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खतरे में राष्ट्रपति ट्रंप की टैरिफ पोलिशी, एक अमरीकी अदालत ने सुनाया फैसला

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सबसे बड़ी व्यापार नीति, यानी उनकी टैरिफ पोलिशी, अब खतरे में है। यह खतरा किसी विदेशी व्यापार साझेदार से नहीं, बल्कि अमेरिका की अपनी अदालतों से आया है। एक संघीय अपील अदालत ने फैसला सुनाया है कि ट्रंप द्वारा लगाए गए आपातकालीन टैरिफ गैरकानूनी हैं।

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Pankaj Meghwal

Aug 30, 2025

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सबसे बड़ी व्यापार नीति, यानी उनकी टैरिफ पोलिशी, अब खतरे में है। यह खतरा किसी विदेशी व्यापार साझेदार से नहीं, बल्कि अमेरिका की अपनी अदालतों से आया है। एक संघीय अपील अदालत ने फैसला सुनाया है कि ट्रंप द्वारा लगाए गए आपातकालीन टैरिफ गैरकानूनी हैं। यह फैसला वैश्विक बाजारों और अमेरिकी घरेलू राजनीति पर गहरा असर डाल सकता है। अगर इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट भी यही फैसला सुनाता है, तो अमेरिकी सरकार को टैरिफ से जमा हुए अरबों डॉलर वापस करने पड़ सकते हैं। इससे न केवल राष्ट्रपति की शक्तियों की जांच होगी, बल्कि अमेरिकी खजाने की वित्तीय क्षमता भी दांव पर है।

दरअसल 2 अप्रैल 2025 को डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी “लिबरेशन डे” टैरिफ योजना की घोषणा की। इस योजना के तहत उन देशों पर 50% तक टैरिफ लगाए गए, जो अमेरिका को ज्यादा निर्यात करते हैं, लेकिन आयात कम करते हैं। साथ ही, ज्यादातर अन्य देशों पर 10% का बेसलाइन टैरिफ लगाया गया। इस नीति ने लगभग हर अमेरिकी व्यापार साझेदार को प्रभावित किया। ट्रंप ने इन टैरिफ को लागू करने के लिए 1977 के एक कम उपयोग होने वाले कानून, इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर्स एक्ट (IEEPA) का सहारा लिया। यह कानून राष्ट्रपति को युद्ध, आतंकवाद या शत्रुतापूर्ण शासनों जैसी विदेशी नीतियों और आपात स्थितियों में कार्रवाई करने की शक्ति देता है। ट्रंप ने दावा किया कि अमेरिका का अन्य देशों के साथ व्यापार घाटा अपने आप में एक “राष्ट्रीय आपातकाल” है, जिसके आधार पर उन्होंने कांग्रेस को दरकिनार कर टैरिफ लगाए। लेकिन 29 अगस्त को एक संघीय अदालत ने फैसला दिया कि ट्रंप ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है। अदालत ने कहा कि IEEPA कानून राष्ट्रपति को आयात पर टैक्स लगाने की शक्ति नहीं देता। अमेरिकी संविधान के अनुसार, टैरिफ लगाने का अधिकार केवल कांग्रेस के पास है। इस फैसले ने न्यूयॉर्क की एक ट्रेड कोर्ट के पहले के फैसले को और मजबूत कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि ट्रंप का यह कदम गैरकानूनी है। एक संसदीय रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि पहले किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति ने IEEPA का इस्तेमाल टैरिफ लगाने के लिए नहीं किया, जिससे ट्रंप का यह कदम ऐतिहासिक रूप से अभूतपूर्व बन गया।

इस फैसला से ट्रंप की व्यापार नीति को बड़ा झटका लगा है। ट्रंप ने एकतरफा टैरिफ का इस्तेमाल कर जापान, यूके और यूरोपीय संघ जैसे देशों के साथ सौदे किए। लाओस और अल्जीरिया जैसे देशों ने सहयोग नहीं किया तो उनको ऊंचे टैरिफ का सामना करना पड़ा। अब, इस कानूनी चुनौती के कारण ये सौदे खतरे में पड़ सकते हैं। कुछ देश अपने पुराने वादों को टाल सकते हैं या नए शर्तों की मांग कर सकते हैं। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले से वाशिंगटन की बातचीत वाली ताकत कम हो सकती है। वहीं ट्रंप ने अब सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की कसम खाई है। उन्होंने दावा किया कि यह फैसला अगर लागू रहा तो “अमेरिका को बर्बाद कर देगा।” उनके कानूनी दल ने तर्क दिया है कि राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां व्यापक हैं और इसमें विदेशी व्यापार खतरों पर कार्रवाई करने की शक्ति शामिल होनी चाहिए। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि यह फैसला राष्ट्रपति की विदेश नीति की भूमिका को कमजोर करता है इसे अपील किया जाएगा। ट्रेजरी और वाणिज्य विभाग के अधिकारियों ने भी चेतावनी दी कि यह फैसला राजनयिक स्तर पर शर्मिंदगी का कारण बन सकता है।

ऐसे में अगर सुप्रीम कोर्ट इस फैसले को बरकरार रखता है और टैरिफ रद्द हो जाते हैं, तो अमेरिकी सरकार को जमा किए गए टैरिफ की बड़ी राशि वापस करनी पड़ सकती है। जुलाई 2025 तक टैरिफ से 159 अरब डॉलर की आय हुई थी, जो पिछले साल की तुलना में दोगुनी थी। जस्टिस डिपार्टमेंट ने चेतावनी दी है कि टैरिफ रद्द होने से संघीय खजाने को “वित्तीय तबाही” का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि इतनी बड़ी राशि वापस करनी होगी। इसके अलावा, कानूनी बुनियाद कमजोर होने से टैरिफ के दबाव में किए गए व्यापार सौदों पर भी असर पड़ सकता है। वाणिज्य सचिव के मुताबिक इस फैसले से न केवल वित्तीय नुकसान होगा, बल्कि विदेशी साझेदारों से जवाबी कार्रवाई और व्यापार वार्ताओं में बाधा आ सकती है।

बता दें कि भले ही IEEPA के जरिए टैरिफ लगाने का रास्ता बंद हो जाए, लेकिन भविष्य के राष्ट्रपतियों के पास टैरिफ लगाने के अन्य विकल्प मौजूद रहेंगे क्योंकि, 1974 के ट्रेड एक्ट की धारा 301 के तहत अनुचित व्यापार प्रथाओं की जांच के बाद टैरिफ लगाए जा सकते हैं। धारा 232 के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर टैरिफ लगाए जा सकते हैं। इसके अलावा, 1930 के टैरिफ एक्ट की धारा 338 भी है, जो राष्ट्रपति को विशिष्ट देशों पर 50% तक टैरिफ लगाने की अनुमति देती है। हालांकि अदालत का यह फैसला 14 अक्टूबर तक स्थगित है, जिससे ट्रंप प्रशासन को सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का समय मिल गया है। अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर ट्रंप के खिलाफ फैसला सुनाता है, तो यह राष्ट्रपति की व्यापार नीति शक्तियों को सीमित करने वाला एक ऐतिहासिक फैसला बन जाएगा। फिलहाल टैरिफ लागू हैं, लेकिन कानूनी और वित्तीय अनिश्चितता बनी हुई है। व्यवसायों को समझ नहीं आ रहा कि क्या उन्हें टैरिफ की राशि वापस मिलेगी। व्यापार साझेदार अपने वादों पर फिर से विचार कर रहे हैं। वाशिंगटन को भविष्य की वार्ताओं में एक महत्वपूर्ण हथियार खोने का खतरा है।