जहाँ बचपन खेलता था खुले में, वहाँ अब मास्क में घुट रही हैं सांसें, लखनऊ के 5 इलाकों में प्रदूषण ने पार किया ‘येलो जोन’ (फोटो सोर्स : AI)
Lucknow Air Turns Toxic: राजधानी लखनऊ में वायु गुणवत्ता (Air Quality Index - AQI) में पिछले कुछ दिनों से वृद्धि दर्ज की जा रही है। मौसम विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी नवीनतम डेटा के अनुसार, गोमतीनगर, तालकटोरा, लालबाग और अलीगंज जैसे प्रमुख इलाकों में प्रदूषण स्तर ‘येलो जोन’ के पार हो गया है। वहीं, शहर के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में स्थित कुकरैल में हवा की गुणवत्ता अभी भी सबसे अच्छी बनी हुई है।
हाल ही में किए गए AQI मॉनिटरिंग के आंकड़ों के अनुसार गोमती नगर में वायु गुणवत्ता सूचकांक 155 दर्ज किया गया, तालकटोरा 152, लालबाग 134, अलीगंज 116 और अम्बेडकर यूनिवर्सिटी क्षेत्र में 124 रहा। इस डेटा से स्पष्ट होता है कि शहर के कुछ क्षेत्रों में धूल, स्मॉग और अन्य प्रदूषक हवा में सामान्य स्तर से अधिक बढ़ गए हैं। वहीं, कुकरैल में 69 AQI दर्ज किया गया, जो कि स्वास्थ्य के लिहाज से सुरक्षित स्तर माना जाता है।
विशेषज्ञों के अनुसार अक्टूबर के मध्य में तापमान में गिरावट, धूल और वाहनों से निकलने वाले धुएं की बढ़ोतरी व वायु का स्थिर होना प्रदूषण बढ़ने के प्रमुख कारण हैं। गोमतीनगर और तालकटोरा जैसे क्षेत्र शहर के व्यस्त औद्योगिक और आवासीय क्षेत्रों में आते हैं, जहाँ ट्रैफिक जाम, निर्माण कार्य और सड़क धूल मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। अक्टूबर के इस समय में हवा में ठंडक और धूल के मिश्रण से AQI बढ़ना सामान्य है। हालांकि, कई इलाके ऐसे हैं जहाँ प्रदूषण नियंत्रण के कड़े उपायों की आवश्यकता है,” बताते हैं डॉ. अमित मिश्रा, क्षेत्रीय अधिकारी, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड।
गोमतीनगर और तालकटोरा में AQI 150 से ऊपर पहुंच गया है, जिसे येलो जोन में माना जाता है। येलो जोन का अर्थ है कि सामान्य व्यक्ति के लिए तो ज्यादा खतरा नहीं है, लेकिन संवेदनशील लोगों जैसे बच्चों, बुजुर्गों और सांस की बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए सतर्क रहने की आवश्यकता है। तालकटोरा में रह रहे मो. आरिफ ने कहा, “हवा में धूल और धुआं इतना बढ़ गया है कि बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। बच्चों को स्कूल भेजते समय मास्क पहनाना पड़ रहा है।” इसी प्रकार गोमती नगर में भी लोगों ने सड़क पर घुली धूल और वाहन धुएं से परेशान होने की बात कही।
लालबाग में AQI 134 दर्ज किया गया है, जो कि येलो जोन के भीतर ही है। यहाँ वायु में प्रदूषण मुख्यतः वाहनों से निकलने वाले धुएं और स्थानीय निर्माण कार्य के कारण है। अलीगंज और अम्बेडकर यूनिवर्सिटी के आस-पास AQI क्रमशः 116 और 124 दर्ज किया गया। हालांकि यह स्तर स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा नहीं मानता, लेकिन संवेदनशील लोगों के लिए सतर्कता आवश्यक है।
शहर के कुकरैल क्षेत्र में AQI 69 रिकॉर्ड किया गया, जो कि ग्रीन जोन में आता है। यहाँ हवा की गुणवत्ता सामान्य और सुरक्षित मानी जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि कुकरैल के आसपास अधिक हरियाली और कम औद्योगिक गतिविधि के कारण हवा में प्रदूषकों की मात्रा कम रहती है।
वायु प्रदूषण का सीधे तौर पर स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। विशेषज्ञों के अनुसार, AQI 150-200 के स्तर पर सामान्य लोग भी सांस लेने में असुविधा, आंखों और गले में जलन महसूस कर सकते हैं। विशेषकर अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और हृदय रोग से पीड़ित लोगों के लिए यह स्तर जोखिमपूर्ण है। डॉ. संजय वर्मा फेफड़ा विशेषज्ञ बताते हैं, “हवा में बढ़े हुए पार्टिकुलेट मैटर फेफड़ों में जा सकते हैं और सांस लेने में तकलीफ, खांसी या एलर्जी जैसी समस्याएं पैदा कर सकते हैं। लोग बाहर निकलते समय मास्क पहनें और संवेदनशील लोगों को घर के अंदर रहने की सलाह दी जाती है।”
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने शहर में प्रदूषण नियंत्रण के लिए कई उपाय सुझाए हैं। इनमें सड़क धूल को नियंत्रित करने के लिए पानी का छिड़काव, निर्माण स्थलों पर कवरेज, वाहन उत्सर्जन पर निगरानी और ट्रैफिक जाम कम करने के उपाय शामिल हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर AQI लगातार बढ़ता रहा तो शहर में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के तहत कड़े कदम उठाए जा सकते हैं, जिसमें निर्माण कार्यों में रोक, वाहनों के संचालन में सीमित समय और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना शामिल है।
शहरवासियों से भी अपील की जा रही है कि वे अपने स्तर पर भी प्रदूषण कम करने के प्रयास करें। पुराने वाहन कम चलाएं, खुले में कचरा जलाने से बचें और हरे पौधों को बढ़ावा दें। पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. साक्षी अग्रवाल बताती है कि हमारे छोटे-छोटे कदम जैसे कारपूलिंग, पौधारोपण और खुले में कचरा न जलाना, शहर की हवा को साफ रखने में मदद कर सकते हैं।
Published on:
14 Oct 2025 12:54 pm
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