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Nagaur patrika…जैन धर्म में गर्भ प्रक्रिया आत्मिक-संस्कारमूलक साधना का समय होता है…VIDEO

नागौर. जयमल जैन पौषधशाला में चल रहे प्रवचन में जैन समणी सुयशनिधि ने कहा कि जब भगवान महावीर स्वामी को माता त्रिशला के गर्भ में दिव्य दोहद अनुभव हुए। इन दोहदों में एक अत्यंत रोचक और अलौकिक इच्छा यह थी कि मेरे पति महाराज सिद्धार्थ युद्ध में इन्द्रदेव पर विजय प्राप्त करे। इंद्राणी के कुंडल […]

नागौर. जयमल जैन पौषधशाला में चल रहे प्रवचन में जैन समणी सुयशनिधि ने कहा कि जब भगवान महावीर स्वामी को माता त्रिशला के गर्भ में दिव्य दोहद अनुभव हुए। इन दोहदों में एक अत्यंत रोचक और अलौकिक इच्छा यह थी कि मेरे पति महाराज सिद्धार्थ युद्ध में इन्द्रदेव पर विजय प्राप्त करे। इंद्राणी के कुंडल महाराज को भेंट करें। मैं उन्हें अपने कानों में पहनूं। यह कोई साधारण कल्पना नहीं थी, अपितु तीर्थंकर आत्मा की गर्भस्थ अवस्था में ही प्रकट होने वाली महान चेतना का परिचायक है। यह दोहद दर्शाता है कि एक तीर्थंकर आत्मा के प्रभाव से माँ की सोच भी दैवीय होने के साथ ही वीरतापूर्ण बन जाती है। गर्भकालीन संवेदनशीलता, गर्भधारण की शुद्धता, और माता के विचारों की पवित्रता का उल्लेख करते हुए कहा कि जैन धर्म में गर्भ को केवल शारीरिक प्रक्रिया ही नहीं, अपितु आत्मिक और संस्कारमूलक साधना का समय माना गया है। माँ के भावों में ही भावी महापुरुष जन्म लेते हैं। जैन समणी सुगमनिधि ने कहा कि मन संयमित हो तो यह साधना का साधन बनता है, और चंचल होने पर पतन का कारण बन जाता है। साधना का पहला चरण होता है मन पर नियंत्रण होना। कहने का अर्थ यह है कि जितना मन स्थिर होगा, उतनी आत्मा उजागर होगी। साधक जप, ध्यान, स्वाध्याय और सत्संग के माध्यम से अपने मन को संयम में रख सकता है। एक मन को जीत लेने से चार कषाय के सााि ही पाँच इंद्रियों को भी जीत लेता है। मन एक ऊर्जा है। मन अर्थात् जिसके द्वारा मनन किया जाए। तलवार से आत्म रक्षा भी कर सकते हैं, और आत्म हत्या भी। ठीक उसी प्रकार मन से सदुपयोग व दुरुपयोग दोनो ही प्रकार के कार्य हो सकते हैं। मानसिक चिंतन को ईर्षा, द्वेष, वासनाएं आदि बुराइयों में लगाना यह मन का दुरुपयोग है। उन्होंने कहा कि अच्छाई-सच्चाई में मन को लगाना सदुपयोग है। मन ही मनुष्य के बंधन व मोक्ष का कारण है।

इन्होंने दिया प्रश्नों के उत्तर

– संघ मंत्री हरकचंद ललवाणी ने बताया प्रवचन के प्रश्नो के सही उत्तर चंपालाल जागिड़ संतोष चौरडिय़ा ने दिया। इनको सुरेशचंद, महेश कुमार कोठारी परिवार के सौजन्य से रजत मेडल से सम्मानित किया। प्रवचन प्रभावना का लाभ नौरतनमल व सुरेन्द्र, हेमंत सुराणा ने लिया। संचालन संजय पींचा ने किया। इस दौरान ज्ञान माली, कन्हैयालाल तातेड़, नोरतन सुराणा, नरेश जैन, महावीरचंद भूरट, व किशोरचंद ललवाणी आदि ने जीव दया मे राशि प्रदान की।