Aarti ka sahi tarika (Photo- gemini ai)
Aarti ka Sahi Tarika: आरती हमारे हिंदू धर्म की सबसे महत्वपूर्ण पूजा विधियों में से एक है। पूजा के अंत में आरती करना ईश्वर के प्रति श्रद्धा, प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। लेकिन अक्सर लोगों के मन में यह सवाल रहता है कि आरती खड़े होकर करनी चाहिए या बैठकर? बहुत से लोग परंपरा या सुविधा के अनुसार बैठकर आरती करते हैं, जबकि कुछ लोग मानते हैं कि आरती हमेशा खड़े होकर करनी चाहिए। आइए जानते हैं शास्त्रों और परंपराओं के अनुसार आरती करने के नियम, कारण और धार्मिक महत्व।
‘आरती’ शब्द संस्कृत के आरात्रिक से बना है, जिसका अर्थ है अंधकार को दूर करना। आरती के समय दीपक जलाकर भगवान के सामने घुमाया जाता है, जो प्रतीक है कि हम अपने जीवन के अज्ञान, दुख और नकारात्मकता को भगवान के प्रकाश से दूर करना चाहते हैं।
धार्मिक ग्रंथों और पुराणों के अनुसार, आरती करते समय खड़ा रहना सबसे श्रेष्ठ माना गया है। जब हम खड़े होकर आरती करते हैं, तो यह सम्मान और समर्पण की मुद्रा होती है। खड़े होने से शरीर में ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है और मन अधिक केंद्रित रहता है। यह भाव दर्शाता है कि हम भगवान की सेवा और दर्शन के लिए पूरी श्रद्धा से तत्पर हैं। इसीलिए मंदिरों में देखा जाता है कि पंडित और भक्त आरती के समय खड़े रहते हैं, और दीपक या थाल को हाथ में लेकर भगवान के समक्ष घुमाते हैं।
हालांकि कुछ परिस्थितियों में बैठकर आरती करना भी स्वीकार्य है। अगर कोई व्यक्ति बीमार, वृद्ध या शारीरिक रूप से कमजोर है, तो वह बैठकर आरती कर सकता है। घर के मंदिर में अगर जगह कम है, तो भक्त श्रद्धा से बैठकर भी आरती कर सकते हैं। सबसे जरूरी बात आरती करते समय मन में भक्ति और भावनाओं की पवित्रता होनी चाहिए, न कि केवल शारीरिक मुद्रा पर ध्यान। शास्त्रों में कहा गया है “भावप्रधानं न क्रियाप्रधानं” अर्थात भगवान कर्म नहीं, भाव देखते हैं। इसलिए अगर मन में सच्ची श्रद्धा हो, तो बैठकर की गई आरती भी उतनी ही फलदायी होती है जितनी खड़े होकर की गई।
आरती से पहले दीपक में शुद्ध घी या सरसों का तेल डालें। आरती करते समय भगवान के सामने दक्षिणावर्त (दाईं दिशा में) दीप घुमाएं। आरती के बाद हाथों से भगवान की ज्योति को आंखों और माथे से लगाएं। आरती के समय मन शांत रखें और भगवान का नाम जपते रहें।
Updated on:
11 Oct 2025 03:27 pm
Published on:
11 Oct 2025 03:04 pm
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