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जहां गूंजते थे ‘भारत माता की जय’… वहां अब सन्नाटा, यह हाल कि मन रो पड़े और दिल…

न कोई स्मारक, न कोई नाम-पट्टिका, न कोई इतिहास बोर्ड। बस वीरानगी और उपेक्षा का साम्राज्य। बस यही सब कुछ अब वहां नजर आ रहा है, जो उस दौर को ही मानों जेहन से मिटा देने पर आमादा है।

आजादी के दीवानों की तपोभूमि अणचाबाई अस्पताल रोड का वह परिसर…जिसे आज लोग महज़‘पुरानीजेल’ कहकर निकल जाते हैं, कभी बीकानेर रियासत की आज़ादी की लड़ाई का गवाह था। यहां की कोठरियां स्वतंत्रता सेनानियों की हुंकार और नारों से गूंजती थीं “अंग्रेज़ो भारत छोड़ो। वंदे मातरम” कई सेनानी हंसते-हंसते यातनाएं सहते और अपने खून-पसीने से इस धरती को सींचते थे।

आज की हकीकतः जर्जर दीवारें, कचरे के ढेर

जिस भूमि ने कभी अपने सीने पर बलिदानों की कहानी लिखी, आज वहां कचरा और गोबर के ढेर, टूटी-फूटी दीवारें, मकानों का मलबा, झोंपड़पट्टियों का कब्जा ही नजर आता है। न कोई स्मारक, न कोई नाम-पट्टिका, न कोई इतिहास बोर्ड। बस वीरानगी और उपेक्षा का साम्राज्य। बस यही सब कुछ अब वहां नजर आ रहा है, जो उस दौर को ही मानों जेहन से मिटा देने पर आमादा है।

इतिहास को मिटने दे रहा शहर

जेल को ध्वस्त हुए तकरीबन 15 साल बीत गए। शासन-प्रशासन के पास करोड़ों का राजस्व जुटाने की योजनाएं हैं, लेकिन स्मारक बनाने की नहीं। यहां न सेनानियों के नाम अंकित हैं, न वह इतिहास लिखा गया है, जो नई पीढ़ी को प्रेरित कर सके।आने वाली पीढ़ियां यह भी नहीं जान पाएंगी कि इस जमीन पर स्वतंत्रता सेनानियों ने किस तरह अपमान, कोड़े, भूख और कैद को सहकर हमें आज़ादी दिलाई।

बीकानेर का गौरव, जिसे बेचने को तैयार बीडीए

बीकानेर विकास प्राधिकरण इस भूमि को बेचने के प्रयास में है, लेकिन यहां कभी लगी सलाखों, कोठरियों और शौर्य की गूंज को संरक्षित करने की सोच तक नहीं दिखती। चार ब्लॉक और एक सर्कल जो बने थे, वे अब खंडहर में बदल गए हैं। पत्थर टूट चुके, गेट जंग खा चुका और सफाई नाम की चीज नहीं।

स्मारक और म्यूजियम की मांग

पूर्व पार्षद पारस मारु का कहना है “यह भूमि पूजनीय है। पिताजी स्वतंत्रता सेनानी रामनारायण शर्मा बताते थे कि यहां सैकड़ों सेनानियों ने कठोर यातनाएं सही। इसे बदहाल देख मन दुखी होता है। स्मारक, सेनानी दीर्घा और म्यूजियम बनना जरूरी है।” स्वतंत्रता सेनानी आश्रित संघ के अध्यक्ष शांति प्रसाद शर्मा कहते हैं, “भूमि चाहे बिके, लेकिन इतिहास अक्षुण्ण रहना चाहिए। यहां के गौरव को सहेजना हमारी जिम्मेदारी है। ताकि आने वाली पीढि़यां इस जमीन के इतिहास और गौरव को जान सकें।”

एक सवाल भी...

जब पूरा देश आज़ादी का जश्न मना रहा है, क्या बीकानेर अपनी इस तपोभूमि को ऐसे ही भुला देगा। क्यों न इस जमीन पर एक भव्य स्मारक बने, जिसमें लिखा हो, “यह वह भूमि है जहां स्वतंत्रता के दीवानों ने अपने लहू से भारत की आज़ादी का सपना सींचा।”