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Diwali Special: वह भी क्या दिवाली थी… जयपुर में 8 नवंबर 1942 की दिवाली पर दो मण आठ सेर तेल के दिये जलाए

रियासत कालीन राज दरबारों में बड़ी दिवाली के दिन तत्कालीन राजा महाराजा काली पोशाक पहनकर महारानी के साथ महल में दिवाली पूजन करते थे। नगर के दरवाजों पर नंगाड़ों और शहनाइयों की मधुर आवाज सुनाई पड़ती।

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diwali in jaipur 1942

Photo- Patrika

Diwali Special: वह भी क्या दिवाली थी…। तब सुकून भरे माहौल में महलों, हवेलियों, मंदिर, गढ़ और किलों पर जगमगाती दीपकों की रंगीन रोशनी के इन्द्र धनुषी झरने बहते दिखाई देते थे। आज के आधुनिक परिवेश में दिवाली पहले से ज्यादा धूम धड़ाके से मनती है। लेकिन सार्वजनिक आनंद का जो भाव उस समय था वह आज कहीं खोया सा लगता है।

जयपुर सहित राजस्थान की अनेक रियासतों में भगवान राम की राजधानी अयोध्या की प्राचीन परम्पराओं के तहत दिवाली का त्योहार मनाया जाता रहा है। उस दौर में शरद पूर्णिमा के बाद से ही दीपावली मनाने की तैयारी शुरू हो जाती।

रियासत कालीन राज दरबारों में बड़ी दिवाली के दिन तत्कालीन राजा महाराजा काली पोशाक पहनकर महारानी के साथ महल में दिवाली पूजन करते थे। नगर के दरवाजों पर नंगाड़ों और शहनाइयों की मधुर आवाज सुनाई पड़ती। दिवाली पूजन के लिए 27 कुओं का पवित्र जल और हाथियों के ठाण की मिट्टी आदि सामान एकत्रित किया जाता था।

दूसरी रियासत के महाराजा आते थे त्योहार का वैभव देखने

जयपुर की रियासत में गोवर्धन पूजा के बाद बलिराज का पूजन करने के बाद काली पोशाक पहने महाराजा काले घोड़े पर बैठकर एक हाथ में तलवार और दूसरे में लगाम लेकर किले के दरवाजे पर लटकी घास की रोटी के नीचे से निकलते। प्रजा की सुख समृद्धि की कामना से दिवाली के दूसरे दिन भगवान विष्णु का मार्गपाली जुलूस निकलता था।

हाथी पर बैठे महाराज प्रजा को दिवाली की बधाई देने नगर में निकलते। जुलूस के आगे भगवान सीता रामजी का रथ चलता। गलता, बालानंद जी आदि धार्मिक पीठों के संत महंत पालकियों में बैठे जुलूस में चलते।

राजा महाराजा एक दूसरी रियासत की दिवाली देखने मेहमान बनकर आते। एक बार बीकानेर महाराजा गंगा सिंह और आजादी के बाद 1951 की दिवाली पर कांग्रेस नेता देवी शंकर तिवाड़ी दरबार में शामिल हुए।

जोधपुर में महाराजा की ओर से दिया जाता था बड़ा भोज

एक रिकार्ड के मुताबिक 8 नवंबर 1942 की दिवाली पर दो मण आठ सेर तेल के दिये जलाए गए। गोवर्धन पूजा के दिन गाय, बैल और बछड़ों के सीगों पर तेल व गेरू लगाकर पूजा की जाती है। जयपुर में शोरगरों के नायाब हुनर का जादू मानो आकाश छूने को मचल उठता।

रियासती ठिकानों में श्रेष्ठ कार्य करने वाले कर्मचारियों को दिवाली दरबार में सम्मानित किया जाता। इतिहासकार डॉ. राघवेन्द्र सिंह मनोहर ने लिखा है कि दिवाली के दिन मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा नगीना बाड़ी में दरबार लगाते।

वहां पर आने वाले सामंतों आदि को काली गोंद गिरी का गन्ना भेंट करते। जयपुर में दिवाली का शाही दरबार होता। चंद्रमहल में लक्ष्मी पूजन पर राजा रानी धृत क्रीड़ा यानी जुआ की रस्म निभाई जाती थी। जोधपुर में महाराजा की ओर से दीपावली पर बड़ा भोज दिया जाता था।