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लखनऊ : दीपों की चमक, पटाखों की गूंज और मिठाइयों की मिठास के बीच दिवाली का त्योहार आते ही एक पुरानी कुप्रथा फिर से सिर उठा लेती है। हलचल भरे बाजारों में चोरी-छिपे उल्लू की अवैध बिक्री शुरू हो चुकी है। धन-प्राप्ति के अंधविश्वास में लोग इस रात उल्लू की बलि चढ़ाने को तैयार रहते हैं, बिना ये सोचे कि ये न सिर्फ कानूनन अपराध है, बल्कि एक निर्दोष प्राणी की क्रूर हत्या भी। वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत सख्ती से प्रतिबंधित इस व्यापार पर नजर रखने के लिए वन विभाग की टीमें दिन-रात सतर्क हैं। लेकिन, फिर भी चोरी छिपे उल्लू की बिक्री हो रही है।
लखनऊ के प्रसिद्ध पशु-पक्षी बाजार चौक, नक्खास और नींबू पार्क दिवाली से पहले ही पक्षियों की चहचहाहट से भर जाते हैं। यहां सामान्य दिनों में उल्लू की कीमत महज 3 से 5 हजार रुपये होती है, लेकिन त्योहार की मांग बढ़ते ही ये आसमान छूने लगती है। एक अवैध व्यापारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, 'दिवाली में तंत्र-मंत्र वालों की डिमांड बढ़ जाती है। धन की कामना के लिए बलि चढ़ाने वाले 20 हजार से लेकर एक लाख रुपये तक चुकाने को तैयार रहते हैं।' ये आंकड़े सिर्फ उल्लू तक सीमित नहीं हैं तोता, मुनिया, तीतर और बटेर जैसे अन्य प्रतिबंधित पक्षियों की भी कीमतें आसमान लगाती हैं।
वन विभाग के डीएफओ सितांशु पांडेय कहते हैं, 'दिवाली पर तांत्रिक क्रियाओं के नाम पर प्रतिबंधित प्रजातियों का अवैध शिकार और व्यापार चरम पर पहुंच जाता है। हमने रेंज के सभी वन कर्मियों को स्थानीय सूचना तंत्र मजबूत करने, सघन गश्त और रात्रि निगरानी के सख्त निर्देश जारी किए हैं।' विभाग ने विशेष दिशा-निर्देश जारी कर रेंजरों को बाजारों में औचक छापेमारी के लिए अलर्ट किया है। जिला प्रशासन, पुलिस, ईको क्लब और एनजीओ के सहयोग से उल्लू की बिक्री पर नकेल कसने की मुहिम चल रही है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी हैं कि रोकथाम आसान नहीं।
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत उल्लू जैसे पक्षियों का शिकार, बिक्री या बलि देना गंभीर अपराध है। पकड़े जाने पर न्यूनतम 6 महीने की कैद और भारी जुर्माना हो सकता है। बावजूद इसके, हर साल दिवाली पर ये कुप्रथा दोहराई जाती है। वन्यजीव प्रेमी संगठनों का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में तांत्रिकों का प्रभाव अभी भी मजबूत है, जहां धन-लाभ के चक्कर में लोग इन निर्दोष पक्षियों की जान ले लेते हैं।
पर्यावरणविदों का मानना है कि उल्लू न सिर्फ पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है – ये चूहों जैसे कीटों को नियंत्रित करता है – बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। फिर भी, बलि की परंपरा इसे विनाश की ओर धकेल रही है। एक एनजीओ कार्यकर्ता ने कहा, 'शिक्षा और जागरूकता अभियान चलाकर ही इस कुप्रथा को जड़ से उखाड़ा जा सकता है। दिवाली धन की नहीं, ज्ञान की रोशनी का त्योहार है।'
Published on:
17 Oct 2025 06:45 pm
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