जेडीए। पत्रिका फाइल फोटो
जयपुर। जेडीए की आवासीय योजनाएं सरकारी लूट की मिसाल बनती जा रही हैं। 25 से 30 वर्ष पहले जयपुर शहर से 30-32 किलोमीटर दूर काटी गई इन कॉलोनियों में आज भी विकास का नामोनिशान नहीं है। बीते 11 वर्षों में जेडीए ने करीब 60 योजनाएं लॉन्च कीं, जिनमें लगभग 37 हजार भूखंड सृजित किए गए। इनमें से 90 फीसदी भूखंड बिक चुके हैं और जेडीए को करीब 2000 करोड़ रुपए की आमदनी हुई।
लेकिन इस राजस्व के बावजूद इन योजनाओं में न सड़कें बनीं, न पानी पहुंचा। यहां रहने वाले लोग खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। स्थिति इतनी बदहाल है कि ऐसा लगता है, आने वाले 20 वर्षों में भी इन कॉलोनियों तक विकास नहीं पहुंच पाएगा।
जेडीए ने जनता को विश्वास में लेकर आवास नहीं, बल्कि आश्वासन बेचा। फाइलों में विकास पूरा दिखा दिया गया, जबकि जमीन पर धूल, झाड़-झंखाड़ और टूटी सीमाएं ही नजर आती हैं। हैरानी की बात यह है कि इन्हीं योजनाओं के आसपास निजी डवलपर्स की कॉलोनियां पूरी तरह विकसित हैं। पक्की सड़कें, बिजली, पानी और सीवर लाइन तक की सुविधा यहां मौजूद है।
स्वर्ण विहार योजना 2010: 200 बीघा में विकसित इस कॉलोनी में केवल 30 प्रतिशत मकान ही बने हैं। उस समय दरें छह से आठ हजार रुपए प्रति वर्ग गज थीं, जो अब 60 हजार तक पहुंच चुकी हैं। इसके आसपास पार्श्वनाथ सिटी, नारायण सिटी, श्याम नगर, बालाजी विहार, गणपति नगर और माधव नगर कॉलोनियां पिछले पांच से सात सालों में पूरी तरह विकसित हो चुकी हैं।
हाथोज-करधनी योजना 1996: तीन दशक बीत जाने के बाद भी यहां सड़क नहीं बनी। 400 प्लॉट में से मुश्किल से 10 प्रतिशत पर ही मकान बने हैं। आसपास का इलाका पूरी तरह विकसित है, मुख्य सड़क पर भाव एक लाख और अंदरूनी हिस्से में 45 हजार रुपए प्रति वर्ग गज तक पहुंच गए हैं।
आदित्य विहार योजना 2005: रिंग रोड पार अचरावाला स्थित इस योजना में दूर-दूर तक महज 20 मकान नजर आते हैं। उस समय दरें पांच से सात हजार रुपए प्रति वर्ग मीटर थीं। पास ही जगदीश विहार और मुख्य सड़क पर अन्य कॉलोनियां विकसित हो चुकी हैं।
योजना का नाम | लॉन्चिंग वर्ष | जेडीए से दूरी (किमी) |
---|---|---|
हाथोज-करधनी | 1996 | 34 |
आदित्य विहार | 2010 | 29 |
रोहिणी विहार | 2008 | 32 |
अभिनव विहार | 2014 | 31 |
देव विहार | 2014 | 33 |
पार्थ नगर | 2015 | 20 |
यश विहार | 2015 | 32 |
जेडीए ने 1996 में योजना बनाई थी। हमने 2012 में मकान बनाया। बिजली कनेक्शन के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। अब जाकर कनेक्शन मिलना शुरू हुआ है। अभी तक सड़क नहीं है, पानी के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ती है।
-महेश शर्मा, निवासी हाथोज-करधनी
2006 में करीब पांच लाख रुपए में प्लॉट खरीदा था। आज जब वहां जाते हैं तो कॉलोनी कम, जंगल ज्यादा नजर आता है। अब तक मकान बनाने की सोच भी नहीं पाए। सच कहूं तो मैं अपने प्लॉट को भूल चुका हूं।
-बंशी सैनी, निवासी आनंद लोक
क्या आप भी जेडीए की किसी योजना में भरोसे के शिकार हुए हैं? बताएं कि आपने किस सोच से भूखंड खरीदा और आज उसकी क्या स्थिति है। वाट्सऐप करें: 8094020235
Published on:
15 Oct 2025 03:25 pm
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