विलाप करते परिजन। फोटो- पत्रिका
जोधपुर (सेतरावा)। लवारन गांव गुरुवार शाम गहरे मातम में डूब गया। जैसलमेर बस अग्निकांड में जान गंवाने वाले महेन्द्र मेघवाल, उनकी पत्नी पार्वती, बेटियां खुशबू-दिक्षा तथा पुत्र शौर्य का शव जैसे ही घर के आंगन में रखे गए, परिजन बस बेसुध और स्तब्ध खड़े रह गए। हर आंख रो रही थी, हर सांस जैसे अटक गई थी। माता कराह रही थीं, बहनें चीख रही थीं और भाई अपने आंसुओं को रोक नहीं पा रहे थे।
मां गंवरीदेवी बार-बार अपने पुत्र और पोतों की याद में बेसुध हो गईं। भाई जगदीश और अन्य परिजन उन्हें संभालने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन दर्द इतना गहरा था कि कोई भी खुद को संभाल नहीं पा रहा था। पूरे आंगन में सिर्फ करुण चित्कार और अश्रु की आवाजें गूंज रही थीं। यही हाल महेन्द्र की बहनों का था।
अंतिम यात्रा के दौरान माता और बहनों की हालत बिगड़ गई। चिकित्सकीय टीम ने उन्हें संभाला। वहीं, ससुराल से आए दामाद, बेटी और भाणेज-भाणेजियों का रो-रोकर बुरा हाल था।
आसपास के लोग उन्हें सांत्वना देने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन आंसुओं और दर्द को रोक पाना नामुमकिन था। आगजनी हादसे के बाद पूरे इलाके में गम और खामोशी छा गई है। घरों में तीन दिन से चूल्हे तक नहीं जले। गुरुवार को शवों के आगमन के बाद पूरे गांव में करुणा और शोक का वातावरण व्याप्त था।
महेन्द्र मेघवाल जैसलमेर के भारतीय सेना के आयुध डिपो में सुरक्षा कर्मी थे। उनके पार्थिव शरीर का घर आगमन पर आयुध डिपों के अधिकारी और जवान भी आए और राजकीय सम्मान के साथ उन्हें नमन किया। चौहटन विधायक आदूराम मेघवाल ने भी परिवार को सांत्वना दी और मृतकों को अंतिम सम्मान प्रदान किया। शवों को अंतिम संस्कार के लिए ले जाते हुए पूरे गांव में मातम पसरा रहा। ‘महेंद्र मेघवाल अमर रहें’ के नारे गूंजते रहे। लवारन के श्मसान घाट में पूरे परिवार का अंतिम संस्कार किया गया।
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Published on:
17 Oct 2025 06:00 am
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