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भावों से होता है कर्मों का बंध: साध्वी नंदिनी

कर्मों का बंध शरीर से नहीं, भावों से होता है। भावों की शुद्धता ही आत्ममुक्ति की कुंजी है। शुद्ध भावों से किया गया छोटा सा उपकार भी महान फलदायक बन जाता है, जबकि अशुद्ध भावों से किया गया बड़ा तप भी निरर्थक हो जाता है। भावों की दिशा ही जीवन की दिशा तय करती है। […]

कर्मों का बंध शरीर से नहीं, भावों से होता है। भावों की शुद्धता ही आत्ममुक्ति की कुंजी है। शुद्ध भावों से किया गया छोटा सा उपकार भी महान फलदायक बन जाता है, जबकि अशुद्ध भावों से किया गया बड़ा तप भी निरर्थक हो जाता है। भावों की दिशा ही जीवन की दिशा तय करती है। पहले भाव शुद्ध करो, फिर कर्म स्वयं शुद्ध हो जाएगा।यह बातें वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, राजाजीनगर की ओर से संघ प्रांगण में आयोजित प्रवचन सभा में साध्वी निर्मला के सानिध्य में साध्वी नंदिनी ने कही। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार नाव पानी में रहकर भी एक किनारे से दूसरे किनारे पहुंच जाती है, उसी प्रकार जो साधक निर्मल भावों से युक्त होता है, वह अपने समस्त दुखों को पार कर भवसागर से मुक्ति पा सकता है। साध्वी ने कहा कि जो निरंतर बढ़ती रहती है, वह तृष्णा है। जो प्रतिक्षण घटती जाती है, वह आयुष्य है और जो न बढ़ती है न घटती, वही भाग्य है। जब तक हम स्वयं को नहीं देखते, तब तक आत्मोन्नति संभव नहीं। हमें परमात्मा के प्रति भक्ति-भाव से तन्मय होकर एकाग्रता के साथ अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।

दोपहर में मरुधर केसरी जैन गुरु सेवा समिति, महिला शाखा की ओर से आयोजित धार्मिक शिविर में साध्वी उपासना ने प्रवचन दिया। समिति के अध्यक्ष तगतराज बाफना, महामंत्री अशोक कुमार धोका, जंबु कुमार दुगड़, महिला अध्यक्ष सरला दुगड़ आदि मौजूद थे। आभार संघ अध्यक्ष प्रकाशचंद चाणोदिया ने जताया तथा संचालन संघ मंत्री नेमीचंद दलाल ने किया।