नागौर. श्री जयमल जैन पौषधशाला में चल रही चातुर्मास विशेष प्रवचन श्रृंखला में सोमवार को जैन समणी सुयशनिधिजी ने चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के सम्यक्त्व से लेकर महावीरत्व की प्राप्ति तक के 27 भवों पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि कर्म प्रबंधन ही आत्मा की मुक्ति का मार्ग बन सकता है। जीवन में आने वाली पीड़ा को केवल भाग्य न मानें, बल्कि उसे कर्म सिद्धांत के नजरिए से पहचाने के साथ ही हल्के कर्मों से छुटकारा पाने के उपायों को अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हल्के कर्म जैसे क्रोध, ईष्र्या, लोभ आदि से छुटकारा पाना सोच और सुधार से संभव है, जबकि निकाचित कर्मों से बचाव के लिए संयम, समता और तप की आवश्यकता होती है। उन्होंने समझाते हुए बताया कि व्यवहार सम्यक्त्व के पाँच लक्षण् है। इसमें सम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा और आस्था है। आस्था का अर्थ प्रभु वाणी पर अडिग विश्वास है। प्रवचन में पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर देने पर दिक्षा चौरडिय़ा व मनीषा सुराणा को रजत पदक सुरेशचंद के सौजन्य से दिया गया। प्रवचन प्रभावना का लाभ महावीरचंद, पारसमल भूरट परिवार ने लिया। दिलीप पींचा, प्रकाशचंद ललवाणी, मूलचंद ललवाणी, सौहन नाहर, कंचन मोदी, ललिता छल्लाणी, रेखा सुराणा, सरोज चौरडिया, मंजू ललवाणी आदि मौजूद थे। संचालन संजय पींचा ने किया। मंगलवार को को पदमचंद्र म.सा. के जन्म दिवस पर सामूहिक दया आयोजन हेागा।