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ईरान परमाणु समझौता समाप्त: रूस-चीन का UN को पत्र, भारत के लिए क्या हैं बड़े संकेत ?

India Iran Oil Import Boost: ईरान परमाणु समझौता खत्म होने से भारत को सस्ता तेल और चाबहार पोर्ट में निवेश का बड़ा फायदा हुआ।

3 min read

भारत

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MI Zahir

Oct 19, 2025

India Iran Oil Import Boost

ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ( फोटो: ANI)

India Iran Oil Import Boost: दुनिया की कूटनीति में शनिवार रात बड़ा धमाका हुआ। ईरान, रूस और चीन ने संयुक्त राष्ट्र (United Nations) महासचिव एंटोनियो गुटेरेस (Antonio Guterres) और सुरक्षा परिषद को पत्र लिख कर 2015 के JCPOA (संयुक्त व्यापारिक कार्य योजना) आधिकारिक तौर पर खत्म घोषित कर दी। पत्र में कहा गया कि UNSC प्रस्ताव 2231 के अनुच्छेद 8 के तहत सभी प्रावधान 18 अक्टूबर 2025 के बाद समाप्त हो चुके हैं। यह ईरान के परमाणु मुद्दे पर UN की चर्चा का अंत चिह्नित करता है। ईरानी मीडिया IRNA के अनुसार, यह कदम ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी (ई3) के 'स्नैपबैक' तंत्र को सक्रिय करने के प्रयास की कड़ी आलोचना भी करता है, जिसे अवैध बताया गया। ईरान के उप विदेश मंत्री काजिम गरीबाबादी ने पांच प्रमुख दस्तावेजों का हवाला देकर ई3 के प्रयास खारिज किए।

एकतरफा कार्रवाइयों से बचने की अपील

विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने X (पूर्व ट्विटर) पर पत्र के अंश शेयर करते हुए ई3 को अमेरिकी दबाव का 'शिकार' बताया। उन्होंने कहा कि यूरोपीय देशों ने JCPOA की प्रतिबद्धताएं तोड़ीं, इसलिए पाबंदियां बहाल करने का अधिकार खो चुके हैं। IAEA (अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) के निरीक्षणों में ईरान के 'विचलन' के दावे कभी सिद्ध नहीं हुए। तीनों देशों ने सभी पक्षों से कूटनीतिक बातचीत और एकतरफा कार्रवाइयों से बचने की अपील की।

JCPOA का संक्षिप्त इतिहास: समझौता जो अब इतिहास बन गया

JCPOA 2015 में ईरान और P5+1 (अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी) के बीच साइन हुआ था। इसके बदले ईरान ने परमाणु गतिविधियां सीमित कीं, UN ने पाबंदियां हटा दीं। लेकिन 2018 में अमेरिका ने एकतरफा बाहर होकर पाबंदियां लगा दीं। प्रस्ताव 2231 ने इसे 10 साल के लिए वैध बनाया, जो अब समाप्त हो चुका। स्नैपबैक तंत्र – जो पाबंदियां तुरंत बहाल कर सकता था – भी खत्म। अब ईरान पर UN स्तर की कोई बाध्यता नहीं, लेकिन IAEA निगरानी जारी रह सकती है।

भारत के लिए क्या हैं मायने ?

यह फैसला भारत के लिए दोहरी तलवार है – अवसर और चुनौतियां। भारत ने JCPOA का हमेशा समर्थन किया, क्योंकि यह बहुपक्षीय कूटनीति का प्रतीक था। अब इसके समाप्त होने से सब कुछ बदल जाएगाईरान परमाणु समझौता समाप्त: रूस-चीन का UN को पत्र, भारत के लिए क्या हैं बड़े संकेत ?

तेल आयात में राहत: सस्ता ईरानी तेल लौटेगा ?

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल खरीदने वाला देश है। ईरान से सस्ता कच्चा तेल (लगभग 10% सस्ता) मिलना हमारी ऊर्जा सुरक्षा के लिए बड़ी सौगात बनेगा। 2018 की पाबंदियों के कारण भारत ने ईरान से तेल आयात पूरी तरह बंद कर दिया था, जिससे हमारा चालू खाता घाटा (CAD) बढ़ गया।

वाशिंगटन से विशेष छूट लेनी होगी

अब संयुक्त राष्ट्र की पाबंदियां हटने से तेल कारोबार आसान हो जाएगा। लेकिन अमेरिका के द्विपक्षीय प्रतिबंध (CAATSA) अभी भी लागू हैं, इसलिए हमें वाशिंगटन से विशेष छूट लेनी होगी। हाल के सालों में हमने रूस से तेल खरीद बढ़ाई है, लेकिन ईरान का लौटना आयात में विविधता लाएगा। अनुमान है: तेल के दाम स्थिर रहेंगे, महंगाई पर लगाम लगेगी।

चाबहार पोर्ट: कनेक्टिविटी का नया द्वार मजबूत

चाबहार भारत की 'गेम-चेंजर' परियोजना है – यह पाकिस्तान को छोड़कर अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरोप से सीधा जुड़ाव देता है। भारत ने 2024 में 10 साल का संचालन अनुबंध साइन किया, जिसमें $120 मिलियन का निवेश शामिल है। JCPOA के खत्म होने से ईरान में निवेश बिना UN की रुकावट के तेज होगा। INSTC (अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण पारगमन गलियारा) की रफ्तार बढ़ेगी, जिससे व्यापार की लागत 30% घट जाएगी। हालांकि, चीन की BRI (ग्वादर पोर्ट) से मुकाबला कड़ा होगा। अमेरिका ने हमेशा चाबहार को छूट दी है (अफगानिस्तान के हित में), लेकिन अब नई सरकार की नीतियों पर नजर रखनी होगी।

भू-राजनीतिक चुनौतियां: संतुलन की कसरत

अमेरिका बनाम रूस-चीन: भारत क्वाड और अमेरिका का करीबी साझेदार है, लेकिन रूस-ईरान से SCO में जुड़ा हुआ है। यह फैसला रूस-चीन को और ताकत देगा, जो भारत के लिए मध्य पूर्व में संतुलन बिगाड़ सकता है। अगर तनाव बढ़ा तो होर्मुज जलडमरूमध्य बंद हो सकता है – दुनिया के 20% तेल पर असर, भारत की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका।

परमाणु प्रसार का खतरा: ईरान अब बिना रोक-टोक परमाणु कार्यक्रम तेज कर सकता है, जिससे इलाके में अस्थिरता फैलेगी। भारत को IAEA के साथ मिलकर निगरानी सख्त करनी होगी, वरना NPT जैसी संधाओं पर सवाल उठेंगे।

व्यापार के मौके: दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार $30 अरब तक पहुंच सकता है। उर्वरक और फार्मा का निर्यात बढ़ेगा। लेकिन ईरान की कमजोर अर्थव्यवस्था के कारण भुगतान प्रणाली (रुपया-रियाल) को मजबूत बनाना जरूरी है।

आगे क्या ? भारत की रणनीति

बहरहाल भारत को फौरन अमेरिका से बात करनी चाहिए – चाबहार के लिए छूट पक्की करें। ईरान से तेल सौदे नवीनीकृत करें, और रूस-चीन के साथ संतुलन बनाए रखें। विदेश मंत्रालय (MEA) ने कहा, "हम UN पाबंदियों का सम्मान करेंगे, लेकिन अपने हितों की रक्षा करेंगे।" यह मौका भारत को बहुपक्षीय कूटनीति का है – SCO, BRICS में ईरान को जोड़कर स्थिरता लाएं। नतीजा: ऊर्जा और कनेक्टिविटी में फायदा, लेकिन भू-राजनीति में सावधानी बरतनी होगी। (ANI)