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शुरू हुई अनोखी परंपरा, बेटी की शादी में दो तोला सोना ही काफी, इस समाज ने की शुरुआत, कम होगा दिखावे का बोझ…

Unique Wedding Initiative By Dadhich Community Jodhpur: समाज के इस निर्णय का मुख्य उद्देश्य परिवारों को आसमान छूती सोने की कीमतों और विवाह के अनावश्यक खर्चों के आर्थिक दबाव से मुक्ति दिलाना है।

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Wedding News Rajasthan: शादी समारोहों में बढ़ते दिखावे और बेतहाशा खर्च की प्रवृत्ति पर लगाम लगाने के लिए दाधीच समाज ने एक साहसिक और ऐतिहासिक कदम उठाया है। समाज ने सर्वसम्मति से यह फैसला लिया है कि अब बेटियों के विवाह में अधिकतम दो तोला (20 ग्राम) से अधिक सोना नहीं दिया जाएगा। समाज के इस निर्णय का मुख्य उद्देश्य परिवारों को आसमान छूती सोने की कीमतों और विवाह के अनावश्यक खर्चों के आर्थिक दबाव से मुक्ति दिलाना है।

आर्थिक संतुलन की पहल

हाल के वर्षों में सोने के भावों में आई अप्रत्याशित वृद्धि ने मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए बेटियों की शादी को एक बड़ी आर्थिक चुनौती बना दिया है। कई परिवार सामाजिक दबाव में आकर कर्ज लेने को मजबूर हो जाते हैं। दाधीच समाज के जोधपुर संभाग अध्यक्ष पवन आसोपा के नेतृत्व में लिए गए इस निर्णय को व्यापक समर्थन मिला है। समाज का मानना है कि दो तोला सोने की यह सीमा एक 'संतुलित' खर्च सुनिश्चित करेगी और परिवार की आर्थिक नींव को कमजोर नहीं होने देगी।

फिजूलखर्ची पर नियंत्रण का आह्वान

केवल सोना ही नहीं, समाज ने विवाह के अन्य पहलुओं पर होने वाले फिजूलखर्ची को भी रोकने का निर्देश दिया है। बड़े, भव्य आयोजनों की बजाय साधारण और पारंपरिक तरीके से विवाह संपन्न करने पर जोर दिया गया है। समाज का स्पष्ट मानना है कि विवाह केवल दिखावे का मंच नहीं, बल्कि दो परिवारों के मिलन और खुशियों का त्योहार होना चाहिए।

'प्री-वेंडिंग शूट' जैसी नई प्रथाओं पर चिंता

समाज ने आधुनिक समय की कुछ नई प्रथाओं, जैसे 'प्री-वेंडिंग शूट' और अनावश्यक फैशन ट्रेंड्स पर भी गहरी चिंता व्यक्त की है। उनका तर्क है कि ये प्रथाएं केवल दिखावे को बढ़ावा देती हैं और परिवार पर गैर-जरूरी आर्थिक बोझ डालती हैं। समाज की पहल है कि ऐसी प्रवृत्तियों पर नियंत्रण किया जाए ताकि विवाह संस्कार अपनी मूल गरिमा और सादगी को बनाए रख सके। अच्छी बात ये है कि ये फैसला देव उठनी एकादशी से ठीक पहले आया है। इस एकादशी से विवाह और सावे शुरू हो जाते हैं।

अन्य समाजों के लिए एक मिसाल

दाधीच समाज का यह प्रगतिशील फैसला न केवल उनके अपने सदस्यों को आर्थिक सुरक्षा देगा, बल्कि यह पूरे देश के अन्य समाजों के लिए एक प्रेरक उदाहरण भी है। यह संदेश साफ है: दिखावे की बजाय वास्तविक खुशियों और वित्तीय स्थिरता को प्राथमिकता देना ही सही सामाजिक सोच है। समाज की यह पहल सामाजिक सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।