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राजस्थान में निजी टांकों के निर्माण पर क्यों लगी रोक? सांसद ने बताया तुगलकी फरमान; MLA बोले- लोगों की पीठ पर खंजर घोंपा

Rajasthan News: राजस्थान सरकार ने मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) के तहत किसानों के खेतों में पानी के टांके बनाने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है।

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private tanks banned in Rajasthan

फोटो- पत्रिका नेटवर्क

Rajasthan News: राजस्थान सरकार ने मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) के तहत किसानों के खेतों में पानी के टांके बनाने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। मंगलवार को ग्रामीण विकास विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव (एसीएस) श्रेया गुहा की ओर से सभी जिला कलक्टरों को भेजे गए आदेश में कहा गया है कि अब मनरेगा के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति-लाभ के कार्य में टांके की मंजूरी नहीं दी जाएगी।

विभाग ने यह रोक केंद्र सरकार के नेशनल लेवल मॉनिटर की रिपोर्ट के आधार पर लगाई है। आदेश में कहा गया है कि मनरेगा में व्यक्तिगत लाभ के कार्यों की मंजूरी मुख्यत: सिंचाई के उद्देश्य से फार्म पॉण्ड (खेत तालाब) बनाने के लिए दी जाती है, जबकि टांकों का उपयोग पीने के पानी के लिए किया जाता है, जो योजना के मूल उद्देश्य के अनुरूप नहीं है।

जल संरक्षण का स्थानीय मॉडल

राजस्थान के पश्चिमी हिस्से में सदियों से टांकों का निर्माण परंपरागत जल-संरक्षण प्रणाली का हिस्सा रहा है। ये टांके बरसात के सीमित जल को रोकने, संग्रहित करने और लंबे समय तक सुरक्षित रखने में मदद करते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि मनरेगा के तहत टांकों का निर्माण ग्रामीण समुदायों को जल सुरक्षा, रोजगार और आजीविका तीनों प्रदान करता है। टांके बनाने पर रोक का निर्णय उन इलाकों के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है, जहां भूजल स्तर लगातार गिर रहा है और कुएं-पोखर सूख चुके हैं।

सरकार पर विपक्ष का तीखा हमला

सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल ने कहा कि दीपावली के दिन जारी किया गया यह तुगलकी फरमान ‘प्यासे मरेंगे, नीति बनेगी कागज पर’ जैसी विडंबना को जन्म देता है। बिना धरातलीय जांच, सर्वे और स्थानीय जरूरतों को समझे बंद एसी कमरों में बैठकर नीतियां बनाना थार की असल समस्याओं की अनदेखी है। इन्हीं टांकों में संरक्षित किए गए जल से थारवासी अपनी प्यास बुझाते हैं।

वहीं, बायतू विधायक हरीश चौधरी ने कहा कि 21 तारीख को जब पूरा देश दीपावली का पर्व मना रहा था, उसी दिन सरकार ने हमारे रेगिस्तान की पीठ पर खंजर घोंपा है। सरकार ने यह आदेश छुट्टी के दिन निकाला। यह कोई पक्का निर्माण नहीं, बल्कि हमारी जीवन रेखा है। यह टांके इस रेगिस्तान की सांस हैं, इन्हें रोकना हमारी बुनियादी जरूरतों पर हमला है।

युवा नेता रघुवीरसिंह तामलोर ने कहा कि टांकों का निर्माण बाड़मेर के लिए जरूरी है। यहां पानी की कमी है, विशेषकर बॉर्डर के एरिया में। ऐसे में मनरेगा में बन रहे टांके वरदान साबित हो रहै हैं। सरकार को टांका निर्माण को प्राथमिकता देते हुए निर्माण के आदेश जारी करने चाहिए।

विशेषज्ञों की राय

जल विशेषज्ञों का मानना है कि टांकों पर रोक लगाने से थार के जल-संतुलन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। इन टांकों की खासियत यह है कि यह भूजल रिचार्ज में मदद करते हैं, साथ ही हर साल हजारों परिवारों को जल-संकट से राहत दिलाते हैं। सरकार को पूर्ण रोक लगाने के बजाय इन संरचनाओं की डिजाइन और उपयोग मानक तय करने चाहिए ताकि योजना के उद्देश्य के अनुरूप भी रहें और जल संरक्षण की परंपरा भी जारी रहे।

रेगिस्तान की जीवन रेखा

रेगिस्तानी जिलों, खासकर बाड़मेर, जैसलमेर जैसे इलाकों में पानी के टांके सिर्फ संरचना नहीं, बल्कि जीवन का आधार माने जाते हैं। यहां लोग साल में कुछ ही दिनों की बरसात पर निर्भर रहते हैं। गांव-गांव में बने ये टांके ही वह माध्यम हैं, जिनमें बरसात का पानी संचित कर पूरा वर्ष उपयोग में लिया जाता है। यही पानी पीने, पशुओं के उपयोग और कभी-कभी सिंचाई के लिए भी काम आता है।

मनरेगा के तहत चल रही अपना खेत, अपना काम योजना के तहत बीते वर्षों में जिले में हजारों किसानों ने अपने खेतों में टांके और कैचमेंट क्षेत्र बनवाए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यह योजना न केवल रोजगार का साधन बनी, बल्कि जल संकट से जूझते इलाकों के लिए एक स्थायी समाधान साबित हुई है।

टांकों के आंकड़े

बाड़मेर में विभिन्न योजनाओं के तहत बने टांके- करीब चार लाख

13.5 गुणा 13.5 फीट टांके की लागत-करीब तीन लाख रुपए

टांके में पानी की भराव क्षमता- करीब 35 हजार लीटर

पानी का संग्रहण- बरसाती पानी सहेजने का बड़ा जरिया

पानी का उपयोग- पूरे साल गांवों में पीने व मवेशियों के लिए होता


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