भारत में हेल्थ इंश्योरेंस को लेकर एक बार फिर से सवाल खड़े हो गए हैं। एंजेल इन्वेस्टर उदित गोयनका ने इसे देश का “सबसे बड़ा स्कैम बिज़नेस” तक कह दिया। मुंबई में एक गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीज के परिवार को करोड़ों की पॉलिसी होने के बावजूद इलाज का पैसा खुद से देना पड़ रहा है जबकि उनके पास निवार बूपा हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी का हेल्थ इंश्योरेंस है।
दरअसल मामला मुंबई के सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल का है। जहां एक मरीज का माइलॉयड ल्यूकेमिया यानी ब्लड कैंसर के लिए इलाज चल रहा है इस दौरान उनको बोन मैरो ट्रांसप्लांट की ज़रूरत पड़ी। परिवार के पास निवार बूपा की मेडिकल पॉलिसी थी, जिसमें 1 करोड़ रुपये का बेस कवर और 1.4 करोड़ रुपये का नो-क्लेम बोनस यानी कुल 2.4 करोड़ रुपये का इंश्योरेंस कवर मिला हुआ था।
4 जुलाई को मरीज को हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया जब परिवार ने 61 लाख 63 हजार रुपये का कैशलेस क्लेम मांगा तो निवार बूपा ने क्लेम को मंज़ूरी देने से इनकार कर दिया। कंपनी ने “लायबिलिटी को स्थापित नहीं किया जा सकता का हवाला देते पैसे देने से मना कर दिया। सबसे बड़ी हैरानी की बात तो यह है कि जब मरीज को भर्ती कराने से एक दिन पहले, 3 जुलाई को निवार बूपा ने लिखित में 25 लाख रुपये के बोन मैरो ट्रांसप्लांट पैकेज को मंजूरी दी थी और उस समय इसे “फाइनल और इन्क्लूसिव” बताया था। लेकिन जैसे ही असली इलाज का खर्च 25 लाख से ज्यादा निकला, तो कंपनी ने कैशलेस अप्रूवल देने से इंकार कर दिया।
लिंकडिन पोस्ट में लिखा गया कि “एक ही मरीज, वही इलाज, वही प्रक्रिया और वही पॉलिसी… फिर भी अब परिवार को 61 लाख रुपये नकद का इंतजाम करना पड़ रहा है। वो भी ऐसे समय में जब ज़िंदगी और मौत के बीच की लड़ाई चल रही है।” यूजर ने इसे हेल्थ इंश्योरेंस की सिस्टमिक ग़द्दारी कहा – यानी जब लोगों को सबसे ज़्यादा जरूरत होती है, तब सिस्टम उनका साथ छोड़ देता है। पोस्ट में आगे लिखा गया कि “लोग पॉलिसी इसलिए खरीदते हैं ताकि आपात स्थिति में सुरक्षा मिले। लेकिन ऐसे वक्त में छोड़ दिया जाना सबसे बड़ा अन्याय है। हेल्थ इंश्योरेंस शब्दों के खेल और बचने के बहाने का जरिया नहीं बन सकता। जब ज़िंदगी दांव पर लगी हो, तब इंसानियत, संवेदना और न्याय सबसे पहले आने चाहिए।” इस मामले ने सोशल मीडिया पर काफी गुस्सा पैदा कर दिया। एंजेल इन्वेस्टर उदित गोयनका ने इसे शेयर करते हुए लिखा – “इंश्योरेंस भारत का सबसे बड़ा स्कैम है।” उनका कहना कि लोग सालों तक प्रीमियम भरते हैं, लेकिन जब ज़रूरत पड़ती है, तो कंपनियां पीछे हट जाती हैं।
फिलहाल, इस मामले पर निवार बूपा की तरफ से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है। लेकिन ये मामला सिर्फ एक परिवार का नहीं, बल्कि हर उस इंसान की चिंता का विषय है जो हेल्थ इंश्योरेंस के भरोसे इलाज करवाने की सोचता है। जब ज़िंदगियां दांव पर हों, तब सिर्फ नियम-कायदों का नहीं, बल्कि इंसानियत, समझदारी और न्याय का होना ज़रूरी है। यह घटना लोगों के मन में इंश्योरेंस कंपनियों पर भरोसा बनाए रखने को लेकर कई सवाल खड़े करती है।