Premanand Maharaj (photo- gemini ai)
Premanand Maharaj: जब हम किसी मंदिर या दुकान से भगवान की मूर्ति (श्री विग्रह) खरीदने जाते हैं, तो हमारे मन में अक्सर यह विचार आता है कि कौन-सी मूर्ति सबसे सुंदर है, कौन-सी अधिक आकर्षक लग रही है या किसकी कीमत थोड़ी कम है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि भगवान की मूर्ति में मोलभाव करना या तुलना करना सही है? इस पर पूज्य प्रेमानंद महाराज जी ने बड़ा ही सुंदर और भावपूर्ण उत्तर दिया है, जो हर भक्त को समझना चाहिए।
महाराज जी कहते हैं कि जब हम ठाकुर जी का श्री विग्रह (मूर्ति) लेते हैं, तो हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हम कुछ खरीद रहे हैं, बल्कि हमें यह भाव रखना चाहिए कि हम भगवान को भेंट अर्पित कर रहे हैं। मूर्ति कोई सामान्य वस्तु नहीं है। वह तो स्वयं भगवान का स्वरूप है। इसलिए जब हम उनकी सेवा के लिए मूर्ति लेते हैं, तो हमें बाजार वाला नजरिया नहीं रखना चाहिए।
प्रेमानंद महाराज जी के अनुसार, जब हम भगवान की मूर्ति में मोलभाव करते हैं, तो यह भाव हमारे अंदर “सौदेबाजी” का संकेत देता है। भगवान का कोई मूल्य नहीं होता। वे अनमोल हैं। महाराज जी कहते हैं “अगर किसी ने कहा कि ठाकुर जी की मूर्ति 45,000 रुपये की है, तो हमें यह नहीं कहना चाहिए कि 400 दे दो।” बल्कि अगर हमारे पास उतने पैसे नहीं हैं, तो हमें विनम्रता से कहना चाहिए “हमारे पास फिलहाल 400 हैं, कृपा करके यदि संभव हो तो दीजिए, नहीं तो जब पर्याप्त धन होगा तब हम ले लेंगे।” यह सच्चे भक्त का भाव है। प्रेम और श्रद्धा से विनम्र निवेदन करना, न कि मोलभाव करना।
महाराज जी बताते हैं कि जब तक आप ठाकुर जी को सेवा में विराजमान नहीं करते, तब तक आप यह देख सकते हैं कि कौन-सी मूर्ति आपके मन को अधिक भा रही है। लेकिन जब आप ठाकुर जी को अपने घर या मंदिर में स्थापित कर लेते हैं, तब किसी दूसरी मूर्ति को देखकर यह नहीं सोचना चाहिए कि “वो मूर्ति ज्यादा सुंदर थी।” ऐसा करना भक्ति में अपराध माना जाता है, क्योंकि अब ठाकुर जी आपके परिवार का हिस्सा बन चुके हैं।
महाराज जी कहते हैं कि ठाकुर जी का निर्माण करने वाले शिल्पी के अंदर भी ठाकुर जी ही बैठे हैं। अगर उसने 5,000 ज्यादा मांगे, तो वो अपराध नहीं है। इसलिए हमें हमेशा न्योछावर का भाव रखना चाहिए, यानी जितना हो सके, प्रेम से भेंट देनी चाहिए।
Updated on:
14 Oct 2025 11:01 am
Published on:
11 Oct 2025 03:40 pm
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