Rajasthan Patrika Exclusive Ground Report
जयपुर: जैसलमेर-जोधपुर हाइवे पर हुए दर्दनाक बस हादसे के बाद भी निजी बस ऑपरेटरों ने कोई सबक नहीं लिया है। आपकी और हमारी जिंदगी को दांव पर लगाकर ये बसें अब भी सड़कों पर ‘मौत के ताबूत’ बनकर दौड़ रही हैं।
राजस्थान पत्रिका की एक्सक्लूसिव ग्राउंड रिपोर्ट में गुरुवार देर रात जयपुर के तीन बड़े पॉइंट्स पर रियलिटी चेक किया गया। जो खुलासा हुआ, वह आपके होश उड़ा देगा और परिवहन विभाग की गहरी नींद पर गंभीर सवाल खड़े करेगा। जयपुर से गुजरात, मध्यप्रदेश, यूपी, दिल्ली समेत आठ राज्यों को जाने वाली 60 से अधिक स्लीपर और एसी स्लीपर बसों की पड़ताल में सामने आया कि 80 प्रतिशत बसें चलता-फिरता आग का गोला हैं, जिनमें आग बुझाने के लिए कोई इंतजाम नहीं है।
इससे भी भयावह यह है कि 90 प्रतिशत बसों में जिस इमरजेंसी गेट से अनहोनी के वक्त आपकी जान बच सकती है, उसे पैसों की लालच में सीटों, फ्रिज और कॉफी मशीन से लॉक कर दिया गया है।
टीम ने जब देर रात बस स्टैंडों पर पड़ताल की तो चौंकाने वाली तस्वीरें सामने आईं। लगभग हर बस में इमरजेंसी गेट के सामने या तो स्लीपर सीट बना दी गई या फिर उसे सामान रखने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था। एक लग्जरी बस में आपातकालीन गेट के सामने फ्रिज और कॉफी मशीन फिट की गई थी।
नियम के मुताबिक, इमरजेंसी गेट का रास्ता साफ होना चाहिए, लेकिन ऑपरेटर यात्रियों की जान की कीमत पर रुपए कमाने में जुटे हैं। अगर आग लगने, नदी में गिरने और बस पलटने जैसा हादसा हो तो यात्रियों का निकालना नामुमकिन है।
राजस्थान पत्रिका की टीम ने दो दिन (मंगलवार और बुधवार) रात 8 बजे से 2 बजे के बीच जयपुर के सिंधी कैंप बस स्टैंड, दुर्गापुरा फ्लाईओवर और नारायण सिंह सर्किल पर निजी और सरकारी, दोनों तरह की स्लीपर बसों का रियलिटी चेक किया। इस पड़ताल में जो सच सामने आया, वह रोंगटे खड़े कर देने वाला है।
जांच में पाया गया कि 70 प्रतिशत से अधिक बसों में अग्निशामक यंत्र या तो थे ही नहीं। जिन गिनी-चुनी बसों में ये यंत्र मिले भी, वहां के 90 प्रतिशत ड्राइवरों और स्टॉफ को यह तक नहीं पता था कि इसे चलाया कैसे जाता है। फर्स्ट एड मेडिकल किट सिर्फ 5 बसों में ही मिली। जब ड्राइवरों से इस बारे में पूछा गया तो वे या तो चुप हो गए या फिर बहाने बनाने लगे। यह साफ दिखाता है कि यात्रियों की सुरक्षा उनके लिए कोई मायने नहीं रखती।
पड़ताल के दौरान उस वक्त हद हो गई, जब मध्यप्रदेश जा रही बस जिसका नंबर एमपी 07 एएफ 5699 था। उसके स्टॉफ ने रिपोर्टर के साथ बदतमीजी की। बस में बाउंसर थे, जिन्होंने जांच का विरोध किया और धमकाने लगे। जब रिपोर्टर ने सवाल किए तो ड्राइवर ने बस को तेजी से आगे बढ़ा दिया। फोटो लेने के दौरान डराने की कोशिश की।
ये घटना बताती है कि ऑपरेटर न केवल नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, बल्कि कानून हाथ में लेने से भी नहीं डरते। सवाल यह है कि इतना संरक्षण इन्हें कहां से मिल रहा है? आखिर कब तक आम आदमी इन ’मौत के ताबूतों’ में जान जोखिम में डालकर सफर करता रहेगा?
पड़ताल की भनक लगते ही लगभग 50 प्रतिशत बस मालिकों ने आनन-फानन में बुधवार को ही नए अग्निशामक यंत्र खरीदे। एक बस में तो नया यंत्र पैकिंग के साथ बॉक्स में बंद मिला। यह बस ऑपरेटरों की आपराधिक लापरवाही और जनता की सुरक्षा के प्रति उनके खोखले रवैये को उजागर करता है।
हमारी टीम को बसों में जाकर फिजिकल चेकिंग करता देख बस ऑपरेटरों में हड़कंप मच गया। सिंधी कैंप और नारायण सिंह सर्किल से करीब 10 बसें रिपोर्टर को देखते ही रफ्तार से भाग निकलीं। कई ऑपरेटरों ने प्रशासन द्वारा अलग-अलग चेक पॉइंट्स पर व्यापक चेकिंग के डर से अपनी बसें ही रद्द कर दीं, जिसका खामियाजा उन यात्रियों को भुगतना पड़ा जो गंतव्य पर जाने के लिए घंटों से इंतजार कर रहे थे। ऐसे यात्री देर रात बस स्टैंड पर बेबस नजर आए।
केस 1 दुर्गापुरा : रामविलास गुप्ता पत्नी पुष्पा के साथ झालावाड़ के लिए 15 तारीख की रात 9:45 बजे जाना था। लेकिन जब वे दुर्गापुरा फ्लाईओवर स्टैंड के पास पहुंचे तो उन्हें फोन करके बताया गया कि बस कैंसिल हो गई है।
केस 2 सिंधी कैंप : रविंद्र सिंह ने कोटा जाने के लिए बस की बुकिंग की थी, लेकिन चेकिंग के डर से ऑपेरटर ने बस कैंसिल कर दी। बाद में उन्होंने देर रात में ट्रेन से जाने का निर्णय लिया।
केस 3 नारायण सिंह सर्किल : अभिजीत ने मां के साथ जयपुर से ग्वालियर जाने के लिए बस बुक किया था। लेकिन, उनकी बुकिंग एन मौके पर कैंसिल कर दी गयी। वह काफी देर तक अपने गंतव्य के लिए जाने वाली बस का इंतजार करते रहे।
Updated on:
17 Oct 2025 11:51 am
Published on:
17 Oct 2025 11:36 am
बड़ी खबरें
View Allजयपुर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग