जीएसटी में राहत के बाद घटे दाम, पर चलन से बाहर सिक्का बना सिरदर्द (फोटो सोर्स : Whatsapp Group)
GST (जीएसटी) में हाल ही में की गई कटौती के बाद नामी बिस्किट कंपनियों ने उपभोक्ताओं को राहत देने के उद्देश्य से अपने उत्पादों के दाम घटा दिए हैं। पहले जो बिस्किट पैकेट 5 रुपये में बिकता था, अब वही पैक 4 रुपये 50 पैसे में उपलब्ध है। कंपनियों का दावा है कि टैक्स में कमी का सीधा लाभ ग्राहकों तक पहुँचाना उनकी जिम्मेदारी है, लेकिन यह "अच्छा कदम" अब बाजार में एक नई उलझन बन गया है,क्योंकि 50 पैसे का सिक्का अब चलन में लगभग समाप्त हो चुका है।
ब्रिटानिया, परले, आईटीसी जैसी बड़ी कंपनियों ने अपने लोकप्रिय ब्रांडों के छोटे पैक, जैसे ब्रिटानिया मेरीगोल्ड, गुड डे, फिफ्टी-फिफ्टी, और पारले-जी को अब 4.50 रुपये में जारी किया है। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी यही कीमतें दिखाई दे रही हैं। उड़ान पर पारले-जी का छोटा पैक 4.45 रुपये में और आईटीसी सनफीस्ट का पैक 4.50 रुपये में सूचीबद्ध है। कंपनियों के अनुसार यह फैसला उपभोक्ता हित में लिया गया है ताकि जीएसटी कटौती का लाभ जनता तक सीधे पहुँचे। लेकिन जब यह मूल्य खुदरा बाजार तक पहुँचा, तो दुकानदारों और ग्राहकों दोनों के लिए यह नया झंझट बन गया।
लखनऊ के इंदिरा नगर, जानकीपुरम, विकास नगर जैसे क्षेत्रों में स्थिति दिलचस्प हो गई है। रोजमर्रा की खरीदारी के दौरान 50 पैसे का हिसाब न बन पाने के कारण ग्राहक और दुकानदार आमने-सामने आ जाते हैं। जानकीपुरम की गृहिणी रीता श्रीवास्तव बताती हैं कि बच्चों के लिए बिस्किट लेने जाती हूँ तो दुकानदार कह देता है कि 4.50 वाले पैकेट 5 रुपये में ही मिलेंगे। हम कहें कि टैक्स घटा तो कीमत क्यों नहीं घटी, तो जवाब मिलता है - ‘अठन्नी लाओ तो सस्ता दे दूँ।’ अब जब सिक्का ही नहीं है तो हम क्या करें?”
इसी तरह विकास नगर के दुकानदार रमेश गुप्ता कहते हैं कि हम चाहकर भी 4.50 रुपये में बिस्किट नहीं बेच सकते। बैंक से 50 पैसे का सिक्का नहीं मिलता, और ग्राहक अगर दे भी दे, तो अगला ग्राहक लेने से मना कर देता है। अगर हर पैकेट पर 50 पैसे का नुकसान करें, तो महीने भर में हजारों रुपये का घाटा हो जाएगा।”
छोटे किराना दुकानदारों के लिए यह स्थिति सबसे अधिक कठिन बन गई है। कुछ दुकानदारों ने व्यावहारिक समाधान के रूप में 4.50 रुपये वाले पैकेट 5 रुपये में ही बेचने शुरू कर दिए हैं, जबकि कुछ “दो पैकेट 9 रुपये में” की पेशकश कर रहे हैं। लेकिन हर ग्राहक इस विकल्प से खुश नहीं है। कई बार तो ग्राहक बहस में पड़ जाते हैं, जिससे दुकानों पर अनावश्यक तनाव और असंतोष का माहौल बन रहा है। अलीगंज के व्यापारी मनोज अग्रवाल बताते हैं कि कंपनियाँ तो कह रही हैं कि हमने टैक्स में राहत दी, लेकिन हमें तो उसका नुकसान उठाना पड़ रहा है। अगर हम 4 रुपये में बेचें तो घाटा, 5 रुपये में बेचे तो ग्राहक नाराज। अब समझ नहीं आता कि करें तो क्या करें।
सरकार की मंशा थी कि टैक्स घटाकर रोजमर्रा की चीजें सस्ती हों, पर जब मुद्रा का ही अभाव है, तो यह राहत उपभोक्ताओं तक पूरी तरह पहुँच ही नहीं पा रही। बाजार विशेषज्ञों के अनुसार मूल्य निर्धारण करते समय कंपनियों को “मौद्रिक व्यवहार्यता” का भी ध्यान रखना चाहिए था। जब 50 पैसे का सिक्का कई वर्षों से प्रचलन से बाहर है, तो 4.50 रुपये जैसे मूल्य रखना व्यावहारिक नहीं।
खुदरा व्यापार संगठन के अध्यक्ष अनिल मिश्रा कहते हैं कि हमने सरकार और कंपनियों से आग्रह किया है कि ऐसे अधूरे मूल्य तय न किए जाएँ। या तो कीमत 5 रुपये रखी जाए या पैक का वजन थोड़ा कम किया जाए, ताकि सबका हित बना रहे। जब मुद्रा में ‘अठन्नी’ नहीं है, तो उसका हिसाब बनाना असंभव है।”
वरिष्ठ जानकार शास्त्री जी बताते है कि एक और समस्या यह है कि अब बाजार में 50 पैसे की टॉफी या अन्य छोटे सामान भी उपलब्ध नहीं हैं, जिन्हें दुकानदार छुट्टा देने के लिए इस्तेमाल कर सकें। पहले दुकानदार ग्राहक को टॉफी या माचिस देकर हिसाब बराबर कर देते थे, लेकिन अब वह भी संभव नहीं रहा। इससे रोजाना के छोटे लेन-देन में असुविधा बढ़ गई है। ग्राहक को पूरा फायदा नहीं मिल पा रहा और दुकानदार भी नुकसान से बचने के लिए मजबूरन कीमतें बढ़ा देते हैं।
बिस्किट कंपनियों का कहना है कि उन्होंने सरकार के निर्देशों के अनुरूप टैक्स कटौती का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुँचाने का पूरा प्रयास किया है। एक प्रमुख बिस्किट कंपनी के प्रवक्ता ने बताया कि हमारे उत्पादों की कीमतें जीएसटी संशोधन के बाद घटाई गईं। हमारा उद्देश्य उपभोक्ता को सस्ता उत्पाद देना है। मूल्य निर्धारण बाजार और वितरण प्रणाली पर भी निर्भर करता है। हम खुदरा विक्रेताओं से संवाद बनाकर समाधान खोजने का प्रयास कर रहे हैं।”
आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति भारत में चलन से बाहर होती छोटी मुद्राओं की व्यापक समस्या को उजागर करती है। छोटे सिक्कों की कमी केवल बिस्किट तक सीमित नहीं, बल्कि दूध, दही, सब्जी और बस किराया जैसे रोजमर्रा के लेनदेन में भी परेशानी पैदा कर रही है। लखनऊ विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री प्रो. एस.एन. तिवारी का कहना है कि यह एक दिलचस्प उदाहरण है कि नीति और व्यवहार में कितना अंतर है। सरकार ने टैक्स घटाया, कंपनियों ने दाम घटाए, लेकिन जब तक मुद्रा प्रणाली संतुलित नहीं होगी, तब तक उपभोक्ता को वास्तविक लाभ नहीं मिलेगा।
विशेषज्ञों और व्यापारियों दोनों का सुझाव है कि कंपनियां अपने उत्पादों के आकार या वजन में हल्का-सा बदलाव करके 5 रुपये या 4 रुपये का व्यावहारिक मूल्य तय करें। इससे बाजार में स्थिरता आएगी और अनावश्यक विवादों से बचा जा सकेगा। कुछ कंपनियां अब इस दिशा में विचार भी कर रही हैं कि अगली खेप में पैकिंग या मूल्य में बदलाव लाया जाए, ताकि मूल्य निर्धारण उपभोक्ता और व्यापारी- दोनों के लिए सहज हो सके।
Published on:
16 Oct 2025 07:32 am
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