगाह में सुकून मिलता है।
दरगाह में सबसे अधिक भीड़ ईद-मीलादुन्नबी और उर्स शरीफ के दौरान देखी जाती है, जब पवित्र बाल को आम जनता के दर्शन के लिए रखा जाता है। इस अवसर पर न केवल कश्मीर, बल्कि पूरे भारत और पाकिस्तान से भी श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
श्रीनगर के मशहूर साहित्यकार प्रोफेसर मोहम्मद ज़मां आज़ुर्दा और डॉ. इरफ़ान आरिफ़ ने पत्रिका को बताया कि यहां दरगाह और मस्जिद दोनों हैं और दोनों की ऐतिहासिक और धार्मिक हैसियत है।
हज़रतबल दरगाह पर सन 1993 और 1996 में आतंकियों ने हमला किया था। इनमें से एक बार आतंकियों ने दरगाह में घुस कर सुरक्षा बलों से मुठभेड़ भी की थी। यह घटना पूरे देश में सुर्खियों में रही थी और इसके बाद दरगाह की सुरक्षा को और कड़ा कर दिया गया था।
हाल ही में दरगाह परिसर में अशोक स्तंभ के प्रतीक वाली एक उद्घाटन पट्टिका लगाई गई थी। इस पर कुछ लोगों ने आपत्ति जताई और पट्टिका को तोड़ दिया। स्थानीय लोगों का मानना था कि इस पवित्र धार्मिक स्थल पर सरकारी प्रतीकों को प्रदर्शित करना सही नहीं है। इससे राजनीतिक और धार्मिक विवाद गहराया और पुलिस ने मामला दर्ज किया।
सरकारी एजेंसियों ने इसे सिर्फ एक सौंदर्यीकरण परियोजना बताया, लेकिन कुछ राजनीतिक दलों ने इसे जबरन "राष्ट्रवाद थोपना" कहा। सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को लेकर जम कर बहस हो रही है।
Updated on:
07 Sept 2025 06:58 pm
Published on:
07 Sept 2025 06:57 pm
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