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जिनके कदम शराब व ड्रग्स से लडख़ड़ाते थे, अब उन कदमों में फुटबाल थिरकती है

(Assam News ) देश के लिए (Guwahati News ) अपना कर्तव्य निभाने (Duty for country ) वाले कभी भी परिस्थि तियां नहीं देखते। विपरीत परिस्थितियों के बीच भी अपना फर्ज निभाने का रास्ता निकाल लेते हैं। सुदूर नागालैंड के बॉर्डर पर बसे (Border village of Nagaland ) एक गांव में लिरोथांग इसी जुनून में लगे हुए है कि युवाओं को सही दिशा कैसे दी जाए। जिन युवाओं के कदम (Now football danceing on footstpes ) शराब के नशे में लडख़ड़ाते थे, उन्हीं कदमों अब फुटबाल थिरकने लगी है।

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जिनके कदम शराब व ड्रग्स से लडख़ड़ाते थे, अब उन कदमों में फुटबाल थिरकती है

जिनके कदम शराब व ड्रग्स से लडख़ड़ाते थे, अब उन कदमों में फुटबाल थिरकती है

गुवाहाटी(असम): (Assam News ) देश के लिए (Guwahati News ) अपना कर्तव्य निभाने (Duty for country ) वाले कभी भी परिस्थितियां नहीं देखते। विपरीत परिस्थितियों के बीच भी अपना फर्ज निभाने का रास्ता निकाल लेते हैं। सुदूर नागालैंड के बॉर्डर पर बसे (Border village of Nagaland ) एक गांव में लिरोथांग इसी जुनून में लगे हुए है कि युवाओं को सही दिशा कैसे दी जाए। जिन युवाओं के कदम (Now football danceing on footstpes ) शराब के नशे में लडख़ड़ाते थे, उन्हीं कदमों अब फुटबाल थिरकने लगी है। शराब और ड्रग्स की लत का स्थान फुटबाल के शौक ने लिया और अब यह खेल उनकी बदली हुई जिंदगी का हिस्सा बन गया है।

सीमावर्ती गांव में हुआ यह कमाल
यह दास्तान है नागालैंड के बॉर्डर के पास मेरापानी गांव के लिरोथंग की। गांव में एक युवक ने लॉकडाउन को अवसर के तौर पर चुना है। दरअसल 22 साल के लिरोंथंग पंजाब के एक फुटबॉल क्लब के लिए खेलते हैं। लॉकडाउन से पहले वह अपने क्लब से छुट्टी लेकर गांव में घूमने आए थे, लेकिन लॉकडाउन लग जाने की वजह से वह अपने गांव में ही रह गए। इस दौरान लिरोंथंग ने देखा कि गांव के युवा ड्रग्स और शराब की गिरफ्त में आ चुके हैं। अपने गांव के अधिकांश युवाओं को बचाने के लिए लिरोंथंग ने अपने प्रोफेशन का सहारा लिया है। उन्होंने ठान लिया कि वह फुटबॉल के जरिए अपने गांव के युवाओं को नशे की गिरफ्त से आजादी दिलाएंगे।

नशे की गिरफ्त से निकाला बाहर
लिरोंथंग ने बताया, 'इन्हें नशे में देख मैंने तय किया कि, जब भी लंबी छुट्टी पर घर आऊंगा, इन्हें फुटबॉल सिखाना है और इनके पैरों को फुटबॉल की आदत लग गई तो नशा छूट जाएगा।' लिरोंथंग ने अपने गांव के युवाओं को फुटबॉल सिखाने की शुरुआत इसी साल जून में की है। वो बताते हैं कि पहले अकेले ही मैदान में फुटबॉल लेकर जाते और खेलते रहते। फुटबॉल दूर चले जाने पर बच्चों को बोलते कि इसे लेकर आएं, लिरोंथंग ने बताया, 'उन्होंने किसी बच्चे से फुटबॉल खेलने के लिए नहीं बोला, लेकिन उन्हें ग्राउंड पर फुटबॉल के साथ नाचते हुए देख बच्चों को भी मजा आने लगा। दो से तीन, तीन से पांच और इसी तरह ग्राउंड पर बच्चे बढ़ते चलते गए।'

21 युवाओं को ट्रेनिंग
लिरोंथंग बताते है कि, आज ग्राउंड पर 17 साल के करीब 21 बच्चे उनसे फुटबॉल की ट्रेनिंग ले रहे हैं। शुरुआत में बच्चों को ट्रेनिंग देने के लिए उनके पास किट नहीं थी, लेकिन अब उन्हें लोकल लोगों से सपोर्ट मिल रहा है, कुछ एकेडमी और क्लब भी मदद के लिए आगे आए हैं। साथ ही कई कंपनियों ने न्यूट्रिशनल डाइट भी मुहैया कराई है।

फुटबाल से मंत्रमुग्ध कर पाया मुकाम
2010 में लिरोंथंग के गांव मेरापानी में फुटबॉल का एक मैच था। मैच देखने के लिए बड़े खिलाड़ी आए थे। उन्होंने लिरोंथंग को ग्राउंड पर तेजी से भागता देखा, तो गोलघाट में होने वाले ट्रायल में बुला लिया। जिसमें लिरोंथंग सिलेक्ट हो गए। इसके बाद 2013 में साई के ट्रायल में भी सिलेक्ट हुए. 2015 में कोलकाता के मोहन बागान क्लब से जुड़े। 2018 में गोवा में चर्चिल ब्रदर्स एफसी की ओर से खेले और 2020 में राउंडग्लास पंजाब एफसी जॉइन किया।