खाली पड़ा नीमकाथाना का भूदोली बांध। फोटो: पत्रिका
जयपुर। राजस्थान में इस बार मानसून ने कई जिलों में औसत से अधिक और कहीं रेकॉर्ड बारिश दी। इसके बावजूद 95 से अधिक बांध अब भी सूखे पड़े हैं। राजस्थान पत्रिका की पड़ताल में सामने आया कि पानी आने के रास्तों पर अतिक्रमण, अवैध खनन, फार्म हाउस और एनीकट जैसी बाधाएं खड़ी हो गई हैं। इसके कारण पानी बांधों तक पहुंच ही नहीं पाया।
जल संसाधन विभाग के अधिकारी ‘छितराई बारिश’ का तर्क देते रहे, जबकि आंकड़े बताते हैं कि कई जिलों में सामान्य से कहीं अधिक वर्षा हुई। बांधों में जल संकट का सबसे बड़ा असर उन हजारों किसानों और ग्रामीणों पर पड़ा है, जिनकी सिंचाई और पेयजल जरूरतें इन्हीं तालाबों-बांधों पर निर्भर हैं।
अजमेरः कायड़ का फूलसागर 40 साल बाद लबालब हुआ। बीर तालाब भी 1985 के बाद पहली बार पूरा भरा। इनसे करीब 10 हजार ग्रामीणों को राहत मिलेगी।
जयपुर: जिले के 19 बड़े बांध इस बार भी सूखे रहे। रामगढ़, कालखसागर, जोबनेर, जवानपुरा धाबाई, जमदेई, दूबली, शिखर घटा, कूकस, पाटन और नीझर जैसे बांधों तक पानी नहीं पहुंच पाया। मुख्य वजह-बहाव क्षेत्र में अतिक्रमण और एनीकट। रामगढ़ बांध की सहायक नदियों में पानी आया, लेकिन बीच में अतिक्रमण के कारण वह बांध तक नहीं पहुंच सका।
अजमेर: घूघरा तलाब की जल आवक अतिक्रमण से बाधित है। वर्षों से स्थिति जस की तस बनी हुई है, लेकिन प्रशासन मौन है।
अलवर: लक्ष्मणगढ़, तुसारी, धमरेड़ और देवती बांध में 530-840 मिमी बारिश के बावजूद पानी नहीं पहुंचा। एनीकटों ने जल प्रवाह रोक दिया।
खेतड़ी: अवैध बजरी खनन ने मोड़ी ईलाखर और अजीत सागर बांधों की जल आवक को खोखला कर दिया। 2010 के बाद से ईलाखर बांध नहीं भरा।
झुंझुनूं: छापोली, मावता और पौंख बांध दशकों से सूबे हैं। कभी मत्स्य पालन और रोजगार के स्रोत रहे ये बांध अब खनन और एनीकटों की भेंट चढ़ गए।
सिरोही: मंडार नाला बांध और कैलाश नगर बांध एनीकटों से प्रभावित। 806 मिमी बारिश के बावजूद जल आवक बाधित रहीं।
पाली: जादरी डायवर्सन बांध में पानी आया, लेकिन उसे सीधे सिंदरू बांध में डायवर्ट कर दिया। स्टोरेज नहीं होने से जादरी फिर खाली रह गया। बालसमंद भी अतिक्रमण और कम बारिश से सूखा रहा।
नागौर: 679 मिमी बारिश के बावजूद गगराना, पूंदलु और मोकलपुर-द्वितीय बांध खाली रहे। फार्म पौंड और चारदीवारी ने जल आवक रोक दी। कुछ बांध 9 तो कुछ 15 वर्षों से सूखे हैं।
भीलवाड़ा: पोटला तालाब एनीकट और कच्ची नहरों के कारण नहीं भर पाया। इससे 2 हजार किसानों की सिंचाई प्रभावित हुई। देवरिया और झडोल बांध भी इसी कारण सूखे रहे।
प्रदेश के जो 95 बांध खाली रह गए उनकी कुल जल संग्रहण क्षमता 290.45 मिलियन क्यूबिक फीट है। यदि ये बांध पूरी तरह भर जाते, तो यह पानी लाखों लोगों की जिंदगी में राहत बन सकता था।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह जल मात्रा 8,227 करोड़ लीटर के बराबर है। यानी इससे 60 लाख से अधिक लोगों की एक साल की घरेलू जल जरूरतें पूरी की जा सकती थीं। इतना ही नहीं, यह पानी 16 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि की सिंचाई में भी काम आ सकता था। यह प्रदेश के लाखों किसानों की फसलें बचा सकता था।
पशुपालन के लिहाज से देखें तो यह जल 1 करोड़ से अधिक पशुओं को छह महीने तक पानी देने के लिए पर्याप्त होता। साथ ही, यदि यह जल बांधों में सुरक्षित रूप से पहुंचता, तो आसपास के कुओं, ट्यूबवेल और जल स्रोतों का जलस्तर भी सुधर सकता था।
Published on:
29 Sept 2025 11:28 am
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