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Raghopur Seat: क्या तेजस्वी लगा पाएंगे हैट्रिक! दांव पर है लालू परिवार की विरासत, जानें राघोपुर विधानसभा का इतिहास

Bihar Assembly Elections: बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव ने राघोपुर विधानसभा सीट से अपना नामांकन दाखिल किया।

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Tejashwi Yadav

तेजस्वी यादव (Photo-IANS)

Raghopur Seat: बिहार की राजनीति में राघोपुर विधानसभा सीट हमेशा से लालू प्रसाद यादव परिवार की साख का प्रतीक रही है। बुधवार को नेता प्रतिपक्ष और राजद के युवा चेहरा तेजस्वी यादव ने इस सीट से नामांकन दाखिल कर चुनावी मैदान में कदम रख दिया। यह कदम न केवल उनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को दर्शाता है, बल्कि लालू परिवार की राजनीतिक विरासत को बचाने की चुनौती भी है। 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी की नजर हैट्रिक पर है, जहां वे 2015 और 2020 की जीत को दोहराना चाहते हैं। नामांकन के दौरान तेजस्वी ने कार्यकर्ताओं से कहा कि राघोपुर उनकी कर्मभूमि है और यहां की जनता ने हमेशा परिवार का साथ दिया है। राजद समर्थकों में उत्साह है, लेकिन एनडीए की ओर से मजबूत चुनौती की आहट भी सुनाई दे रही है।

लालू परिवार की विरासत का गढ़

राघोपुर सीट लालू परिवार की राजनीतिक प्रयोगशाला रही है। यहां से दो मुख्यमंत्री (लालू प्रसाद और राबड़ी देवी) और एक उपमुख्यमंत्री (तेजस्वी यादव) निकले हैं। वैशाली जिले में स्थित यह क्षेत्र यादव बहुल है, जहां इस समुदाय का वोट बैंक निर्णायक होता है। लालू परिवार का मूल निवास सारण जिले में होने के बावजूद, राघोपुर को उन्होंने अपना राजनीतिक आधार बनाया। हाजीपुर लोकसभा सीट का हिस्सा होने से यहां केंद्रीय स्तर की राजनीति भी प्रभावित होती है। इस सीट ने तीन केंद्रीय मंत्री दिए (रामविलास पासवान, उनके पुत्र चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस) जो हाजीपुर से सांसद बने। यह दुर्लभ संयोग राघोपुर को बिहार की राजनीति का महत्वपूर्ण केंद्र बनाता है।

ऐतिहासिक यात्रा: 1951 से अब तक

1951 में अस्तित्व में आई राघोपुर सीट शुरू में सामान्य रही। 1952 से 1990 तक विभिन्न दलों के उम्मीदवार जीते, लेकिन 1995 में लालू प्रसाद के मैदान में उतरने से यह सुर्खियों में आई। लालू ने सोनपुर से दो बार विधायक रहने के बाद यहां से 1995 और 2000 में जीत हासिल की। 2000 में राबड़ी देवी ने उपचुनाव जीता और 2005 में फिर सफलता दोहराई। 2010 में राजद को हार मिली, जब जदयू के सतीश कुमार ने जीत दर्ज की। लेकिन 1998 के बाद से राजद का दबदबा कायम है। तेजस्वी ने 2015 में बीजेपी के सतीश कुमार को हराया और 2020 में फिर जीतकर परिवार की लेजसी को आगे बढ़ाया। इस इतिहास से साफ है कि राघोपुर राजद का गढ़ है, जहां जातीय समीकरण और लालू की छवि अहम भूमिका निभाती है।

भौगोलिक और विकास की चुनौतियां

भौगोलिक रूप से राघोपुर पटना के करीब है, हाजीपुर से ज्यादा निकट। गंगा नदी के किनारे बसा यह इलाका बाढ़ प्रभावित है। कृषि प्रधान क्षेत्र में यादव, पासवान और अन्य पिछड़े वर्ग बहुमत में हैं। पटना की निकटता के बावजूद, विकास कार्य नगण्य रहे। सड़कें, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं अपर्याप्त हैं। तेजस्वी अपनी रैलियों में इन्हीं मुद्दों को उठाते हैं, वादा करते हैं कि राजद की सरकार बनी तो प्राथमिकता दी जाएगी। विपक्ष आरोप लगाता है कि लालू परिवार ने सीट को केवल वोट बैंक बनाए रखा, विकास नहीं किया। बाढ़ नियंत्रण और सिंचाई परियोजनाएं लंबित हैं, जो चुनावी मुद्दा बन सकती हैं।

चुनावी समीकरण और चुनौतियां

2025 चुनाव में राघोपुर तेजस्वी के नेतृत्व की परीक्षा है। एनडीए से बीजेपी या जदयू का उम्मीदवार मजबूत दावेदार हो सकता है। जातीय गोलबंदी के अलावा बेरोजगारी, महंगाई और महिला सुरक्षा मुद्दे प्रभावित करेंगे। तेजस्वी की युवा अपील और राजद की संगठन शक्ति फायदेमंद है, लेकिन नीतीश कुमार की लोकप्रियता और मोदी फैक्टर चुनौती। मतदान प्रतिशत और अल्पसंख्यक वोट भी निर्णायक होंगे। यदि तेजस्वी हैट्रिक लगाते हैं, तो यह लालू परिवार की विरासत को मजबूत करेगा, अन्यथा राजद को झटका लगेगा। राघोपुर की लड़ाई बिहार की सत्ता की दिशा तय कर सकती है।