
कायोत्सर्ग का अर्थ काया का उत्सर्ग और शरीर से ममत्व एवं आसक्ति का त्याग करना है। यह आत्मा से आत्मा का साक्षात्कार कराने वाली महान साधना मानी जाती है। काया शरीर है और उत्सर्ग इसका उससे अलग हो जाना है। साधना का उद्देश्य शरीर और उसकी गतिविधियों से अनासक्ति कर धर्मध्यान और शुक्लध्यान की ओर अग्रसर होना है।
साध्वी उपमा ने जैन धर्म के पांचवें आवश्यक कायोत्सर्ग का महत्व बताते हुए कहा कि खड़े होकर, बैठकर या ध्यान की स्थिति में किया गया कायोत्सर्ग साधना का वह रूप है, जिसमें साधक शरीर, मन और भावनाओं को भुलाकर आत्मा पर केंद्रित होता है। उन्होंने बताया कि कायोत्सर्ग पुराने कर्मों का नाश करता है और आगामी आवश्यक नए कर्मों के संचय को रोकता है।
साध्वी ने कहा, दवा शरीर के रोगों को दूर करती है, जबकि मेडिटेशन आत्मा के रोगों को मिटाता है। भगवान महावीर को भी आत्मा की गहराई में उतरने में साढ़े बारह वर्ष लगे। आत्मा की अनुभूति कठिन अवश्य है, परंतु भेद विज्ञान और कायोत्सर्ग साधना के माध्यम से इसे संभव बनाया जा सकता है। साधना से जीवन में शांति, समता, सहनशीलता और पवित्रता जैसे गुणों का विकास होता है और साधक भीतर से हल्का, शुद्ध और स्वस्थ अनुभव करता है।
इस अवसर पर साध्वी उपासना ने राजकुमार गोविंद सिंह की रोचक कथा प्रस्तुत की। साध्वी ऋषिता ने भावपूर्ण स्तवन गाया, जबकि साध्वी निर्मला ने मांगलिक प्रदान किया। आभार ज्ञापन राकेश दलाल ने किया और कार्यक्रम का संचालन संघ मंत्री नेमीचंद दलाल ने किया।
Published on:
25 Sept 2025 06:39 pm
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