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आशा कार्यकर्ताओं ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा किए जा रहे सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण (जाति जनगणना) से दूर रहने की घोषणा की है। इनके अनुसार सरकार बार-बार उचित पारिश्रमिक सुनिश्चित करने में विफल रही है।अखिल भारतीय संयुक्त ट्रेड यूनियन केंद्र (एआइयूटीयूसी) से संबद्ध कर्नाटक राज्य संयुक्त आशा कार्यकर्ता संघ के सदस्यों ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या की ओर से घर-घर जाकर सर्वेक्षण फॉर्म वितरित करने के निर्देश देने की घोषणा के बावजूद, मानदेय पर कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया गया है।
संघ की राज्य सचिव डी. नागलक्ष्मी ने कहा, खबरों के अनुसार प्रत्येक आशा कार्यकर्ता को फॉर्म वितरित करने, परिवारों को 60 सर्वेक्षण प्रश्नों के उत्तर देने के लिए तैयार करने, दस्तावेज तैयार रखने, त्रुटियों को ठीक करने और मोबाइल एप्लिकेशन पर विवरण अपलोड करने जैसे कार्यों के लिए 2,000 रुपए का भुगतान किया जाएगा। हालांकि, आशा कार्यकर्ताओं को ऐसे अतिरिक्त कर्तव्यों के लिए बार-बार मुआवजे से वंचित किया गया है। यहां तक कि राज्य की गारंटी योजनाओं सहित पहले के सरकारी सर्वेक्षणों के दौरान भी, 1,000 रुपए के भुगतान का वादा खोखला साबित हुआ।
इसके अलावा, अन्य विभागों की ओर से किए गए सर्वेक्षणों का बकाया भी अभी तक नहीं चुकाया गया है।संघ के राज्य अध्यक्ष के. सोमशेखर यादगिरी ने कहा कि सर्वेक्षण कार्य न केवल आशा कार्यकर्ताओं के नियमित गतिविधि-आधारित प्रोत्साहन भुगतान में बाधा डालता है, बल्कि उन्हें अपनी जेब से खर्च करने के लिए भी मजबूर करता है।
संघ की मांग है कि ग्रामीण आशा कार्यकर्ताओं के लिए सर्वेक्षण मानदेय 5,000 रुपए और शहरी आशा कार्यकर्ताओं के लिए 10,000 रुपए निर्धारित हो। इसके अलावा, बीबीएमपी सीमा में व्यापक अनुसूचित जाति सर्वेक्षण-2025 का संचालन करने वाली आशा कार्यकर्ताओं का बकाया भुगतान किया जाना चाहिए।उन्होंने कहा, जब तक सरकार हमारे पारिश्रमिक पर स्पष्ट आदेश जारी नहीं करती, आशा कार्यकर्ता आगामी सर्वेक्षण में भाग नहीं लेंगी।
Published on:
16 Sept 2025 10:45 pm
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