आईमाता जन्मोत्सव के अवसर पर हुब्बल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम (फाइल फोटो)।
आईमाता जन्मोत्सव केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता, परंपराओं के संरक्षण और आने वाली पीढिय़ों को संस्कृति से जोडऩे का अवसर है। सीरवी समाज द्वारा हर वर्ष किया जाने वाला यह भव्य आयोजन समाज की आस्था और एकजुटता का उदाहरण प्रस्तुत करता है।
सीरवी समाज के दो दर्जन परिवार
सीरवी समाज हुब्बल्ली-धारवाड़ में राजस्थान मूल के करीब दो दर्जन परिवार जुड़े हुए हैं। इनमें अधिकांश परिवार राजस्थान के पाली जिले के हैं और कुछ परिवार जोधपुर जिले से हैं। भाद्रपद शुक्ल द्वितीया का दिन सीरवी समाज के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन सीरवी समाज अपनी आराध्य देवी आईमाता का जन्मोत्सव बड़े हर्षोल्लास और धार्मिक श्रद्धा के साथ मनाता है। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि समाज की एकजुटता, सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक गौरव को भी दर्शाता है।
आईमाता का परिचय
आईमाता को सीरवी समाज की कुलदेवी माना जाता है। लोकविश्वास है कि आईमाता ने अपने जीवन में धर्म, सत्य और न्याय की रक्षा के लिए अद्वितीय योगदान दिया। वे शक्ति और सद्गुण की प्रतीक मानी जाती हैं। कहा जाता है कि आईमाता ने समाज को सदैव सत्य मार्ग पर चलने, परिश्रम करने और परोपकार की भावना से जीवन जीने की प्रेरणा दी। आज भी सीरवी समाज अपनी हर धार्मिक और सामाजिक गतिविधि में आईमाता का स्मरण कर उन्हें अपनी शक्ति और प्रेरणा का स्रोत मानता है।
जन्मोत्सव के धार्मिक आयोजन
आईमाता के जन्मोत्सव के अवसर पर सीरवी समाज के लोग सुबह से ही पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और जागरण का आयोजन करते हैं। आईमाता के मंदिरों में इस दिन भक्तों की विशेष भीड़ उमड़ती है। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सज-धज कर विशेष रीति-रिवाजों से पूजा करती हैं। रातभर चलने वाले जागरण में राजस्थान की भजन मंडलियां भजन-कीर्तन गाकर माता का गुणगान करती हैं।
महाप्रसादी और सामाजिक मिलन
इस मौके पर विशेष रूप से महाप्रसादी का आयोजन होता है। यह आयोजन समाज के बीच एकता, समानता और भाईचारे की भावना का संदेश भी देता है। इस आयोजन में छत्तीस कौम के लोग भी भाग लेते हैं।
जनप्रतिनिधियों और अतिथियों का स्वागत
सीरवी समाज की ओर से समय-समय पर राजस्थान से आने वाले प्रमुख जनप्रतिनिधियों, गणमान्य व्यक्तियों और अतिथियों का स्वागत-सत्कार भी किया जाता है। आईमाता जन्मोत्सव के साथ-साथ सीरवी समाज अन्य पर्व-त्यौहार जैसे तीज, गणेश चतुर्थी और नवरात्रि भी पूरे उत्साह और श्रद्धा से मनाता है। यह उनके जीवन में धार्मिकता और सामाजिकता का सुंदर संतुलन दर्शाता है।
Updated on:
22 Aug 2025 06:11 pm
Published on:
22 Aug 2025 06:03 pm
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